प्रैस पर नया कानूनी शिकंजा यानी बंदर के हाथ में उस्तरा देना?

इक़बाल हिंदुस्तानी

ख़राब लोगों के हाथ में अच्छा कानून भी बेलगाम हो जाता है!

मीडिया खासतौर पर प्रैस पर अपने अपने अनुभव से कानूनी शिकंजा कसने की जोरशोर से मांग कर रहे लोगों को शायद यह पता नहीं है कि वर्तमान कानूनों रहते ही कोई अख़बार और उसके पत्रकारों को सबक सिखाने की ठान ले तो कितनी आफत आ जाती है। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर सरकार के तेवर भी दरअसल अश्लील और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले कंटेंट से नहीं बल्कि अरब क्रांति के डर से सहमे हुए हैं। अब वे यह बात साफ साफ खुलकर कह तो नहीं सकते कि हम इस डर से इंटरनेट की निगरानी चाहते हैं लेकिन वही मामला प्रैस के लिये चलाया जा रहा है। हम यह दावा नहीं करते कि मीडिया पूरी तरह साफ सुथरा है लिहाज़ा इस पर किसी तरह की रोक टोक नहीं लगनी चाहिये बल्कि हमारा कहना तो यह है कि जो लोग इस बात की पैरवी कर रहे हैं कि मीडिया पर कानूनी शिकंजा कसने के लिये नये कानून और कड़े नियम बनाये जाने चाहिये वे ठीक नहीं कह रहे क्योंकि मौजूदा कानून के तहत भी प्रैस और चैनलों को सही रास्ते पर चलाया जा सकता है।

प्रैस को राहे रास्त पर लाने के लिये बेहद उतावले मेरे कुछ वरिष्ठ पत्रकार साथियों ने प्रैस काउंसिल के चेयरमैन और पूर्व जज मार्कंडय काटजू के सुर में सुर मिलाकर यह मांग तेज कर दी है कि सरकार ऐसा कुछ करे जिससे प्रैस को गल्ती करने पर कड़ा दंड दिया जा सके। उनको पता होना चाहिये कि टाइम्स नाउ चैनल ने गाज़ियाबाद के भविष्यनिधि घोटाले के एक समाचार के दौरान मानवीय भूल से न्यायमूर्ति पी के सामंत की जगह सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश पी बी सावंत की तस्वीर दिखा दी थी। जैसे ही चैनल को इस गल्ती का एहसास हुआ उसने इस भूल के लिये जस्टिस सावंत से सार्वजनिक रूप से सीधे क्षमा मांगी। इतना ही नहीं यह माफी भी एक नहीं अनेक बार मांगी गयी लेकिन जस्टिस सावंत ने चैनल को बख़्शने से दो टूक मना कर दिया। खैर यह उनका कानूनी अधिकार है। जस्टिस सावंत ने इस मानहानि के लिये मुंबई हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

वहां टाइम्स चैनल ने अपना पक्ष रखते हुए सफाई दी कि यह सब कुछ जानबूझकर जस्टिस सावंत का अपमान करने या किसी बदले की भावना से नहीं किया गया बल्कि तकनीकी कमी और नाम मिलता जुलता होने से भूलवश हो गया जिसके लिये चैनल कई बार स्थिति स्पश्ट कर चुका है और माफी भी मांग चुका है। इसके बावजूद कानून ने अपना काम किया और चैनल को आदेश दिया कि जस्टिस सावंत को मानहानि के एवज में 100 करोड़ हर्जाना दिया जाये। चैनल ने इसके खिलाफ जब सुप्रीम कोर्ट में अपील की तो चैनल से कहा गया कि वह अपील से पहले 20 करोड़ नक़द और 80 करोड़ की बैंक गारंटी पेश करे। जाहिर सी बात है कि चैनल को अपील के लिये ऐसा ही करना होगा।

