हिंदी गजल

बिगड़ी हुई आदतें पलती गईं,
अहबाब को सुधारने का शुक्रिया।

कोना कोना करकट बिखरा हुआ,
अँगनाई को झाड़ने का शुक्रिया।

नियाइश की आज तो उम्मीद थी,
फिर बेवजह धुंगारने का शुक्रिया।

बड़े ही अरमान से पाला उन्हें,
अब बैल सा हुंकारने का शुक्रिया।

अविनाश ब्यौहार,
रायल एस्टेट,
कटंगी रोड जबलपुर।

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