हमारे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जैसी मिट्टी अभी पलीत हुई है, वैसी पहले कभी नहीं हुई। एक विशेष अदालत ने फैसला दिया है कि इस ब्यूरो के उस अधिकारी की जांच होनी चाहिए, जिसने टेलिकॉम सचिव श्यामल घोष और तीन टेलिकॉम कंपनियों के विरुद्ध झूठा आरोप-पत्र बनाया और उन्हें किसी के इशारे पर बदनाम करने की कोशिश की। यह आरोप-पत्र इसलिए बनाया गया था कि अटलबिहारी वाजपेयी सरकार को बदनाम किया जा सके। यह आरोप-पत्र मनमोहन सिंह सरकार के जमाने में बनवाया गया था। उस समय टेलिकाम मंत्री कपिल सिब्बल थे। वर्तमान वित्तमंत्री अरुण जेटली का दावा है कि यह मुकदमा सिब्बल के इशारे पर चलवाया गया था। सिब्बल ने इस आरोप को सिरे से रद्द कर दिया है।
सिब्बल पर लगा आरोप कहां तक सत्य है, अभी उसके ठोस प्रमाण सामने नहीं आए हैं लेकिन जज ओ.पी. सैनी ने अपने 235 पृष्ठ के फैसले में इस आरोप के बखिए उधेड़ दिए हैं कि टेलिकाम सचिव श्यामल घोष ने तीन टेलिकाम कंपनियों को स्पेक्ट्रम संबंधी जो गैर-कानूनी रियायतें दी थीं, उससे भारत सरकार को हजारों करोड़ रु. का घाटा हुआ है। जेटली का कहना है कि जब इस मामले में कांग्रेस के भ्रष्टाचार का भांडा फोड़ होने लगा तो घबराए हुए सिब्बल ने एक सेवा-निवृत्त जज को पकड़ा ताकि मुकदमा चलाकर अटल सरकार को बदनाम किया जा सके। यह मामला उस समय का है, जब प्रमोद महाजन टेलिकाम मंत्री थे।
जज ने अपने फैसले में कहा है कि सीबीआई अधिकारी ने ऐसा कोई भी ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया, जिससे यह सिद्ध हो कि श्यामल घोष ने कोई गड़बड़ी की हो। घोष तो इतने ईमानदार और साहसी अफसर थे कि उन्होंने अपने मंत्री महाजन की राय के विरुद्ध भी अपनी राय कई बार दर्ज करवाई। जज की राय है कि सीबीआई अधिकारी आर ए यादव के खिलाफ पूरी जांच होनी चाहिए।
मेरी सोच यह है कि सिर्फ जांच काफी नहीं है। यदि सच्ची जांच हो तो उसमें यह खोजा जाना चाहिए कि यादव को किसने इस्तेमाल किया है? यदि कपिल सिब्बल या कांग्रेस के बड़े नेताओं के भी नाम खुल जाएं तो उन सबकी चल-अचल संपत्तियां तुरंत जब्त की जानी चाहिए और वे सब मुआवजे के तौर पर श्यामल घोष और तीनों टेलिकाम कंपनियों के बीच बांट दी जानी चाहिए। श्यामल घोष की जो बदनामी हुई है, उसकी भरपाई यह मुआवजा भी नहीं कर पाएगा लेकिन इसका एक सुपरिणाम जरुर होगा कि किसी भी ईमानदार अफसर पर आगे कोई उंगली उठाने के पहले सौ बार सोचेगा।