लाल क़िले से ‘प्रधान सेवक’ का लोकलुभावन संबोधन

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-तनवीर जाफ़री-

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भारतवर्ष के 68वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर देश के तेरहवें प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने लाल क़िले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित किया। पूरे देश को इस बात की उत्सुकता थी कि नरेंद्र मोदी इस अवसर पर भारतवासियों को संबोधित करते हुए आख़िर क्या कुछ नया मार्गदर्शन देंगे। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर वे क्या बोलेंगे। उनके व उनकी पार्टी के एजेंडे की झलक उनके भाषण में किस प्रकार दिखाई देगी। और पिछले लगभग तीन महीने के अपने शासनकाल की उपलब्धियों अथवा भविष्य की नीतियों व योजनाओं पर वे क्या प्रकाश डालेंगे? परंतु देशवासियों की यह उत्सुकता जस की तस बरकरार रही। देशवासियों को कुल मिलाकर लोकहितकारी योजनाओं अथवा उपलब्धियों के बजाए मात्र भावनात्मक,लच्छेदार तथा लोकलुभावने भाषण से ही संतोष करना पड़ा। नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर देश के गरीबों के लिए एक वित्तीय समावेशीकरण योजना अवश्य घोषित की जिसका लाभ निश्चित रूप से आम जनता को सीधे तौर पर मिलेगा। इस योजना के अंतर्गत अनिवार्य रूप से कम से कम दो बैंक खाते हर परिवार के लिए खोलने की योजना है। इससे एक बीमा योजना,क़र्ज़, पेंशन तथा डेबिटकार्ड आदि का लाभ सभी परिवारों को मिलेगा। प्रधानमंत्री जन धन नामक यह योजना इस से लाभ उठाने वाले बिचौलियों व दलालों से मुक्त करेगी। सरकार द्वारा दिया जाने वाला प्रत्येक लाभ, सुविधा तथा सब्सिडी आदि सबकुछ सीधे तौर पर शत-प्रतिशत आम जनता के हाथों में जाएंगी।

इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री ने जिन लोकलुभावनी बातों से जनता का दिल जीतने की कोशिश की उनमें स्वयं को प्रधानमंत्री के बजाए प्रधान सेवक कहना,बिना बुलेट प्रूफ (गोली निरोधक) शीशे का सहारा लिये अपना भाषण देना, बिना लिखित सक्रिप्ट के  संबोधन, लाल क़िले पर आए स्कूली बच्चों से जाकर मिलना, कन्या भ्रुण हत्या तथा बलात्कार जैसी बुराईयों के प्रति अपनी गहन चिंता का विशेष अंदाज़ में इज़हार करना,सफाई तथा शौचालय जैसी समस्या को अपने संबोधन में प्रमुख स्थान देना, सांप्रदायिकता, जातिवाद तथा क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर देश के विकास के लिए मिलजुल कर काम करना,बहुमत के बजाए सहमति के साथ सरकार चलाने की बात करना,देश के विकास के लिए पूर्व की सभी सरकारों व सभी प्रधानमंत्रियों की सराहना करना,मेक इन इंडिया एंड मेड इन इंडिया जैसे नारे देना आदि बातें शामिल रहीं। उनका अधिकांश भाषण उपदेश अथवा प्रवचन जैसे अंदाज़ से भरा रहा जो नरेंद्र मोदी  चुनाव से पूर्व चीन की भारत में बढ़ती घुसपैठ के  नाम पर पिछली यूपीए सरकार को कमज़ोर सरकार अथवा नाममात्र की सरकार या इतिहास की अब तक की सबसे कमज़ोर सरकार व मनमोहन सिंह को देश का अब तक का सबसे कमज़ोर प्रधानमंत्री बताया करते थे। पाकिस्तान के बढ़ते दुस्साहस का कारण  कमज़ोर प्रधानमंत्री की कमज़ोर सरकार बताते थे, परंतु लाल क़िले से मोदी ने चीनी घुसपैठ को लेकर कोई ललकार चीन के लिए नहीं लगाई।  नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भी पड़ोसी देश पाकिस्तान द्वारा एक दर्जन से भी अधिक बार सीमा पर घुसपैठ की जा चुकी है। परंतु उन्होंने पाकिस्तान को कोई भी कड़ी चेतावनी भरा संदेश नहीं दिया। हालांकि हमारे नवनयिुक्त सेनाध्यक्ष जनरल सुहाग द्वारा पाकिस्तान को कुछ दिन पूर्व चेताया जा चुका है कि सर कलम करने जैसी किसी घटना की पुनरावृति यदि पाकिस्तान की ओर से की गई तो उसका कड़ा जवाब दिया जाएगा। परंतु प्रधानमंत्री का ऐसे गंभीर विषयों पर कुछ भी न बोले।

