लंगोटी का अर्थशास्त्र

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पंडित सुरेश नीरव

जिसमें कुछ हुनर होता है उसको कामयाबी शर्तिया मिलती है। चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं। और जो पैदाइशी फिसड्डी होते हैं उन्हें कितनी भी कबड्डी खिलाई जाए वे फिसड्डी होतो हैं तो फिसड्डी ही होते हैं। भैयाजी पैदाइशी हुनरमंद हैं। होशियारी के मल्टीचैनल मॉडल।होनहार बिरवान के होत चीकने पात। इस फार्मूले के मुताबिक चीकनेपातवाले हमारे भैयाजी के पांव पालने में ही लोगों को दिखने लगे थे। हरकतों के हाथी पांव लेकर पैदा हुए थे भैयाजी। पांव पसारने की ललितकला के ऐसे उस्ताद कि पांव पसारने का करिश्मा कभी चादर की लंबाई का मुहताज नहीं रहा।भैयाजी ने हमेशा पहले चादर बड़ी की फिर पांव पसारे। झुग्गी-झौपड़ी से चलकर आलीशान कोठी तक का सधा हुआ सफर इनकी हुनरमंदी का ही हैरतअंगेज कारनामा है। भैयाजी कहते हैं कि जब गांधीजी एक लंगोटी के बल पर पांचसौ के नोटों पर आ गए-छा गए तो हम गांधीवादी कम-से-कम इन नोटों को अपने लॉकरों में सजा तो सकते हैं। भले ही इस जुनून में सजा हो जाए। भैयाजी बिना पूंजी के नोट छापने और चांदी काटने के जन्मजात विशेषज्ञ हैं। मुद्रास्फीति और मंहगाई को वे फिसड्डियों की बहानेबाजी मानते हैं। उनका मानना है कि देश में आजादी के बाद अमीरों की संख्या में इजाफा हुआ है। जो कमाना-धमाना नहीं जानते मंहगाई और मुद्रास्फीति को लेकर स्यापा ऐसे ही फिसड्डी लोग करते हैं। हमारे भैयाजी वित्तमंत्री की तरह मंहगाई-जैसी ओछी बातों को सीरियसली नहीं लेते हैं। और हर डिजायन के बजट में अपनी दाल गला लेते हैं। भले ही विरोधी दाल में काला होने की सीबीआई जांच का भजन कोरस में गाते रहें। भैयाजी का मानना है कि जो न खुद कमाना जानते हैं और न दूसरों को कमाने देते हैं वही इस देश की गरीबी के मूल कारण हैं। इनके कारण ही देश अमीर नहीं हो पा रहा है। अगर हर दमी भैयाजी की तरह कमाऊ हो जाए तो देश की प्रतिव्यक्ति आय अपने आप बढ़