हालांकि पूर्व जस्टिस काटजू ने इस मामले पर कोर्ट से चैनल को राहत देने की अपील की है लेकिन वे जस्टिस रहे हैं और वर्तमान में प्रैस काउंसिल के चेयरमैन हैं जो चाहें कह सकते हैं लेकिन हम तो एक आम आदमी या मामूली कलमकार होने की वजह से इस मामले में अपनी कोई राय भी नहीं दे सकते क्योंकि इतना ज्ञान ही नहीं है कि कौन सी बात या शब्द से माननीय न्यायालय या न्यायधीश महोदय की मानहानि की आशंका हो सकती है। इस मामले में मैं अपने मीडिया के साथियों और पूर्व जस्टिस काटजू साहब से पूरे अदब और एहतराम के साथ यह गुज़ारिश करना चाहता हूं कि जब मानहानि का इतना मज़बूत और सक्षम कानून मौजूद है जिसमें एक आदमी की गलत फोटो लगने से एक मीडिया हाउस को 100 करोड़ हर्जाना भरने को कहा जा सकता है तो और क्या सीधे फांसी लगाने का कानून इस भ्रष्ट सरकार से बनवाना चाहते हो जो आयेदिन अन्ना हज़ारे के आंदोलन के लिये मीडिया को कोसती है जबकि अपने गिरेबान में झांकने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं सरकार वर्तमान कानूनों का ही दुरूपयोग करते हुए अन्ना की कोर कमैटी के सदस्यों के खिलाफ कौन सी कोर कसर छोड़ रही है जो वर्तमान मानहानि कानून के रहते वह नया कानून बनाकर अपने खिलाफ कुछ लिखने बोलन पर पत्रकारों का जीना हराम कर देगी।

एक बार इसी समस्या को महसूस करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यहां तक कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग होने के बावजूद मैं यही कहूंगा कि इस पर किसी तरह की कानूनी रोकटोक नहीं लगाई जानी चाहिये क्योंकि यह ठीक ऐसा ही होगा जैसे जुर्म करने से पहले ही किसी को मात्र अपराध करने की आशंका में उसकी आज़ादी को छीन लेना। अगर मिसाल के तौर पर देखा जाये तो टाडा और पोटा जैसे आतंकवाद विरोधी कानून इसीलिये हटाये गये क्योंकि उनका दुरूपयोग पुलिस कर रही थी। जब तक हमारे समाज और सरकार में इतनी नैतिकता और ईमानदारी न आ जाये हम व्यक्तिगत स्वार्थ की बजाये देशहित और जनहित को उूपर रख सकें तब तक प्रैस पर और कड़ी कार्यवाही करने का कोई कानून बनाकर सरकार के हाथ में देने का मतलब होगा बंदर के हाथ में उस्तरा।

जिस तरह से आज सेना को दिये गये विशेष सशस्त्र सुरक्षा बल कानून का दुरूपयोग किये जाने का विवाद चल रहा है और जिस तरह से पुलिस अपने असीमित अधिकारों का अकसर कमजोर और गरीब लोगों पर गलत इस्तेमाल करती है या फिर गणमान्य और अमीर लोगों को ब्लैकमेल करती है वैसे ही कल प्रैस के साथ होगा अगर नया कड़ा कानून बनता है। सरकार का वश नहीं चलता वर्ना वह एमरजैंसी की तरह यह ज़रूरी करदे कि कोई भी लेख या समाचार छपने या दिखाने से पहले उससे पास कराना ज़रूरी होगा। याद रखिये अगर मीडिया के लिये कोई नया सख़्त कानून और बनाया जाता है तो वह बंदर के हाथ में उस्तरे की तरह ही माना जायेगा।

जब तक पूरी व्यवस्था ईमानदार और पारदर्शी नहीं बनती तब तक अकेले प्रैस या टीवी चैनल के लिये अलग से नियामक और सेंसरशिप बनाना मेरे विचार से आ बैल मुझे मार वाली ही बात होगी। सरकार सीबीआई और सीवीसी का कैसा इस्तेमाल करती है यह हम देख ही रहे हैं। फिलहाल जो कानून मौजूद हैं वही पर्याप्त हैं बशर्ते कि लोग अपने अधिकारों के लिये जागरूक होने के साथ साथ खुद भी ईमानदार और जानकार हों जिससे वे कानून का सहारा लेने का साहस दिखा सकें आज तो अधिकांश खुद गड़बड़ हैं जिससे वे किसी दूसरे के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करते हुए इसलिये भी डरते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि सामने वाला चिढ़कर फिर उनकी बखिया उधेड़ दे। दुष्यंत कुमार की चार लाइनें याद आ रही हैं-

आज ये दीवार पर्दे की तरह हिलने लगी,

षर्त लेकिन थी कि बुनियाद हिलनी चाहिये।

हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गांव में,

हाथ लहराते हुए हर लाष चलनी चाहिये।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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