चुनाव पूर्व नरेंद्र मोदी देश में बढ़ती हुई बलात्कारी घटनाओं के लिए भी यूपीए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहते थे कि इस राज में बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। वे मां-बहनों को चुनाव पूर्व आश्वस्त करते दिखाई देते थे कि उनके शासनकाल में मां-बहनों की इज़्ज़त की रक्षा की जाएगी। परंतु इस विषय पर उन्होंने एक उपदेश रूपी प्रवचन तो ज़रूर दे डाला। परंतु सरकार की ओर से किए जाने वाले किसी उपाय अथवा किसी योजना का कोई जि़क्र नहीं किया। गौरतलब है कि केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद भी बलात्कार की घटनाओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। उन्होंने सफाई व शौचालय के संबंध में एक और लोकलुभावन बात की। बिहार में लालू यादव ने अपने  मुख्यमंत्रित्व काल में इस संबंध में बाकायदा सरकारी स्तर पर एक अभियान चलाया था। जिसका नाम नहलाओ-धुलाओ अभियान रखा गया था। उस समय लालू यादव के इस अभियानय का मज़ाक उड़ाया गया था। परंतु आज जब मोदी सफाई के विषय पर लाल क़िले से बोले तो उनके समर्थकों ने इसकी सराहना की। देवालय से ज़रूरी शौचालय की बात भी यूपीए सरकार में मंत्री रहे जयराम रमेश द्वारा की गई थी। उस समय नरेंद्र मोदी के संगठन के लोगों ने जयराम रमेश के सरकारी निवास के गेट पर खड़े होकर रोष स्वरूप पेशाब किया था कि आख़िर रमेश ने ऐसा क्यों कहा? परंतु नरेंद्र मोदी द्वारा एक बार फिर वही बात दोहराई गई तथा लाल क़िले की प्राचीर से भी देश के प्रत्येक घर में शौचालय बनाने का संकल्प व्यक्त किया गया।