जाएगी। नैतिक-निठल्ले लोगों को देखकर भैयाजी लाल कपड़े को देखकर सांड की

तरह विफर जाते हैं। भैयाजी ने कृष्ण को अपना रोलमॉडलमाना हुआ है। वे कहते

हैं कि जब एक गाय चरानेवाला अपनी प्रतिभा के बूते द्वारिकाधीश बन सकता है

तो झुग्गी-झौंपड़ी में रहनेवाला द्वारिका में दो-चार फार्म हाउस क्यों

नहीं बनवा सकता। भैयाजी पर्सनली चरम लंगोटवादी हैं। बिलकुल गांधीजी की

तरह। भैयाजी का मानना है कि बिना खड़ग बिना ढाल हमें साबरमती के संत ने

आजादी दिलवा दी। क्या था उनके पास। क्यों वायसराय उन्हें देखर खड़ा हो

जाता था। ये सब एक लंगोटी का जलवा था। लंगोटी गांधीजी की सिर्फ लंगोटी

नहीं थी। सत्य के तमाम प्रयोगों से तप कर निकली चारित्रिक निर्मलता का

प्रतीक-चिह्न थी गांधीजी की लंगोटी। आदमी जवान और जवानी का भले ही पक्का

न हो मगर उसे लंगोट का हमेशा पक्का रहना चाहिए। हनुमानजी से बड़ा

लंगोटाचार्य कौन हो सकता है। अणुधर्मी लंगोट के बूते ही उन्होंने सोने की

लंका जला डाल दी थी। गांधीजी ने भी लंगोटी के बल पर भारत से फिरंगी भगा

दिए। लंगोटी के सहयोग के बिना पतंजलि योग तक नहीं सधता। यकीन न हो तो

बाबा रामदेव से पूछ लीजिए। जो एक लंगोटी के बल पर सरकार को हिलाने पर

आमादा है। उनका मानना है कि एक अदद लंगोटी के बल पर ही सुग्रीव ने महाबली

बाली का राज्य छीन लिया था। भैयाजी भी लंगोट-एक्टीविस्ट हैं। वो कहते हैं

कि बाबारामदेव की लंगोटी चिदंबरम की लुंगी पर भारी पड़ेगी। भैयाजी का

मानना है कि जिस दिन देश का बहुसंख्यक लंगोटी में आ जाएगा देश से गरीबी

ऐसे ही चली जाएगी जैसे आज राजनीति से ईमानदारी चली गई है। हमारा देश जब

सोने की चिड़िया कहलाता था तब भी भारत के ऋषि-मुनि लंगोटी में ही रहा

करते थे। रावण पुष्पक विमान में उड़ता था। लंगोटी के बूते हनुमानजी खुद

ही सुपरसोनिक विमान बने हुए थे। लंगोटधारियों के जलवों ने ही इतिहास की

सेहत बनाई है। तिलका मांझी,विरसामुंडा और विनोबा भावे से लेकर शीबू सौरेन

तक सभी की पराक्रम गाथाएं सर्वशक्तिमान लंगोट से ही निकली हैं। भैयाजी का

मानना है कि लक्ष्मी का लंगोट में वास होता है। फिल्म इंडस्ट्री में जिन

वीरांगनाओं ने बहादुरीपूर्वक लंगोटी धारण करने की जुर्रत की जमाने ने

उनकी संपन्नता के सम्मान में यह कर कसीदे काढ़े हैं-एक तू ही धनवान गोरी

बाकी सब कंगाल। मीना कुमारी से मल्लिका शेरावत ज्यादा अमीर हो गईं। किसकी

बदौलत। आप भी अच्छी तरह जानते हैं। सूट-पेंटवालों से लंगोटीवाले तो हमेशा

अमीर रहे हैं। क्योंकि सूट-बूटवालों की आधी कमाई और लंगोटीभर कपड़ा तो

दर्जियों के पास स्विसबैंक में कालेधन की तरह डायरेक्ट चला जाता है।

हमारे मुहल्ले का एक जेबकतरा नगर का अव्वल तांत्रिक बन गया। उसका दावा है

कि वह एक भागते भूत की लंगोटी छीन लाया है। लंगोटी पूज्यनीय हो गई। और

लंगोटी के कारण तांत्रिक पुज गया। यह कोई नई बात थोड़े ही है। लंगोटी इस

देश में हमेशा ही पूज्यनीय रही है। लंगोटी अखाड़े में फहराने से पिद्दी

पहलवान की भी धाक जम जाती है। सोचता हूं सही मौके पर एक अदद अपनी गोपनीय

लंगोटी को मैं भी जन लोकपाल विधेयक की तरह सार्वजनिक कर दूं। वीआईपी बनने

की दमित इच्छा कब तक दबाए रखूं। लागा चुनरी में दाग। लोग दागदार चुनरी से

भी पब्लिसिटी हथिया लेते हैं। मैं तो जस-की-तस धर दीनी लंगोटियावाला

निरीह जीव हूं। सोचता हू कि मैं अमीर हो पाऊं या नहीं मगर अपनी एक लंगोटी

के जरिए। सिक्योरिटीचेक करनेवालों की मेहनत को तो मैं दिलचस्प बना ही

सकता हूं।

 

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