राम राज्य का वर्णन
राज्याभिषेक हो जाने पर श्री राम जी ने 30 करोड़ अशर्फियां और बहुमूल्य वस्त्र तथा आभूषण ब्राह्मणों को दान में दिए। उन्होंने सूर्य की किरणों के समान चमकती हुई मणियों से जड़ी सोने की एक दिव्य माला सुग्रीव को प्रदान की। दो बाजूबंद बाली पुत्र अंगद को दिए। मोतियों का एक अनुपम हार सीता जी को दिया । इसी प्रकार सीता जी ने अपने गले से एक हार उतार कर हनुमान जी को प्रदान किया। तत्पश्चात :-
सत्कृत हो श्री राम से, लौट गए निज देश।
रामचंद्र करने लगे , शासन अपने देश।।
विधवा के संताप से , मुक्त राम का देश।
सर्प सम इंसान का, कहीं नहीं लवलेश।।
लालच से सब दूर थे , डाकू ना कहीं चोर।
मोह लोभ से मुक्त थे, राम राज्य में लोग।।
तीन ताप से मुक्त थे , रखते उच्च विचार।
राम राज्य में लोग सब , करते सद् व्यवहार।।
मंगल में मंगल हुआ , मंगल सबका मूल।
आनंद में सब जी रहे , कंकड़ चुभे न शूल।।
अपने अपने वर्ण का , धर्म निभाते लोग।
प्रसन्न वदन रहते सभी, छूता था नहीं शोक।।
आयु लंबी भोगते , राम – राज्य में लोग।
संताप ताप से मुक्त थे, नहीं सताता रोग।।
मेघ बरसते ठीक से , वृक्षों पर फल फूल।
मंद सुगंध समीर भी , बहती थी अनुकूल।।
सत्य – परायण लोग थे , सोच बड़ी गंभीर।
ना कोई लोभी लालची , सबके सब थे वीर।।
रामायण को भाव से , पढ़ते जो नरनार।
धन्यता कृत – कृत्यता , मिलती सौ सौ बार।।
मनोयोग से कीजिए , रामायण का पाठ।
सभी मनोरथ पूर्ण हों , खुलते सभी कपाट।।
जिस समय रामचंद्र जी को उनके गुरु विश्वामित्र जी पिता दशरथ से मांग कर ले गए थे, उस समय उनकी अवस्था 15 वर्ष की थी। जिस समय वह जनक जी के यहां स्वयंवर के लिए पहुंचे तो उस समय उनकी अवस्था 25 वर्ष हो चुकी थी। विवाह के पश्चात रामचंद्र जी 12 वर्ष अयोध्या में रहे। पर उन्हें कोई संतान नहीं हुई। 37 वर्ष की अवस्था में उनका राज्याभिषेक युवराज के रूप में होना था, लेकिन उस समय उनका वनवास हो गया। तब वह 51 वर्ष की अवस्था में लौटकर अर्थात वनवास की अवधि पूरी करके अयोध्या आए। इस प्रकार राज्याभिषेक के समय रामचंद्र जी की अवस्था 51 वर्ष थी। राजा बनने के पश्चात ही उन्हें संतान हुई। इस प्रकार ब्रह्मचर्य के प्रति रामचंद्र जी का अटूट विश्वास था। यह था हमारे आर्य राजाओं का आदर्श। जिसके कारण वह वीर पराक्रमी, देशभक्त, जितेंद्रिय हुआ करते थे।
डॉ राकेश कुमार आर्य