पाक, आतंक, दुनियां और हम


अशोक कुमार झा


जब भी भारत की ज़मीन पर खून बहता है—चाहे वह उरी का सैन्य अड्डा हो, पुलवामा का कारवां या हाल ही में पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों की हत्या—हर बार एक नाम, एक मुल्क उभर कर सामने आता है: पाकिस्तान।

पाकिस्तान पिछले कई दशकों से आतंकवाद को अपनी रणनीतिक गहराई का एक अभिन्न हिस्सा मानता आया है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों को उसकी सेना और खुफिया एजेंसी ISI खुले या छुपे तौर पर पालती-पोसती रही हैं। ये संगठन सिर्फ बंदूकें नहीं चलाते, ये पूरे उपमहाद्वीप की शांति और स्थिरता के खिलाफ योजनाबद्ध जंग छेड़े हुए हैं।


लोकतंत्र की सतही झलकियों के पीछे पाकिस्तान की असल सत्ता सेना और आतंक के गठजोड़ के पास है, जिसकी विदेश नीति भारत के खिलाफ ‘प्रॉक्सी वॉर’ पर केंद्रित रही है।


बदलती वैश्विक सोच: अब सहानुभूति नहीं, सज़ा
एक समय था जब अमेरिका और पश्चिमी देश पाकिस्तान को “स्ट्रैटेजिक एली” मानते थे लेकिन अब वैश्विक मंचों पर हवा का रुख बदल चुका है। FATF की ग्रे लिस्ट से लेकर आर्थिक सहायता की शर्तें, अब पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव पहले से कहीं ज़्यादा है।
भारत ने अपनी दृढ़ कूटनीति के ज़रिए आतंक को अंतरराष्ट्रीय एजेंडा बना दिया है। चाहे वो संयुक्त राष्ट्र में साक्ष्य प्रस्तुत करना हो या मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराना—भारत की बात अब गंभीरता से सुनी जाती है।


अब नरमी नहीं, निर्णायक कार्रवाई का दौर है।
उरी हमले के बाद की सर्जिकल स्ट्राइक हो या पुलवामा के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक—भारत ने साफ कर दिया कि अब आतंक का जवाब सीमा के भीतर नहीं, सीमा के पार दिया जाएगा।


नई नीति: रक्षात्मक नहीं, आक्रामक भारत
भारत की सुरक्षा नीति अब ‘रणनीतिक संयम’ नहीं, बल्कि ‘आक्रामक रक्षा’ (Offensive Defence) पर आधारित है। अब भारत आतंकवाद का मुकाबला केवल सैन्य बल से नहीं, आर्थिक, साइबर, कूटनीतिक और वैचारिक स्तर पर भी करता है।


भारत ने “नरम शक्ति” से आगे बढ़ते हुए वैश्विक सुरक्षा मामलों में नेतृत्व की भूमिका संभालनी शुरू कर दी है। UN, G20, SCO जैसे मंचों पर भारत की स्पष्टवादिता अब नीति-निर्धारण को प्रभावित कर रही है।


कश्मीर: आतंक से विकास की ओर
कभी कश्मीर को आतंकियों की प्रयोगशाला बनाया गया था लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां जो “आग” की कल्पना की जा रही थी, वह रोज़गार, निवेश और पर्यटन के रूप में सामने आई है।


कश्मीरी युवा अब बंदूक नहीं, किताब और कीबोर्ड उठा रहे हैं। सेना और सिविल सेवाओं में उनकी भागीदारी बढ़ी है। ये बदलाव आतंक की विचारधारा पर करारा प्रहार है।


मीडिया की भूमिका: खलनायक को नायक मत बनाइए
आतंकी घटनाओं की रिपोर्टिंग करते समय मीडिया को याद रखना चाहिए कि प्रसारण, प्रचार नहीं बन जाए। किसी भी आतंकी का चेहरा, नाम या उसका मकसद बार-बार दिखाना, कहीं न कहीं उसके एजेंडे को हवा देना है।


भारत की आत्मनिर्भरता: टैंक नहीं, टैक्स से भी जीत
अब भारत हथियारों के लिए सिर्फ रूस, अमेरिका या इज़रायल की तरफ नहीं देखता। तेजस, अग्नि, आकाश, स्वदेशी ड्रोन—ये केवल रक्षा नहीं, आत्मनिर्भर भारत की पहचान हैं।
पाकिस्तान की आर्थिक हालत तबाह है. IMF की बैसाखियों पर टिका हुआ मुल्क आज भारत से तुलना नहीं कर सकता। भारत ने न सिर्फ पाक से MFN का दर्जा छीना बल्कि उसके खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी की कोशिशों को भी तेज किया।


साइबर आतंकवाद: नई जंग का नया मैदान
भविष्य का आतंक केवल गोलियों से नहीं, कोड और कीबोर्ड से लड़ा जाएगा। भारत अब National Cyber Security Policy और CERT-In जैसे संस्थानों के ज़रिए इस चुनौती से निपटने की तैयारी कर रहा है।


हमारी सबसे बड़ी ताकत: एकता और लोकतंत्र
भारत की असली शक्ति उसके लोग हैं—उनकी विविधता, सहिष्णुता और एकजुटता। जब आतंक हमारे मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों और गुरुद्वारों पर हमला करता है, तो उसका उद्देश्य हमारी साझा विरासत को तोड़ना होता है। लेकिन भारत हर बार पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरता है।
“जब भारत बोलता है, तो दुनिया सुनती है।”
यह सिर्फ एक संवाद नहीं, भारत के बदलते वैश्विक स्वरूप का प्रतीक है। अब समय आ गया है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक नैतिक नेतृत्व का झंडा उठाए।


अब केवल गुस्सा नहीं, समाधान चाहिए
आज पूरे देश में आक्रोश है, लेकिन अब ज़रूरत है ऐसी ठोस नीति और दीर्घकालीन रणनीति की, जो आतंकवाद के हर रूप को जड़ से उखाड़ फेंके। हमें केवल पाकिस्तान को नहीं, बल्कि उस सोच को हराना है जो नफरत और हिंसा को अपना औजार बनाती है। क्योंकि हमें अब शिकार नहीं, बल्कि रणनीति, संकल्प और शक्ति का प्रतीक बनना है।

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