उत्तर प्रदेश के चुनाव मे पहली बार गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी की झलक रायबरेली मे दिखी, प्रियंका गांधी के दोनो बेटों को पहली बार किसी राजनैतिक मंच पर देखा गया, प्रियंका ने कहा की वे गांव देखने आए हैं तो विपक्ष ने भी आरोप लगाया की रायबरेली और अमेठी को गांधी परिवार अपनी जागीर समझती हैं, लेकिन रायबरेली का यह मंच काफी कुछ स्पष्ट कर गया । आजादी के बाद से अब तक हिन्दुस्तान की राजनीति मे गांधी परिवार का दबदबा हमेशा अव्वल नं. पर रहा हैं, जवाहर लाल नेहरु से लेकर राजीव गांधी तक का सफर तो देश ने एक ही परिवार के साथ तय किया लेकिन राजीव गांधी के बाद कांग्रेस की बागडोर तो गांधी परिवार के हाथ रही लेकिन सत्ता से दुरी बना रहा । राजीव गांधी के बाद सोनीया गांधी ने बखुबी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का पद संभाला लेकिन खुद को हमेशा से सत्ता से दूर रखा, सत्ता से दुरी अगर सोनीया की मजबूरी थी तो इस मजबूरी मे भी कांग्रेस का ही फायदा था । सोनीया ने खुद को सत्ता से दूर रखकर एक तरफ जहां देश को यह संदेश दिया की गांधी परिवार सत्ता के लिए राजनीति नही करता वहीं दुसरी तरफ, सत्ता पर अपने मनपसंद उत्तराधिकारी को बिठा कर हमेशा सरकार की चाबी भी अपने हाथ मे ही रखी । लंबे इंतजार के बाद राहुल गांधी को गांधी परिवार के उत्तराधिकारी होने के नाते कांग्रेस उन्हे अपना अगला प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट कर ही दिया हैं । राहुल गांधी पिछले चार सालों से उत्तर प्रदेश मे लगातार जनाधार जुटाने के लिए दिन-रात एक किए हैं, राहुल को यह पता हैं कि दिल्ली का सफर लखनउ होकर ही तय किया जा सकता हैं, इसलिए युवराज के साथ-साथ मां और बहन भी भाई की ताजपोशी के सफर मे हमसफर की तरह उनके कंधे मजबूत करने मे लगे हैं । कांग्रेस के लिए यह शायद सबसे कठिन समय हैं मौजूदा सरकार घोटाले और भ्रष्टाचार के बोझ तले पहले से दबा हुआ था, उपर से जनलोकपाल आंदोलन और रामलीला कांड ने कांग्रेस की राह मे और मुश्किले खड़ी कर दी हैं, हालांकी इसका ज्यादा असर विधानसभा चुनाव मे नहीं पड़ने वाला क्योंकी वहां पर और भी कई मुद्दे हैं जो अहम हैं । उत्तर प्रदेश मे राहुल गांधी की चुनौति बिहार विधानसभा चुनाव से भी अधिक हैं और हालात भी वही हैं बिहार की तरह यहां भी कांग्रेस को अपनी जमीन मजबूत करनी हैं इसके लिए राहुल गांधी ने दिन रात एक कर दी हैं यहां तक की विकास की बात करने वाले यूवा नेता से जाति धर्म और मजहब की राजनीति करने वाले नेता की छवी बना ली, इसका कारण भी हैं कि इसे राजनीति का सचाई माने या सियासत की मजबूरी, बिना इसके सत्ता का सफर तय नही किया जा सकता । राहुल गांधी मीडिया के सामने आकर बयान देते हैं की वो सत्ता के लिए यूपी मे मेहनत नहीं कर रहे हैं आपको बता दे की गांधी परिवार का कोई भी सदस्य कहीं भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठा हैं उत्तर प्रदेश मे कभी राजीव गांधी ने भी इसी तरह मेहनत की थी और पार्टी को जबरदस्त सफलता भी दिलाई थी लेकिन मुख्यमंत्री पद पर गांधी परिवार का कोई सदस्य नही बैठा एक ये भी कारण हैं कि कांग्रेस के परंपरागत वोटर भी इस बात को लेकर असमंजस मे रहते हैं कि गांधी परिवार के नाम पर वोट मांगने वाले खुद तो सत्ता पर काबिज नहीं