आतंकियों के ‘मजहब’ पर वामपंथियों की मुहर

राकेश सैन

हर आतंकी हमले के बाद रटा रटाया झूठ परोसा जाता रहा है कि ‘आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता।’ झूठ की इस विषैली खिचड़ी के रसोईये हैं देश के सेक्युलरवादी, जो बड़ी चतुराई से अपने वोट बैंक को बचाने का प्रयास करते हैं परन्तु पहलगांव में हिन्दू धर्म पूछ, पेंट उतरवा खतना चेक करके व कलमा पढ़वा कर हुई आतंकियों की आदमखोर हरकत ने आतंक का भी धर्म होता है, की सच्चाई को दिन के उजाले की तरह इतना साफ कर दिया है कि अब इनके वकील सेक्युलरवादी भी अप्रत्यक्ष रूप से बता रहे हैं कि ‘आतंक का धर्म’ होता है। सेक्युलरों विशेषकर वामपंथियों से जिस तरीके से इस हमले के पीछे देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ पनपे काल्पनिक   वैमनस्य का कारण बताना शुरु किया है ,उससे कुछ और हो न हो परन्तु इन

मार्क्सपुत्रों की वैचारिक हार दुनिया के सामने आ गई है।

चाहे दिखावे के लिए ही सही, वामपंथी पहलगांव में जिहादी हमले की निन्दा तो कर रहे हैं परन्तु इसके पीछे देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ फैली काल्पनिक वैर की भावना को कारण बताने की कोशिश कर रहे हैं। केवल इतना ही नहीं बल्कि पुलवामा व छत्तीसिंहपुरा में हुए आतंकी हमलों के पीछे सरकार को ही कटघरे में रख पहलगांव के ताजा हमले के पीछे सरकार को ही जिम्मेवार ठहराने की कुचेष्टा कर रहे हैं। वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं जब सेक्युलरवादियों विशेषकर वामपंथियों ने हिन्दू समाज का काल्पनिक भय दिखा कर आतंकी हमलों को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया हो। इन्हीं लोगों ने 1993 में हुए मुम्बई बम धमाकों के पीछे बाबरी मस्जिद के विध्वंस, गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस जलाए जाने को दुर्घटना, मुम्बई में हुए आतंकी हमले के पीछे आरएसएस का हाथ होना बताया था परन्तु  सभी जानते हैं कि समय बीतने के बाद विदेशी विचारधारा से लैस इन वामपंथियों के नैरेटिव झूठे पाए गए।

जहां तक पहलगांव हमले की बात करें तो, 22 अप्रैल 2025 की तारीख पहलगाम की घाटी में गूंजती चीखों और बारूद की गंध के साथ दर्ज हुई। पहलगाम का बैसरन, जहां कई परिवार अपने बच्चों संग छुट्टियां मना रहे थे, कुछ ही पलों में लाशों का मैदान बन गया। हिन्दू हो या नहीं, यह पूछकर हत्याएं की गईं। एक मासूम अपने पिता की लाश से चिपका रोता रहा, एक नवविवाहिता पति को बचाने की गुहार लगाती रही, आतंकियों ने कहा, जाओ, मोदी को बताना। यह हमला एक बार फिर हमारी आंखें खोलने के लिए पर्याप्त है। आतंकियों ने पर्यटकों से उनका धर्म पूछकर, खतना की पहचान कर निर्दोष हिंदुओं की निर्मम हत्या की। यह दृश्य किसी औरंगजेबकालीन दमन का नहीं, बल्कि 2025 के भारत का है। यह हमला घृणित मजहबी मानसिकता के चलते किया गया। वह मानसिकता जो काफिरों को जीने लायक नहीं समझती। पहलगाम का सत्य यह है कि यह आतंकी हमला होने पर भी एक वैचारिक युद्ध का चेहरा ही है। ऐसे दुस्साहसपूर्ण हमले यह स्पष्ट करते हैं कि आतंकी केवल बंदूक से नहीं लड़ रहे, वे विचारधारा के अस्त्र से एक संगठित वैश्विक संघर्ष चला रहे हैं जिसे हम केवल सीमित घटना समझने की भूल कर रहे हैं। आज हमारे पास यह न मानने का कोई कारण नहीं कि जिहाद केवल आतंक नहीं, बल्कि पूरी मानवता के विरुद्ध एक सभ्यतागत संघर्ष है।

पहलगाम का हमला न तो आकस्मिक है, न ही अलग-थलग। यह इस्लामी जिहाद के उस सुनियोजित एजेंडे का हिस्सा है जो हिंदुत्व और भारत की सांस्कृतिक आत्मा को मिटाने के उद्देश्य से वैश्विक समर्थन और स्थानीय सहानुभूति के सहारे कार्य कर रहा है। इस्लाम के कुछ मध्ययुगीन ग्रंथों और व्याख्याओं में ‘काफिर’ के प्रति जो दृष्टिकोण मिलता है, वह मित्रता नहीं, घृणा, बहिष्कार और अंतत: हत्या तक की स्वीकृति प्रदान करता है। यह केवल मजहबी आग्रह नहीं, राजनीतिक इस्लाम का वह संस्करण है जिसने मजहब को एक सैन्य अभियान में बदल दिया है।

ऐसे अभियानों का समय बेहद सोच समझकर चुना जाता है। फिर उसके अनुसार ही उन्हें क्रियान्वित किया जाता है। फिर गढ़ा जाता है अलगाववाद का, मुसलमानों पर अत्याचार किए जाने का झूठा विमर्श। अलग-अलग समय पर, अलग-अलग तरीके से इन अभियानों को चलाया जाता है। इसके बाद देश और विदेश में इन कट्टरपंथियों का हमदर्द बनकर बैठी वामपंथी बिग्रेड सक्रिय हो जाती है। वह अपनी पूरी ताकत झोंक देती है एक झूठा विमर्श खड़ा करने में। 

भारत के लिए असली चुनौती बंदूकधारी आतंकियों से नहीं, बल्कि कलमधारी हमदर्दों से है, जो हर आतंकी कृत्य को घटना का जामा पहनाते हैं, कट्टरपंथ के खिलाफ कार्रवाई को फासीवाद बताते हैं और न्यायपालिका के मंच से आतंक के खिलाफ कार्रवाई को उलझाते हैं। यह गठजोड़ केवल सरकार से नहीं, बल्कि भारत की सभ्यतागत सोच से युद्ध में लिप्त है। अब फिर से बात करते हैं सेक्युलरवादियों की जो पहलगांव हमले की ऊपरी मन से निंदा करते हुए इसके पीछे हिन्दू समाज, भारत सरकार को कटघरे में खड़े करना चाहती है। उनका यही प्रयास बताता है कि वे मान चुके हैं कि आतंकवाद का धर्म ही नहीं होता बल्कि एक खास मजहब के चलते ही देश-दुनिया में आतंकवाद फैला हुआ है। ऐसा नहीं कि वामपंथी इस सच्चाई को जानते नहीं. वे जानते तो हैं परन्तु सबके सामने मानते नहीं थे परन्तु अब उनकी हरकतें बता रही है कि वे अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, सच्चाई को मानते जा रहे हैं।

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