
शहर तो है नींद से जागा।
मुंडेरों पर बोले कागा।।
दिनचर्या चालू होते ही,
वो दफ्तर को सरपट भागा।
होने लगी मुनादी गर तो,
पीट रहा है डुग्गी डागा।
आपस में अनबन होते ही,
टूट गया रिश्तों का तागा।
न खाए परसी हुई थाली,
उससे बड़ा कौन दोहागा।
अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर