“आई एस आई” आतंकवाद का पोषक

अधिक पीछे न जाते हुए केवल पिछले 2-3  वर्ष की गुप्तचर विभाग की सूचनाओँ में आई.एस.आई द्वारा हमारे देश में आतंकवादियों को उकसाने व भड़काने के महत्वपूर्ण समाचार आये थे । जिससे राष्ट्रीय पत्रकारिता  के सकारात्मक संकेत मिलने से मीडिया जगत की अनेक भ्रांतियाँ दूर हुई। साथ ही केंद्रीय सत्ता में  परिवर्तन से भी समाज में एक सकारात्मक  वातावरण बनने से उसमें राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध जागा है । 

मुगलकालीन इतिहास को अलग करते हुए वर्तमान में पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था “इंटर सर्विसेस इंटैलिजेंस” (आई.एस.आई.) द्वारा पोषित जिहाद रूपी मुस्लिम आतंकवाद की गंभीर समस्या से देश पिछले लगभग पिछले 46 वर्षों से जूझ रहा है । आई.एस.आई.  बंग्लादेश के निर्माण (1971) से ही जिहाद के लिए अपने एजेंटों द्वारा भटके हुए कट्टरपंथी मुसलमानों को लोभ व लालच देकर अनेक साधनों व विभिन्न माध्यमों से बहका कर देश के विभिन्न क्षेत्रों में धीरे धीरे अपने स्लीपिंग सेल बनाने में सफल होती आ रही है । बंग्लादेश के निर्माण व अपनी हार से विचलित होकर उस समय (1971) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही आई.एस.आई. का दुरुपयोग भारत के पंजाब व कश्मीर में अलगाववाद व आतंकवाद बढ़ाने में किया । आई.एस.आई. के सुझाव पर जनरल जिया उल हक़ को योग्य आधिकारियों की अवहेलना करते हुए भुट्टो ने सेना का मुखिया बनाया था । बाद में जिया उल हक़ पाक के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने देश में मुस्लिम कट्टरता का बढ़ावा देते हुए ‘ईश निंदा कानून’ भी बनाया और उसी जिहादी मानसिकता व बदले की भावना के वशीभूत आई.एस.आई. के माध्यम से भारत को एक न ख़त्म होने वाले छद्म युद्ध में धकेल दिया, जो अभी तक जारी है ।

इसी भारत विरोध (हिन्दू विरोध) व कश्मीर को जीतने के प्रचार से पाकिस्तानी जनता को लुभाते रहकर जिया उल हक़ व आगे आने वाले अन्य शासक भी वहाँ सरकार चलाते रहे। इन सबसे आई.एस.आई.  सेना व सरकार से भी अधिक शक्तिसम्पन्न होती चली गयी । जिया उल हक़ ने आई.एस.आई. को नशीले पदार्थों व हथियारों  का अवैध व्यापार करवाने में भी सहयोग किया । सन 90 के दशक के समाचारों  के अनुसार ही आई.एस.आई. द्वारा लगभग 80 आतंकवादी प्राशिक्षण केंद्र अफगानिस्तान सहित पाक व पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चलाये जा रहें थे । 1984 में कश्मीर की कथित आजादी के लिए वहाँ जंग छेड़ी गयी और 1990 में तो हिंसा का भरपूर नंगा नाच हुआ । उस समय 123 आतंकवादी संगठन कश्मीर में काम कर रहे थे और विभिन्न पाकिस्तानी संगठनों द्वारा करोड़ों रुपयों की सहायता भेजी गयी थी इस सब में सर्वाधिक योगदान आई.एस.आई. का ही रहा था ।

  1992 की एक अमरीकी रिपोर्ट के संदर्भ से कश्मीर के पूर्व राज्यपाल श्री जगमोहन जी की किताब “माय फ्रोज़न ट्रॉब्लेंस इन कश्मीर” के तृतीय संस्करण से ज्ञात होता है कि आई.एस.आई. के पास उस समय लगभग 3 अरब अमरीकी डॉलर की विराट पूँजी थी जो कि पाकिस्तान के रक्षा बजट से भी 5 गुना अधिक थी और वह अधिकांश नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार से ही कमाई गयी थी । वह सिलसिला अभी भी जारी है और उसमें नकली करेंसी व अवैध हथियारों के व्यापार से तो अब और न जाने कितने अरब डॉलरों की सम्पदा द्वारा वह अनेक जिहादी योजनाओं को अंजाम देने में लगी हुई है । आज सम्पूर्ण भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आई.एस.आई. ने अपने एजेंटों व कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आतंकवादी संगठनों का भरपूर जाल फैला रखा है।