शौचालय की प्रत्येक घर में ज़रूरत की बात यकीनन बहुत अच्छी है। परंतु यदि हम इसका धरातलीय मुआयना करें तो हम यह देखेंगे कि आज भी देश के अधिकांशत: गांवों में यहां तक नरेंद्र मोदी के अपने गुजरात में भी जहां कि वे एक दशक से भी अधिक समय तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं गांव के संपन्न लोग भी अपने घरों में अपने नित्य कर्म से निवृत नहीं होना चाहते। उनका मानना है कि गंदगी को घरों में संभालकर नहीं रखना चाहिए। बल्कि इससे घर से दूर बाहर जाकर निपटना चाहिए। आज भी तमाम गांवों में संपन्न ग्रामवासी भी यदि शौचालय बनवाते भी हैं तो वह भी केवल अपने परिवार की औरतों के लिए। लिहाज़ा इस विषय पर लोगों की सोच बदलने की आवश्यकता है न कि जबरन किसी घर में शौचाल बनकर उसे वहां शौच करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। नरेंद्र मोदी ने चुनाव पूर्व अपने भाषण में यूपीए सरकार पर मांस निर्यात के कारोबार में उसकी गहन लिप्तता का आरोप लगाते हुए उसको गुलाबी क्रांति का दोषी ठहाराया था। देश को उम्मीद थी कि मोदी सत्ता में आने के बाद सबसे पहले मांस निर्यात को प्रतिबंधित कर देंगे। परंतु इस विषय पर भी वे एक शब्द तक नहीं बोले।
प्रधानमंत्री ने स्वयं को प्रधानमंत्री के बजाए प्रधान सेवक कहकर लोगों की खूब वाहवाही लूटी। कन्या भ्रुण हत्या को लेकर उन्होंने मां-बाप से अधिक डॉक्टरों को ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने डॉ्क्टरों पर हमला बोलते हुए कहा कि वे अपनी तिजोरियां भरने के लिए गर्भ मेें पल रही बच्चियों को न मारें। जबकि डॉक्टर से अधिक दोषी वे माता-पिता हैं जो कन्या भ्रुण की हत्या के लिए स्वयं चलकर डॉटर के पास जाते हैं। परंतु ऐसा कहकर उन्होंने डॉक्टरों को कठघरे में खड़ा कर आम जनता से तालियां ज़रूर बजवा लीं। उन्होंने योजना आयोग को समाप्त कर शीघ्र ही एक नई संस्था की घोषण की बात भी की है। विशेषज्ञों का कहना है कि अब भविष्य में या तो कारपोरेट घरानों की मरज़ी से व उनकी इच्छानुसार भविष्य की योजनाएं निर्धारित होंगी या फिर किसी थिंक टैंक वाली संस्था से सलाह लेकर योजनाओं का खाका बनाया जाया करेगा। देश के युवाओं को उन्होंने मेंड इन इंडिया मिशन से जुड़ने  का आह्वान किया। परंतु इसके लिए भी उन्होंने कोई ब्लू प्रिंट पेश नहीं किया।

युवा कहां जुड़ें,कैसे जुड़ें, क्या करें और मेड इन इंडिया के मिशन में अपना योगदान किस प्रकार व किस रूप में दें। इसका कोई खुलासा प्रधानमंत्री ने नहीं किया। बस कुल मिलाकर राजनीति की वही घिसी-पिटी चिरपरिचित रणनीति मोदी के भाषण में भी नज़र आई कि चुनाव पूर्व पहले सत्ता के मुंह पर खूब कालिख पोतो, उसपर कीचड़ उछालो और सत्ता को इस कद्र बदनाम करो कि मतदाता न केवल सत्ता से आजिज़ व परेशान नज़र आने लगें बल्कि सत्ता उन्हें देश की सबसे लचर व कमज़ोर व्यवस्था भी दिखाई देने लगे। और इस प्रकार वही जनता उन्हें विकल्प के रूप में देखने लगे। और चुनाव होने पर जब वही विकल्प सत्ता पर कब्ज़ा जमा ले तब एक योग्य शासक के रूप में जनता के सामने आने के बजाए मीडिया से किनारा करना शुरु कर दो और अपनी उपलब्धियां गिनाने के बजाए उपदेश, प्रवचन व समाज सुधार संबंधी भाषणों का सहारा लेने लगो मोदी से काफी उम्मीदें थीं कि वे उस महंगाई के प्रति भी अपने मुखारबिंदु से कुछ उद्गार ज़रूर व्यक्त करेंगे जिस मंहगाई के लिए पूरे देश में उन्होंने यह नारे लिखवा डाले थे कि बहुत हो चुकी मंहगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार। देश के अर्थशास्त्री अभी से इस बात को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं कि मोदी सरकार को सत्ता में आए तीन महीने होने को हैं परंतु अभी तक देश की विकास दर में कोई इज़ाफ़ा दर्ज नहीं हो सका है। कुल मिलाकर लाल क़िले से प्रधान सेवक के भाषण को उनके लोकलुभावन संबोधन के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता।

 

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