ग्यारह संकल्पों का मोदी मंत्र

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डॉ. वेदप्रकाश

     14 दिसंबर 2024 को संविधान के 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पर लोकसभा में चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विविध विषयों पर विचार और प्रहार करते हुए भविष्य के लिए 11 संकल्पों का संदेश दिया है। ध्यान रहे ये 11 संकल्प विकसित भारत के लिए संविधान की भावना को केंद्र में रखते हुए दिए गए हैं-
1. चाहे नागरिक हो या सरकार, सभी अपने
     कर्तव्यों का पालन करें।
2. हर क्षेत्र, हर समाज को विकास का
      लाभ मिले। सबका साथ, सबका
      विकास हो।
3. भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस हो,
     भ्रष्टाचारी की सामाजिक स्वीकार्यता न
      हो।
4. देश के कानून, देश के नियम, देश की
    परंपराओं के पालन में नागरिकों को गर्व
    का भाव होना चाहिए।
5. गुलामी की मानसिकता से मुक्ति हो,
    देश की विरासत पर गर्व हो।
6. देश की राजनीति को परिवारवाद से
    मुक्ति मिले।
7. संविधान का सम्मान हो, राजनीतिक
    स्वार्थ के लिए संविधान को हथियार न
    बनाया जाए
8. जिनको आरक्षण मिल रहा है वह न
    छीना जाए और धर्म के आधार पर
   आरक्षण की हर कोशिश पर रोक लगे।
9. वूमेन लेड डेवलपमेंट में भारत दुनिया के
     लिए मिसाल बने।
10. राज्य के विकास से राष्ट्र का विकास।
11. एक भारत श्रेष्ठ भारत का ध्येय
       सर्वोपरि हो।
         ध्यातव्य है कि आज भारतवर्ष विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों से गुजर रहा है। जनकल्याणकारी योजनाएं तीव्रता से क्रियान्वित हो रही हैं। हाईवे, वॉटरवे, रेलवे और एयरवेज निरंतर गति और प्रगति की ओर हैं। भिन्न-भिन्न रूपों में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास अब दिखाई दे रहा है। वर्ष 2014 में लालकिले की प्राचीर से अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन कल्याण और पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के कल्याण का जो संकल्प लिया था, वह आज वर्ष 2024 में सिद्धि की ओर है। नया भारत, समर्थ भारत, आत्मनिर्भर भारत से होते हुए भारत की विकास यात्रा अब विकसित भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है। सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास और सबमें विश्वास का मोदी मंत्र आज वैश्विक पटल पर चर्चा और शोध का विषय बनता जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतवर्ष के संविधान तथा लोकतंत्र में गहरी आस्था रखते हुए कार्य संस्कृति में निरंतर बदलाव कर रहे हैं। वे बड़े फैसले लेते हुए सुराज्य  की स्थापना हेतु भी संकल्पित हैं। जब वे कोई मंत्र अथवा सूत्र देते हैं तो उसके मूल में लंबा चिंतन और उसे क्रियान्वित करने का रोडमैप भी होता है। विगत में उन्होंने विकास की पंचधारा की चर्चा करते हुए कहा था- बच्चों को पढ़ाई, युवा को कमाई, बुजुर्गों को दवाई, किसानों को सिंचाई और जन जन की सुनवाई। इस पंचधारा के फलित रूप में अनेक योजनाएं आज भी प्रभावी ढंग से चल रही हैं। विगत में ही स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में उन्होंने अतीत, वर्तमान और भविष्य के भारत का विविध आयामी विवेचन करते हुए पांच प्रण का मंत्र दिया था। वे पांच प्रण थे- विकसित भारत, उससे कुछ कम नहीं होना चाहिए। दूसरा प्रण- किसी भी कोने में गुलामी का एक भी अंश नहीं बचना चाहिए अर्थात गुलामी की मानसिकता से मुक्ति। तीसरा प्रण- विरासत पर गर्व, क्योंकि यह विरासत ही है जिसने भारत को स्वर्णिम काल दिया था। चौथा प्रण- एकता और एकजुट और पांचवा प्रण- नागरिकों का कर्तव्य बोध, जिसमें प्रधानमंत्री भी बाहर नहीं होता है। प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए ये पांच प्रण धीरे-धीरे जन जागरण के संदेशवाहक बनते जा रहे हैं। दूर सुदूर गांव में रहने वाला व्यक्ति भी अब यह महसूस करने लगा है कि मेरी भी विकसित भारत की यात्रा में भागीदारी है और अब मेरे लिए भी सोचने समझने वाली सरकार है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कोई सूत्र-मंत्र अथवा बात कहते हैं तो उसका उद्देश्य सामान्य व्यक्ति का मानस निर्माण करना होता है। साथ ही उनका संदेश सामान्य से सामान्य व्यक्ति के आत्मबल को भी बढ़ाता है। आज अनेक अवसरों पर संविधान सम्मत अधिकारों की चर्चा तो खूब होती है लेकिन क्या हम संविधान सम्मत कर्तव्यों के लिए भी उतने ही सजग होते हैं? अनेक बार विकास का लाभ कुछ सीमित लोगों तक ही रहता था लेकिन विगत कुछ वर्षों में वह समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक भी पहुंच रहा है। यह भी सर्वविदित है कि भ्रष्टाचार की दीमक ने विकास की जड़ों को खोखला कर दिया था। विगत कुछ वर्षों में जिस प्रकार नीति और योजना बनाते हुए भ्रष्टाचार पर अंकुश के प्रयास हुए हैं वे सराहनीय हैं। अनेक अवसरों पर राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति हेतु कुछ लोग अथवा दल देश के कानून, देश के नियमों के प्रति ही भ्रम और भय फैलाने का प्रयास करते हैं।

