राजनीति

अपने पारिभाषिक शब्दों से ही शीघ्र उन्नति।

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डॉ. मधुसूदन

(१) भारत की उन्नति शीघ्र कैसे होगी?
जनभाषा और हिन्दी ही शीघ्र उन्नति करवा सकते है।
अंग्रेज़ी तो बैसाखी है। उसपर दौड कर विश्व का ऑलिम्पिक जीता नहीं जा सकता।

(२) अंग्रेज़ी से क्या हानि?
अंग्रेजो ने हमारी टांगे काट कर अंग्रेज़ी की बैसाखी हमें थमा दी है।
और उससे कुछ ही लोग आगे बढ सके हैं।

(३) अंग्रेज़ी से उन्नति में कैसी कठिनाई है?
निम्न स्तर की अंग्रेज़ी सीखने में छात्र को ३-४ वर्ष अधिक लग जाते हैं।
और, उसके लिए, स्वतंत्र विचार करना, तो संभव नहीं होता।
अतः वह हीन ग्रंथिसे पीडित हो कर धूर्त अंग्रेज़ी जानकारों को महत्त्व देता है।

(४) अंग्रेज़ी में मौलिक उन्नति की कीमत क्या?
अंग्रेज़ी में चिन्तन करने तक का, प्रभुत्व पाने में अच्छे महत्त्वाकांक्षी छात्र के भी, साधारणतः १० से १५ वर्ष निकल जाते हैं। ४ वर्ष शालेय, ४ वर्ष विश्वविद्यालयीन, और ४ वर्ष स्नातकोत्तर शोध; ऐसे १२ वर्ष निकल जानेपर पराई भाषा में कुछ स्वतंत्र विचार करने की क्षमता प्राप्त होती है। तब तक वह स्वयं मतिभ्रमित हो जाता है। अंग्रेज़ी को ही विद्वत्ता की उपलब्धि मान लेता है।

(५) उसकी मानसिकता विकृत कैसे होती है?
छात्र ही तब तक प्रौढ हो जाता है।और युवावस्था जिसमें मानसिकता का गठन होता है। उस मानसिकता में ही अनजाने विकृति आ जाती है।

(६) आरक्षण भी हमें पीछे रख रहा है, क्या?
आरक्षण देकर भी हम युवाओं की; साहस,पराक्रम और पुरूषार्थ की प्रेरणा छीन लेते हैं। अपना भाग्य गढने का उनका अधिकार छीन कर उन्हें हम पंगु बना देते हैं।

आरक्षण के बदले उन्हें परीक्षा की तैयारी में सहायता दीजिए। विशेष अधिक समय दीजिए। परीक्षा का मापदण्ड सभी के लिए समान रखिए। मैं ने स्वयं इसका प्रयोग किया है। निःशुल्क पढाया जाए। वास्तव में शुल्क लेकर पढाना गलत है।

(७) आरक्षण देनेवाले, हम उन भिखारियों जैसे हैं, जो, अपने बालक के हाथ पैर तोडकर भीख से पेट भरना सिखाते हैं। सदाके लिए पंगु बना देते है।

(८) अच्छा अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान तो साधन है। पर वह स्वयं उपल्ब्धि नहीम है। उसी से निर्माणात्मक रचना कोई नहीं कर सकता। उसके गलत उपयोग से, मनुष्य जीवन भर पंगु बन जाता है। कुछ ही स्वतंत्र विचारक इसे समझ कर ऊपर उठ पाते हैं।

(९) हम पारिभाषिक शब्द कहाँ से लाएंगे?
संस्कृत से।
(१०) क्या अंग्रेज़ी बिलकुल नहीं रहेगी?
रहेगी। पर पहले हिन्दी या प्रादेशिक भाषा । बादमें अन्य भाषा।
(११) और अन्य परदेशी भाषाएँ ?
वे भी बादमें शोध के समय।
(१२) छात्र के कितने वर्ष बचेंगे?
औसत ३ से ५ वर्ष।
(१३) अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रों से लाभ कैसे मिलेगा?
उच्च स्नातकोत्तर शिक्षा से। और स्वयं शिक्षित होकर।
जापान की भाँति वैश्विक ६ भाषाओं के अनुवाद जापान ३ सप्ताह के भीतर प्रकाशित करता है। हम भी ऐसे अनुवाद प्रकाशित करें। शोधपत्रों का ऐसा छः गुना लाभ जापान प्राप्त करता है। अंग्रेज़ी के अकेले आग्रह से छः गुना लाभ जापान प्राप्त करता है। तभी आगे बढा हुआ है।
(१४) क्या हम संसार से कट कर रह जाएंगे?
बिलकुल नहीं। सारा शिक्षा क्षेत्र भी सशक्त सक्षम करना होगा।
कागजी उपाधियाँ समाप्त करनी होगी। कागजी शालाएं भी विसर्जित करनी होगी।
भ्रष्ट शिक्षकों को भी स्पर्धात्मक बनना होगा। समर्पित शिक्षकों को प्रोत्साहन देना होगा।

