
कितने रहे अभागे हैं।
उलझे उलझे धागे हैं।।
छोटी खुशियों के खातिर,
रात रात भर जागे हैं।
जिन्हें हम मसीहा समझे,
वे मर्यादा लाँघे हैं।
जितने होते कार्यदिवस,
उतने उनके नागे हैं।
कछुआ गति से जो चलते,
खरगोशों से आगे हैं।
अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर
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