होगे । परिवार के सभी सदस्य चुनाव मैदान मे हैं हमेशा की तरह प्रियंका गांधी भी पार्टी की स्टार प्रचारक के तौर पर खुद तो मैदान मे हैं हीं साथ मे उनके पति रॉबर्ट वढेरा भी राहुल और कांग्रेस दोनो के लिए प्रचार कर रहे हैं । प्रियंका पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी के साथ-साथ पूरे कैंपेन की जिम्मेदारी के बीच पहली बार इशारो-इशारों मे राजनीति मे आने के संकेत भी दे चुकी हैं , अगर प्रियंका 2014 मे चुनाव लड़ ले तो इसमे कोई हैरानी की बात नही होनी चाहिए । प्रियंका के साथ-साथ रॉबर्ट ने भी राजनैतिक घराने से संबंध का हवाला देकर राजनीति मे आने की ख्वाहीश जता चुके हैं हालांकी बाद मे प्रियंका उनके बात का खंडन करती हैं की वे अपने बिजनेश से ही खुश हैं और उनके स्पष्ट बात को मिडीया पर आरोप ज़ड़ बयान का गलत मतलब निकालने की बात कह रही हैं । राबर्ट ने जो कुछ भी मीडिया के सामने कहा उससे कांग्रेस के भविष्य, पारिवारिक संबंधों और प्रियंका और अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा की साफ झलक दिखाई देती है। जब पत्रकारों ने राबर्ट से सवाल किया कि प्रियंका क्या हमेशा प्रचार ही करती रहेंगी या चुनाव भी लड़ेंगी? जवाब में रॉबर्ट ने कहा कि हर चीज का वक्त होता है। सब कुछ समय आने पर ही होता है। अभी प्रियंका का राजनीति में आने का वक्त नहीं है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अभी राहुल गांधी का वक्त चल रहा है। आगे प्रियंका का भी वक्त आएगा ।अगर कांग्रेस के नेता ताल ठोक कर यह कहते हैं की राहुल उनके अगले प्रधानमंत्री हैं तो उनके इस बात मे वाकई दम हैं, क्योंकी मनमोहन सिंह के बाद उनके पास कोई विकल्प नही हैं और राहुल भी इस बात को जानते हैं इसलिए उन्होने अभी तक अपने आप को सत्ता से दूर रखा हैं या ये कहें की गांधी परिवार की परंपरा के अनुसार वो किसी मंत्रालय के मुखिया नहीं बल्की देश के मुखिया बनने की परंपरा कायम रखना चाहते हैं । प्रियंका गांधी के राजनीति मे आने को लेकर हमेशा अटकलें लगते रहे हैं, लेकिन प्रियंका ने अभी तक अपने आप को राजनीति से दूर ही रखा हैं, इसका कारण तो स्पष्ट दिखता हैं कि बहन कही भाई पर भारी न पड़ जाए और दुसरा की कांग्रेस पर पहले से ही एक परिवार की पार्टी का आरोप लगते रहे हैं । प्रियंका का राजनीति से दूर रहना इतिहास को दुहराता हैं चाहे गांधी परिवार हो या भूट्टो परिवार पार्टी मे परिवार के एक ही सदस्य को आगे रखा गया हैं । सुंदर नैन-नक्श वाली प्रियंका अपनी दादी की छवि हैं। उनका दमदार व्यक्तित्व भी दादी की तरह है। यह गर्व की बात है कि उनके पिता राजीव गांधी, दादी श्रीमती इन्दिरा गांधी और दादी के पिता जवाहरलाल नेहरु तीनों ही भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। प्रियंका गांधी वडेरा को अलग-अलग नामों से पुकारा जा रहा है- अनइच्छुक बहू, मौसमी फल, मीडिया की प्रिय आदि। पेज-3 के पाठकों के लिए वह फैशन आइकन या सोशलाइट हैं। लेकिन जब वह अपने परिवार के परंपरागत चुनाव क्षेत्रों का दौरा करती हैं तो सूती साड़ी पहनकर अपनी दादी इंदिरा गांधी की याद दिला देती हैं।