पूर्व में भी गुप्तचर विभाग की रिपोर्टों के आधार पर आये समाचारों से यह भलीभाँति ज्ञात होता रहा है कि आई.एस.आई.  ने अनेक आतंकवादी संगठनों के बल पर हजारों दंगे व सैकड़ों बम विस्फोटों द्वारा भारत में दहशतगर्दी फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । कश्मीर का लगभग हिन्दू विहीन होना आई.एस.आई.  के दुःसाहस का स्पष्ट प्रमाण है।

आई.एस.आई.  ने लगभग चार दशक में हमारे देश के हज़ारों सुरक्षाकर्मियों व निर्दोषों के लहू को बहाने के अतिरिक्त अरबों रुपये की सरकारी व व्यक्तिगत सम्पतियों को नष्ट किया है । ऐसे में सैकड़ों आतंकवादियों की धरपकड़ भी हुई और मारे भी गए । सैकड़ों की संख्या में इनके एजेंट भी विभिन्न स्थानों से समय समय पर हमारे सुरक्षाकर्मियों द्वारा पकडे भी जाते रहें हैं । साथ ही साथ सैकड़ो / हज़ारों की संख्या में वैध वीसा पर भारत आये पाकिस्तानी नागरिक वीसा अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी यहीं छिप कर रह रहें हैं यह भी कमोवेश आईएसआई के ही षडयंत्र का ही एक भाग हो सकता है।

 नवीन समाचारों के अनुसार मुस्लिम आतंकवादी संगठन ‘ इंडियन मुजाहिदीन ‘ को अब आई.एस.आई. देश में दंगे फसाद व बम ब्लास्ट आदि से दहशत फैलाने के लिए स्वयं आर्थिक सहायता न करके उनको विभिन्न अपराधों जैसे अपहरण, फ़िरौती व लूटपाट आदि से धन जुटाने के लिए उकसा रही है।

 याद रहे कि इन मुस्लिम आतंकवादियों को अब तक आई.एस.आई.  व लश्कर-ए-तैयबा भारी मात्रा में हथियार, विस्फोटक व अन्य आर्थिक सहायता देती आ रही थी । गुप्तचर विभाग के अनुसार इंडियन मुजाहिदीन का मासिक बजट 50 करोड़ से 150 करोड़ रूपये के लगभग होता था । अब कुछ वर्षों से ये संगठन उनके अनुसार जिहादी गतिविधियों को कार्यरूप नहीं दे पा रहे है तो उन्होंने इनके बजट में कटौती की है साथ ही आई.एस.आई.  ने यह सन्देश भी दिया है कि अगर वे (इंडियन मुजाहिदीन) उनके मंसूबे (भयानक जिहादी घटनाओं द्वारा तबाही ) को भारत में अन्जाम देने में सफल हुए तो वे उनको बजट की भरपाई पूरी कर देंगे।

इससे यह तो स्पष्ट ही होता है कि पाकिस्तान किसी भी प्रकार से जिहाद के लिए भारत में अपनी आतंकवादी गतिविधियों से पीछे हटना नहीं चाहता । क्योंकि वह हमारे देश को हज़ार घाव देने की मानसिकता से बाहर निकलना नहीं चाहता इसलिए वह अपनी गुप्तचर संस्था आई.एस. आई. को सक्रिय किये रखता है। परिणामस्वरूप प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पाक गुप्तचर एजेंसी सिखों के वेश में आतंकियों को तैयार करके हमारे देश में बड़े पैमाने पर आतंकी घटनाओं द्वारा दहशत फैला कर पूर्व की भाँति  (1980 के लगभग)  हिन्दू -सिख  संबंधो में पुनः कड़वाहट घोलने के षड्यंत्र भी रचती रहती है।

केंद्र में मोदी जी की सशक्त सरकार बनने के बाद आतंकियों के विरुद्ध सुरक्षा बलों की अत्यधिक सजगता के कारण आतंकी आक्रमणों को कुचले जाने से, आई.एस. आई.  व  पाक परस्त आतंकी संगठनों की बेचैनी बढ़ गयी है । इसीलिए ये सब एकजुट होकर और कुछ सिख आतंकी संगठनों का साथ लेकर भारत के विभिन्न भागों में अपने जिहादी षडयंत्रो को अंजाम देने के कोई भी अवसर  छोड़ना नहीं चाहते। इसके लिए आवश्यक निर्देशों के अतिरिक्त आर्थिक सहायता भी इन संगठनों को आई.एस. आई. उपलब्ध कराती है।