इसी विषय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने उनके प्रति गर्व के भाव की बात कही है। विगत कुछ वर्षों में वोकल फार लोकल का मंत्र राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर चर्चा और चिंतन के केंद्र में है। भिन्न-भिन्न रूपों में विरासत के संरक्षण-संवर्धन के प्रयास तेज हुए हैं। अब एक सामान्य व्यक्ति को भी लगने लगा है कि जो अच्छी बात किसी विकसित देश में हो सकती है, अब वह भारत में भी संभव है। स्वतंत्रता के बाद से ही परिवारवाद ने निहित स्वार्थों के चलते और केवल राजनीति हथियाने के लिए ही काम किया। देश के विकास हेतु अनेक काम अथवा मुद्दे उपेक्षित ही रहे। सामान्य व्यक्ति केवल वोट बैंक ही बना रहा लेकिन विगत कुछ वर्षों से राजनीति क्षेत्र में भी अनेक लोग ऐसे आए हैं जो किसी राजनीतिक परिवार से संबंधित नहीं हैं, सामान्य नागरिक हैं। आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि संविधान कोई खिलौना नहीं है, जिसे हाथ में लेकर जगह-जगह घूमकर सामान्य नागरिकों के मन में भ्रम और भय फैलाया जाए। वह सम्मान और उसके अनुसार व्यवहार का संदेश देता है। प्रधानमंत्री ने इस पर भी गंभीरता से संदेश दिया है।

आरक्षण के विषय में भी समय-समय पर भ्रम और भय फैलाकर समूचा विपक्ष राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास करता रहा है। प्रधानमंत्री का संदेश इस विषय को भी सीधे संबोधित करता है। महिलाएं किसी भी देश के विकास में बराबरी की हिस्सेदार होनी चाहिएं। उनमें भी वे सभी क्षमताएं हैं, जो पुरुषों में, इसलिए यह आवश्यक है कि विकसित भारत का संकल्प उनकी भागीदारी के साथ आगे बढ़े। राज्य राष्ट्र की महत्वपूर्ण इकाई हैं। राज्यों की भिन्न-भिन्न प्रकार की विविधता और समृद्धता राष्ट्र के विकास में सहायक बने, यह आवश्यक है।


   आज कई अवसरों पर यह भी दिखाई देता है कि जाति, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्रीयता की भावना से कुछ लोग वैमनस्य फैलाने का प्रयास करते हैं। हमें समझना होगा कि हम सभी भारत के नागरिक हैं। हमें एक भारत श्रेष्ठ भारत के भाव को आत्मसात करते हुए विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। आज जब हम विकसित भारत की बात कर रहे हैं, तब यह भी आवश्यक है कि संवैधानिक संस्थाओं और पदों का सभी सम्मान करें। राजनीतिक लाभ और निहित स्वार्थों के लिए संविधान और संविधान सम्मत संस्थानों पर भ्रम-भय फैलाना सर्वथा घातक सिद्ध हो सकता है।
     प्रधानमंत्री मोदी द्वारा समय-समय पर दिए गए मंत्र निश्चित रूप से उनके संकल्प से सिद्धि की सोच के परिचायक हैं। हाल ही में दिए गए 11 मंत्र भी विकसित भारत के संकल्प की राह में महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे, ऐसा विश्वास है।


डॉ. वेदप्रकाश

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