
प्रमोद भार्गव
कभी-कभी अपना कहा, अपने को ही आईना दिखाने लग जाता है।
छत्त्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली भूपेश बघेल सरकार के साथ यही कहावत चरितार्थ
हुई है। मुख्यमंत्री बघेल ने छत्तीसगढ़ की सत्ता पर काबिज होने के बाद प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी को एक आईना यानी दर्पण उपहार स्वरूप भेजा था। यह दर्पण इसलिए भेजा
गया था, ताकि मोदी अपनी
असलीयत को पहचान लें, किंतु
अब पांच महीने के बाद ही छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 लोकसभा
सीटों पर भाजपा ने जीत लगभग दर्ज कर ली है, उससे जाहिर है कि इस आईने में अब उन्हें
ही अपना चेहरा देखने की जरूरत आन पड़ी है। बस्तर सीट छोड़ भाजपा सभी सीटों पर जीत
दर्ज करा रही है। यहां से कांग्रेस के दीपक बैज उम्मीदवार है। भाजपा ने यहां
मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा। भाजपा ने अन्य राज्यों में भी
वर्तमान सांसदों के टिकट काटे हैं, लेकिन
केंद्रिय नेतृत्व ने यहां सभी मौजूदा सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरों को किस्मत
अजमाने का मौका दिया। जीत के बाद लग रहा है कि भाजपा का निर्णय खरा उतरा है।
छत्तीसगढ़ को लेकर चुनाव विष्लेशकों की
यह धरणा रही है कि यहां हिंदुत्व की लहर और राम मंदिर का मुद्दा काम करने वाले
नहीं है। राष्ट्र वाद का वातावरण तैयार करने वाली बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक
के प्रति भी यह धारणा थी कि इस दूरांचल और घने जंगलों वाले प्रदेश में यह
प्रतिक्रिया ठीक से प्रचारित नहीं हो पाएगी। इन धारणाओं ने इसलिए भी आकार ले लिया
था, क्योंकि 2018 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस
प्रत्याशी मोहम्मद अकबर ने कवर्धा विधानसभा सीट से करीब 60,000 मतों से जीत हासिल की थी। हिंदु बहुल
सीट पर यह जीत इतनी बड़ी थी कि अन्य कोई उम्मीदवार इस आंकड़े को छू भी नहीं पाया था।
इस चुनाव में कुल 90 विधानसभा
सीटों में से 68 सीटों
पर कांग्रेस ने विजय हासिल की थी। भाजपा को 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। छत्तीगढ़
राज्य के अस्तित्व में आने से लेकर हुए वर्ष –2004, 2009 और 2014 के चुनाव में भाजपा ने दस और कांग्रेस
ने 1 सीट जीती थी। अब यही
परिणाम फिर दोहराया गया हैं। 19 मई
को आए एग्जिट पोल के अनुमानों ने भी बताया था कि भाजपा को आठ से दस सीटें मिल सकती
हैं। यहां मतदान का प्रतिशत 71.48 था।
इसमें से भाजपा को 49.01 और
कांग्रेस को 41.03 वोट
मिले हैं। आठ प्रतिशत के इस अंतर ने भाजपा की जीत मतदान के बाद ही सुनिश्चित कर दी
थी। क्योंकि हिंदु और ईसाई आदिवासियों के बीच धु्रवीकरण की जो रणनीति कांग्रेस
जमीन पर उतारने की कोशिश में थी, उस
पर बड़े मत-प्रतिशत ने पलीता लगाने का काम कर दिया। इस अधिकतम मतदान ने ही तय कर
दिया था कि भाजपा अच्छी स्थिति में रहेगी। यहां की 11 सीटों में से एक अनुसूचित जाति और एक
अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है।
कांग्रेस ने अपने घोषणा -पत्र में अंग्रेज हुकूमत के समय से चले आ
रहे राजद्रोह कानून को समाप्त करने की घोषणा
करके बड़ी भूल की थी। इस कानून को
समाप्त करने का कारण कांग्रेसियों ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बताया कि इस
कानून का रमन सिंह सरकार ने सबसे ज्यादा दुरुपयोग कर आदिवासियों को माओवादी नक्सली
ठहराने का काम किया है। इसके चलते सैकड़ों लोगों को हिरासत में लेकर प्रताड़ित किया
गया। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई और आदिवासियों समेत अन्य नागरिकों को लगा
नक्सलियों को राजद्रोह का कानून हटा देने से लाभ मिलेगा, उनके हितों का सरंक्षण होगा और वे
ज्यादा आक्रामक हो जाएंगे। इस कानून को कश्मीर
के देशद्रोहियों और देश के
टुकड़े-टुकड़े कर देने वाले लोगों के हित साधने वाले कानून के रूप में देखा गया।
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी भत्ता देने, शराबबंदी लागू करने किसानों का कर्ज माफ
करने और चिटफंड घोटाले में आम नागरिकों से लूटे गए धन को वापिस लाने के वादे किए
थे, जो कसौटी पर खरे नहीं
उतरे। दूसरी तरफ राहुल गांधी की महत्वाकांक्षी गरीबी हटाओ न्यूनतम आय योजना
‘न्याय‘ बेअसर रही। नतीजतन चार महीने बाद ही कांग्रेस से छत्तीसगढ़ का मतदाता विमुख
हो गया।
हालांकि 15 साल चली रमन सिंह सरकार का कामकाज
किसानों के हित की दृष्टि और रुपया किलो
गेहूं, चावल देने के नजरिए
से ठीक सरकार थी, लेकिन
प्रशासन में बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण रमन सिंह सरकार बद्हाली को प्राप्त होती चली
गई। दूसरी तरफ कांग्रेस अपने किसी भी वादे पर अमल नहीं कर पाई, इसलिए आम जनता जल्दी ही कांग्रेस से
रूठने लग गई। वोटों का बंटवारा न हो, इस नजरिए से अजीत जोगी ने अपनी पार्टी जनता कांग्रेस के
उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारे थे। इसे ऐसा कांग्रेस को अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने की दृष्टि
से किया था। यहां आठ से दस प्रतिशत कुर्मी, आठ से दस प्रतिशत साहू और दस प्रतिशत
सतनामी मतदाता हैं, किंतु
मोदी की चली राष्ट्रवाद की लहर ने सभी
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अनुबंधों पर पानी फेर दिया। बहरहाल छत्तीसगढ़ में भाजपा की
जीत स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रवाद जैसे राष्ट्रीय मुद्दे पर कहीं ज्यादा केंद्रित रही है। इसमें
सोने में सुहागे जैसा काम मोदी की आवास, उज्जवला और शौचालय जैसी योजनाओं ने किया है।