इसमें शक नहीं है कि सोनिया गांधी ने जबसे (1998) कमान संभाली है, उनके दोनों बच्चों की राजनीतिक योग्यता की तुलना निरंतर हो रही है। कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रियंका में राहुल से अधिक सियासी करिश्मा देखते हैं। उन्हें प्रियंका स्वाभाविक नेता प्रतीत होती हैं, जिन्होंने विरासत में अपनी दादी के नेतृत्व गुण, करिश्मा और लुक्स हासिल किया है। प्रियंका ने अपने आप को राजनीति से इसलिए दूर रखा की गांधी परिवार भी जानता हैं प्रियंका अगर राजनीति मे आ गई तो कहीं राहुल का सपना अधुरा ना रह जाए उनकी चमक फिंकी ना पड़ जाए शायद इसीलिए वो अपना राजनैतिक करियर भाई के कहने पर छोड़ दिया हैं । भारतमें पितृ सत्तात्मक समाज है। प्रियंका को कांग्रेस का उत्तराधिकारी बनाने से सत्ता गांधी परिवार के पास नहीं रहेगी। इस बात को सोनिया गांधी अच्छी तरह समझती हैं। तभी तमाम कांग्रेसियों और जनता के आग्रह के बाद भी वे प्रियंका वढेरा को प्रत्यक्ष राजनीति में लेकर नहीं आतीं। हालांकि चुनाव के वक्त उनकी लोकप्रियता का जमकर उपयोग किया जाता है। प्रियंका की लोकप्रियता कामयाबी और शोहरत के आगे राहुल ही नहीं खुद सोनीया गांधी भी पीछे छूट जाती हैं यह कइ बार देखा गया हैं हालांकी प्रियंका राहुल और सोनीया की तरह कोई बड़ी रैली नहीं करती लेकिन उनके इंतजार मे प्रियंका की एक झलक पाने और उनसे बात करने के लिए सड़को के किनारे उमड़ी भीड़ उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा उदाहरण हैं प्रियंका का काफिला जहां से भी गुजरता हैं वहां अपने नेता की झलक पाने के लिए घंटो लोग सड़क की पगडंडीयों पर चिपके रहते हैं । प्रियंका गांधी की मांग चुनाव मे सबसे ज्यादा होती हैं कइ इलाकों मे तो सोनीया और राहुल के बजाय प्रत्याशी प्रियंका की मांग ही करते हैं इसका सबसे बड़ा कारण हैं पिछले चुनाव मे प्रियंका का करिश्मा जहां भी प्रियंका ने प्रचार किया वहां कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली । राहुल प्रियंका और सोनीया भले आज प्रियंका के राजनीति मे आने से इनकार करते हों लेकिन आने वाले लोकसभा चुनाव मे गांधी परिवार की एक और नेता अगर मैदान मे दिख जाए तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी, और अब कांग्रेस के कई नेता भी मानते हैं की विपक्ष जो कहे जब एक बार परिवारिक पार्टी होने का तमगा लग चुका हैं तो अब डर कैसा, लेकिन बड़ा सवाल अब भी हैं की क्या कांग्रेस की कमान कभी गांधी परिवार से अलग किसी और के हाथ मे जाएगा ? हो सकता हैं मेरा सवाल अटपटा हो क्योंकी ये सवाल ऐसे समय पर उठाया हैं जब हमे गांधी परिवार की पांचवी पिढ़ी से रुबरु खुद परिवार द्वारा कराया गया हो ।
शानदार लिखा.
गाँधी राज परिवार को अब यह समझ लेना चाहिये कि जनता को अब राजा नहीं सेवक चाहिये, अब हाथ हिलाने, आँसू बहाने, आस्तीन चढाने और खादी पहनने से वोट नहीं मिलने वाले. पहले राजा-महाराजा सिर्फ त्योहारों में जनता को दर्शन देते थे, ठीक उसी तरह प्रियंका गाँधी चुनावों के टाईम पर भारतीय वस्त्र पहन कर मतदाताओं को दर्शन देने पहुँच जाती हैं और मीडिया कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुआ उनके पीछे लग जाता है. जनता को अब रोजगार, सडक, सुशासन, पारदर्शिता और न्याय चाहिये, जो इसका प्रयास करेगा जनता उसके पीछे अपने आप लग जायेगी. गुजरात में मोदी, बिहार में नितीश, मप्र में शिवराज तो छत्तीसगढ में डा. रमन सिंह इसके उदाहरण हैं.
अच्छा लिखा