सनातनी धर्म स्थलों पर हमले के निहितार्थ

0
36

डॉ. रमेश ठाकुर


मंदिर पर हमले की जितनी निंदा की जाए कम है। 3 जून 2023 वह मुकर्रर तारीख थी जिसने कनाडा-भारत के रिश्तों में गहरी खाई खींची। इस तारीख को कनाडाई हुकूमत का एक पाला पोसा खालिस्तानी आतंकी मारा गया, जिसका का दोष भारत के माथे पर मढ़कर उनके प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के पुराने और पांरपरिक संबंधों की बली चढ़ा दी। मौजूदा कनाडाई मंदिर पर हमला उसी कड़ी का हिस्सा है जो बीते कुछ वर्षों से विदेशी धरती पर जारी है।

विदेशी धरा पर सनातनी संस्कृति और मंदिरों पर हमला बड़े षडयंत्र की ओर इशारा करता है। फिलहाल, कनाडा के ब्रैम्पटन स्थित हिंदू मंदिर पर खालिस्तानियों की नापाक खुराफात और उनके प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की कारगुजारी ही कही जाएगी। ये हमला सीधे-सीधे इशारा करता है कि भारत-कनाडा के रिश्ते अब किस कदर खराब हो चुके हैं। बेशक, भारतीय हुकूमत मंदिर पर हमले के बाद जस्टिन ट्रूडो से हिंदू मंदिरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की गुजारिश करे, लेकिन ये कृत्य अब रूकने वाले इसलिए नहीं हैं क्योंकि ऐसे हमले न सिर्फ कनाडा में हो रहे हैं बल्कि समूचे संसार में बदस्तूर जारी हैं।

 
विदेशों में सनातनी स्थलों पर जारी हमलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदू मंदिरों पर हमला अब ग्लोबल ट्रेंड बन गया है। ये हमले निश्चित रूप से स्वीकार्य, निंदनीय और दुखदाई हैं? कंट्टरपंथियों को गंदी राजनीति सोच छोड़कर सामाजिक सौहार्द के खातिर ये कृत्य छोड़ने होंगे नहीं तो विदेशी धरती मंदिर विहीन हो जाएगी। सन् 1980 तक कनाडा में 2400 सौ से अधिक छोटे-बड़े मंदिर थे, जो सन-2010 तक भी यथावत रहे लेकिन पिछले 12 महीनों में इन मंदिरों की संख्या मात्र 1380 रह गई है। इस ओर ध्यान तब गया, जब रविवार को हमला हुआ। कनाडाई खालिस्तानी हिंदूओं की निशानी और उनका संपूर्ण वजूद उजाड़ने पर आमादा हैं। कनाडा में खालिस्तानी खुलेआम अपना अलग झंडा फहराते हैं, वो इसलिए क्योंकि उन्हें सरकार का खुला समर्थन जो हासिल है।

 
कनाडा में खालिस्तानियों के बिना सहयोग से कोई सियासी दल सरकार नहीं सकता। ट्रूडो के सामने सबसे बड़ी समस्या तो यही है? जबकि, नंबर के हिसाब से कनाडा में हिंदू तीसरी बड़ी आबादी है। कुल जनसंख्या करीब ढाई फीसदी के आसपास है। 2021 की जनगणना में हिंदुओं की आबादी 828,000 बताई गई थी। भारत और कनाडा के बीच 11173 किलोमीटर का फासला है लेकिन ये फासला पहले के मुकाबले अब और लंबा हो गया। दोनों देशों में कभी संबंध इतने मधुर होते थे कि कनाडा को दूसरा पंजाब कहते थे पर, अब दिलों में दूरी इतनी हैं कि 11173 किमी की दूरी भी दोगुनी लगने लगी है। कनाडा की कायराना हरकत पर वह देश भी निंदा कर रहे हैं जिनके यहां भी लगातार हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे हैं। अमेरिका ने भी निंदा की है. वहां चुनाव है इसलिए हिंदुओं को अपने ओर साधने की कोशिशें हैं जबकि उनके यहां भी हाल में कई मंदिर तोड़े गए।