(१५) क्या सारा ज्ञान हिन्दी में लाया जा सकता है?
बिलकुल। और ज्ञान तीन गुनी शीघ्रता से दिया जाएगा। ये केवल शिक्षा के माध्यम से ही होगा।
(१६) पाठ्य पुस्तकों को कहाँसे लाओगे?
पर्याप्त विद्वान हैं; जो लिखेंगे। आज शासन यदि विज्ञापन दें, तो देखिए कितने विद्वान आगे आएंगे। हर ग्रीष्म की छुट्टियों में पुस्तक अनुवादित की जा सकती है।
(१७) अफ्रिका के ४६ देश पिछडे क्यों हैं?
क्यों कि उनके सारे छात्र परदेशी भाषाओं में पढते हैं।

(१८) क्या आप हमारे यु. पी. ए. के नेतृत्व को दोष दे रहे हैं?
नहीं। जो हो चुका, हमारा भाग्य था। अब हम जगे तभी से सबेरा मानता हूँ।

(१९) पारिभाषिक शब्द क्या संस्कृत से लाओगे?
बिलकुल। इसे मैं चुनौती मानता हूँ। डॉ. रघुवीर और साथियों ने २ लाख शब्द बनाए हैं।
थोडासा काम बचा है। हरदेव बाहरी के शब्द कोश भी है। मॉनियर विलियम्स का कोश भी है।
(२०) फारसी या अरेबिक से क्यों नही?
कमाल पाशा ने तुर्कस्थान के लिए अरबी-फारसी का, कठोर प्रयास किया था। असफल रहा। उसने बहुत प्रयास के बाद इन भाषाओं को विज्ञान के लिए अनुचित बताया था।
(२१) हिन्दी के सिवा अन्य प्रादेशिक भाषाओं में कैसे काम आएंगे संस्कृत के पारिभाषिक शब्द?
सभी भाषाओ में संस्कृत के पारिभाषिक शब्द ही सर्वोत्तम और समान हैं। अनेक विषयों में आज भी चलते हैं।

(२२) आपने अंग्रेज़ी क्यों पढी?
पढने पर त्रुटियाँ पता चली। और कुछ संस्कृत जानने के कारण ही समझ पाया, कि, अंग्रेज़ी की त्रुटियाँ कितनी है। और भारतकी कितनी हानि हो रही है।
(२३) परदेश जानेवालों का क्या?
जा सकते हैं। बचे हुए ३-४-५ वर्ष लगाकर अपनी रुचि की कोई भी भाषा सीख सकते हैं।
वैसे केवल अंग्रेज़ी की टोपली में सारे अण्डे ना रखें।
(२४) परदेश जाने से क्या लाभ नहीं है?
लाभ अधिकतर वैयक्तिक है। भारत का भी कुछ लाभ है। ऐसा लाभ भी प्रबंधित रीति से ही लिया जाए। बिना योजना नहीं।
(२५) पर संसार की अन्य उन्नत भाषाएँ, जैसे जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, चीनी, जापानी इत्यादि भी उपेक्षित ना करें।
विशेष हमें चीनी जानने की सर्वाधिक आवश्यकता है। सीमापर उनकी हलचलें समझने के लिए। चौकस होने के लिए।

स्थूल विचार रखे हैं। सूक्ष्मता का शासन विचार करें।
अभी अभी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमरिका के सम्मेलन में प्रमुख वक्ता का दायित्व निर्वहन कर के लौटा हूँ।
जय हिन्द। जय हिन्दी।