पिछले वर्ष मोदी जी के “नोटबंदी” संबंधित कठोर निर्णय का स्वागत होना चाहिये क्योंकि आई.एस.आई. के वर्षों पुराने “जाली मुद्रा” से सम्बंधित षडयंत्रों की विस्तृत जानकारी देश की जनता को है ही नहीं। जिसके अंतर्गत पिछले लगभग 25 वर्षों से ‘जाली मुद्रा’  के माध्यम से हमारी अर्थव्यवस्था को क्षति पहुँचाने के साथ साथ आतंकवादियों की भी आर्थिक सहायता होती आ रही है। जिससे आतंकवादियों के सैकड़ों संगठन अपने हज़ारों स्लीपिंग सेलों द्वारा लाखों देशद्रोहियों को पाल रहे हैं। हमारी सुरक्षा एजेंसियों के संदर्भ से अक्टूबर 2014 को छपे एक समाचार से यह भी ज्ञात हुआ था कि आई.एस.आई. हज़ारों करोड़ रुपये से अधिक के नकली नोट प्रति वर्ष छापती है और इनको 10% के  मूल्य पर बिचौलियों को देती है। जिस जाली मुद्रा को दाऊद इब्राहिम के इक़बाल काना जैसे एजेंट अपने अपने नैटवर्क के माध्यम से 20% से 50% तक कमीशन पर देश के विभिन्न भागों में भेजते हैं। अगर पिछले 25 वर्षों के पुलिस रिकॉर्ड देखे जायें तो इस काम में आई.एस.आई. ने भारत के अधिकांश पाकिस्तान परस्त मुसलमानों को जोड़ा है जो बार बार पकड़े भी गये और कठोर कानूनों के अभाव में  छूटने के बाद फिर इन देशद्रोही/आतंकवादी कार्यों में संलिप्त पाये जाते रहे है। हमारी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जाली मुद्रा पर सितंबर 2014 में एक विस्तृत डोजियर तैयार किया गया था, जिसके अनुसार आई.एस.आई. उन्हीं प्रिंटिंग प्रैस में भारतीय नकली नोट छपवा रही थी जहाँ पाकिस्तान के अपने नोट छपते हैं।

 अगर भारत सरकार दृढ़ इच्छा शक्ति से देश के कोने कोने में सख्ती से छानबीन करे तो अनेक आतंकवादी व इनके गुप्तचरों के अतिरिक्त संभवतः  कुछ सफेदपोश नेता, अधिकारी व समाजसेवी आदि भी इनके एजेंट निकल सकते हैं। जबकि पिछले 35- 40 वर्षों के समाचारों के अनुसार  इनके हज़ारों एजेंट विभिन्न नगरों से पकड़े जाते रहे हैं पर दुर्भाग्य से साक्ष्यों के अभाव में  ऐसे अधिकतर विचाराधीन अपराधी ठोस कार्यवाही से बचते रहे और छोड़े जाते रहे।

आई.एस.आई. को आतंकवादी संगठनों का जनक / पोषक कहा जाय तो गलत नहीं होगा । परंतु हमारे सुरक्षा बलों की सक्रियता ने इस प्रकार इन जिहादियों की  विशेषतौर पर इनकी  गतिविधियों को नियंत्रित करके राष्ट्रवादी समाज का भी मनोबल बढ़ाया है उससे राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सामान्य समाज भी अब जागरुक होने लगा है।

अतः गुप्तचर संस्थाओं द्वारा प्राप्त जिहादी शत्रुओं की योजनाओं को समझो और इन  चुनौतियों को स्वीकार करते हुए धर्म व देश की रक्षा के लिए सावधान रह कर अपने अपने स्तर से तैयार रहो।  सरकार के साथ साथ सभी राष्ट्रवादियों का सामूहिक कर्तव्य है कि इन जिहादी दानवों से राष्ट्र की सुरक्षा में अपना यथासंभव योगदान करें । यह मत सोचिए कि यह कार्य केवल सरकार का है, बल्कि यह सोचें कि यह मेरी मातृभूमि है तो इसकी रक्षा करना ही मेरा धर्म एवं कर्तव्य के साथ साथ मेरा जन्मसिद्ध अधिकार भी है। 

विनोद कुमार सर्वोदय

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