हाल में सनातनी धार्मिक स्थलों पर हुए हमलों की लिस्ट लंबी है, मात्र एकाध वर्षों के दरम्यान विदेशों में कई मंदिर ध्वस्त किए गए। अभी कुछ महीने पहले ही खालिस्तानियों और कट्टरपंथियों द्वारा अमेरिका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, ब्रिटेन और बांग्लादेश जैसे देशों में हिंदू मंदिरों पर हमला किया गया। इन सभी हमलों की भारत सरकार द्वारा मुखालफत की गईं, उनके भारतीय उच्चायुक्तों को तलब कर उन्हें चेताया भी? बावजूद इसके हमले रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। मंदिर तोड़ने का चलन अब कुछ ऐसा चल पड़ा है, अन्य देश भी देखा-देख अपने यहां हिंदू मदिरों पर हमले करवाने लगे हैं। ऐसे देश जो हमेशा से हमारी जी हुजूरी करते रहे, आर्थिक मदद भी समय-समय पर हमसे लेते रहे हैं, वह भी हिंदु मंदिरों को तुड़वाने से बाज नहीं आ रहे हैं। मलेशिया में ऐसी ही घटना हुई। पिछले महीने कोलंबिया में भी एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर को जमींदोज कर दिया गया। वहीं, अगस्त में पाकिस्तान के कराची में भी प्राचीन हनुमान मंदिर को कट्टरपंथियों ढहा दिया। अफगानिस्तान के काबुल के नजदीक बहने वाली एक नदी के तट पर बने विशाल प्राचीन मंदिर को भी तालिबानियों ने तहस-नहस कर दिया।

 
बहरहाल, विदेशों में हिंदू मंदिरों को तोड़ने का सिलसिला बीते वर्ष-2023 जून के बाद कुछ ज्यादा ही शुरू हुआ। दरअसल, जून में खालिस्तानी आंतकी हरदीप सिंह निज्जर का कनाडा में मर्डर कर दिया गया था। तब, मर्डर का सीधा आरोप भारत पर मढ़ा गया। कुल मिला कर तभी से दोनों मुल्के के रिश्तों में तल्खी बढ़ी। उसके बाद तो कनाडा में लगातार हिंदु मंदिर निशाने पर हैं। आतंकी अच्छे से जानते हैं कि सनातनी लोगों की भावनाएं किससे आहत होती हैं। तभी, वो हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों को टारगेट करने लगे हैं। एक सर्वे रिपोर्ट बताती है कि पिछले डेढ़ वर्ष में विदेशी धरती से करीब 5000 हजार छोटे-बड़े मंदिरों को ढहाया गया। अफगानिस्तान में तो तकरीबन हिंदू मंदिरों का सफाया हो चुका है। उसी राह पर पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हैं। बांग्लादेश में मंदिर चुनचुन कर तोड़े जा रहे हैं। वहां, भी सरकार का खुला समर्थन है।

गौरतलब है कि कनाडाई मंदिर पर हमले की निंदा वहां के विपक्ष ने भी की है लेकिन उनका रवैया गुप्त खाने सरकार के ही पक्ष में है। कनाडा के एक हिंदू सांसद रामचंद्र आर्या ने अपनी सरकार को खालिस्तानियों पर अंकुश लगाने की मांग की है लेकिन उनकी मांग के चौबीस घंटे बाद ही उन्हें भी चुप रहने की धमकी खालिस्तानी आंतकियों द्वारा दी गई। उसके बाद वह भी चुप हो गए। कुल मिलाकर अब कनाडा स्थिति हिंदू के धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करना तो दूर की बात, विरोध में आवाज उठाने वाला भी वहां कोई नहीं पर, इतना तय है कनाडाई प्रधानमंत्री जिन खालिस्तानियों को छूट दे रहे हैं, भविष्य में यही उनकी मुसिबत भी बनेंगे। कनाडा सरकार में सार्वजनिक रूप से हिस्सेदारी की मांग खालिस्तानी उठाने लगे हैं। वह वक्त शायद ज्यादा दूर नहीं, जब अफगान की तरह कनाडा भी खालिस्तानियों की गिरफ्त में होगा? जस्टिन ट्रूडो का दीवाली के दिन हिंदू मंदिर जाना, त्यौहार की बधाई-शुभकामनाएं देना, ये सब उनकी गंदी कूटनीतिक रणनीतियों का हिस्सा ही कहा जाएगा। कनाडा ने जबसे भारत को दुश्मन देश माना है, तभी से अंदरूनी हालात इतने बिगड़ चुके हैं जिन्हें आसानी से अब नहीं सुलझाया जा सकता।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here