डा.ए.डी.खत्री
सरकार और न्यायालय और दोनों के समक्ष चुनौती
भारत में अंग्रेज जो क़ानून बना गए, हमारी सरकारें उन्हीं से अपनी रोजी- रोटी चला रही है. अंग्रेजों ने एक कानून बनाया कि विकास कार्यों जैसे सड़क,बाँध ,खदान , शासकीय कार्यालय या संस्थाएं आदि के लिए सरकार भूमि ले सकती है जिसका मुआवजा जिले के कलेक्टर द्वारा निर्धारित दर से दिया जायगा . सार्वजानिक या सरकारी हित के कारण किसी व्यक्ति की आपत्ति का कोई महत्त्व नहीं है अर्थात सरकार नाम मात्र का मुआवजा देकर किसी की भी भूमि व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध जबरन ले सकती है . स्वतन्त्र भारत में भी इस क़ानून के तहत अनेकों किसानों की भूमि का अधिग्रहण होता आ रहा है . इसी के अंतर्गत नोएडा प्राधिकरण ने भी उद्योग के नाम पर किसानों से भूमि प्राप्त की और उसे बिल्डरों को बेच दिया . सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिग्रहण को अवैध ठहराया है तथा आदेश दिए हैं कि किसानों कि भूमि वापिस कि जाये तथा बिल्डरों ने मकानों , फ्लैटों या दुकानों की बुकिंग में लोगों से जो राशि ली है , उसे ब्याज समेत लौटाएँ . न्यायालय ने इस अधिग्रहण में किसानों से नोएडा प्राधिकरण के अधिकारिओं द्वारा जबरन सस्ते रेट पर जमीन लेकर बिल्डरों को ऊंचे मूल्य पर बेचना अनुचित पाया क्योंकि इसमें स्थानीय निवासियों अर्थात किसानों के हितों को कोई लाभ नहीं हो रहा है .
न्यायालय के समक्ष अपने आदेश का पालन करवाने की पहली चुनौती है किसानों की भूमि वापस करवाना . भूमि प्राधिकरण ने भारी मूल्य लेकर बिल्डरों को बेच दी है और बिल्डरों ने उस पर फ़्लैट बना दिए हैं या बन रहे हैं . भूमि पर सड़कें , सीवेज , आदि भी बन गए हैं . किसान कहते हैं की उन्हें उनकी खेती की भूमि वापिस दी जाय .इस भूमि को पुनः कृषि भूमि में बदलना कैसे संभव होगा ?अवमानना के लिए न्यायलय कुछ अधिकारियों को सजा भले ही दे दे परन्तु किसानों की कृषि भूमि वापिस करना संभव नहीं दिखता है . करोड़ों रुपये व्यय करके बिल्डरों ने निर्माण कार्य किये हैं . उस को तोड़ कर ग्राहकों का पैसा वापस करना भी आसान नहीं दिखता है और कुछ बिल्डर इतने सक्षम भी नहीं हो सकते हैं . अधिक से अधिक न्यायालय उन्हें जेल में बंद करवा सकता है , उनकी संपत्ति कुर्क करवा सकता है या उन्हें दिवालिया घोषित करके सब कर्जों से मुक्त कर सकता है . अतः यह देखना अत्यंत दिलचस्प होगा कि न्यायालय किसानों और निवेशकों के हितों कि रक्षा कैसे करते है या उनके हाल पर लुटा -पिटा छोड़ देते है.
जब किसी ढेर में तीली लगाईं जाती है तो आग धीरे- धीरे सुलगती है और कुछ समय में लपटों में बदल जाती है . उक्त निर्णय के परिप्रेक्ष्य में पुराने जमीन अधिगृहण के मामले भी आते जायेंगे और सारे देश में किसान आन्दोलन फ़ैल जायेंगे . उनका समाधान कैसे करना है , न्यायलयों के समक्ष यह तीसरी चुनौती है .
सरकार के समक्ष यह चुनौती है कि कि भविष्य में वह भूमि अधिग्रिहन कैसे करेगी और उद्यमियों को कैसे विशवास दिलाएगी कि उसकी भूमि भविष्य में सुरक्षित रहेगी और बंगाल के सिंगूर में टाटा या नॉएडा में बिल्डरों कि भूमि वापिसी का संकट उनके समक्ष नहीं उत्पन्न होगा . यदि उद्योग के लिए पर्याप्त भूमि नहीं मिलेगी तो भविष्य में विदेशी क्या देसी उद्यमी भी साहस नहीं कर पायेंगे . यदि बिल्डर किसानों से सीधे जमीन लेंगे तो जितनी भूमि उन्हें मिलेगी , उस पर मकान -फ़्लैट बना कर बेच देंगे . वहां न तो सड़कें होंगी , न सीवेज . सारे देश में ऐसा ही निर्माण कार्य हो रहा है और लोग अनेक समस्याओं के शिकार हो रहे हैं . भविष्य में तो समन्वित विकास करके एक अच्छा शहर बसाने का सपना भी नहीं देखा जा सकेगा .
यदि किसानों को उचित मुआवजे मिल जाते और सभी के हितों का ध्यान रखा जाता तो अधिक उपयुक्त होता . यदि भूमि लेने से किसी व्यक्ति की आजीविका ही समाप्त हो रही है ती सरकार को चाहिए की उन्हें उचित नौकरी दिलवाए या स्वयं दे . उ.प्र. में यह अभी भी किया जा सकता है अन्यथा सरकार की प्रतिष्ठा एक लुटेरे के रूप में स्थापित हो जायगी . तीस वर्षों से बंगाल में जमीं कम्युनिस्ट सरकार एक सिंगूर के झटके में साफ़ हो गई . देश में अधिकांश समय कांग्रेस की सरकारें रही हैं . वे स्वयं इस नियम का दुरूपयोग करके बिना पर्याप्त मुआवजा दिए आजादी के बाद से लोगों का शोषण करती आ रही हैं . आज राहुल गाँधी को इसमें लूट दिखाई दे रही है अपनी सरकार से कानून बदलवाने की अपेक्षा राजनीतिक दांव पेंच चलाने में उन्हें बड़ा मजा आ रहा है . लोगों को भ्रमित करने के स्थान पर यदि ये नेता अपनी १०% बुद्धि भी देश के हित में लगाते तो हम आज इतनी अव्यवस्थाओं का शिकार न होते . देश का यही दुर्भाग्य है .