नदी जोड़ो परियोजना : संप्रग सुस्‍त, न्‍यायालय चुस्‍त

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भवेश नंदन झा

सर्वोच्च न्यायालय ने ठंढे बस्ते में डाल दी गयी “नदी जोड़ो परियोजना” को समयबद्ध तरीके से लागू करने का निर्देश दिया है. यह देश के लिए बेहद सुखद समाचार है, जहाँ बिहार और असम जैसे राज्य पानी की अधिकता के चलते बाढ़ से त्रस्त रहते हैं वहीँ दक्षिण भारत में पानी की कमी को लेकर आपस में तनाव बना रहता है. यह स्थिति कमोबेश पूरे देश में है. जो काम सरकार को खुद करना चाहिए था उसकी पहल भी सर्वोच्च न्यायालय को करनी पड़ रही है.

अटल सरकार की इस महत्वपूर्ण परियोजना को सिर्फ इसलिए पीछे धकेल दिया गया क्योंकि इस परियोजना की शुरुआत में तत्कालीन भाजपा सरकार का नाम इससे जुड़ा है, उस वक्त की ऐसी सभी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का यही हश्र किया गया है. वो चाहे “स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना” हो “रेल फ्रंट कॉरिडोर” हो “प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना” या फिर छह “एम्स परियोजना”…वह भी का वर्तमान सरकार का दुराग्रह तब है जब इन बड़ी और बड़े स्तर की परियोजना एक परिवार विशेष “जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और संजय गाँधी” के तर्ज पर नहीं रखा गया है.. सोचिये जब इस तरह से नाम रखा जाता तब ये सरकार तो शायद उस परियोजना को रद्द ही कर देती..

दूरदर्शी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के समय 2002 में भयानक सूखा पड़ा था उन्होंने फौरी कार्रवाई के साथ इसके स्थायी निदान को लेकर एक टास्क फ़ोर्स का गठन भी किया था. इसी टास्क फ़ोर्स के सलाह पर राजग सरकार ने भारत के सबसे बड़े लागत और बड़े स्तर की नदी जोड़ो परियोजना की शुरुआत की थी. पर जैसे ही 2004 में संप्रग सरकार का गठन हुआ इसने पिछली सरकार की हर परियोजना को ठंढे बस्ते में डाल दिया और सिर्फ वर्तमान और वोट को ध्यान में रखकर परियोजना शुरू किया गया, जबकि प्रधानमंत्री को अर्थशास्त्र का ज्ञाता माना जाता है पर इस सरकार ने एक भी ऐसी परियोजना नही बनाई है जो कि भारत के भविष्य को सुदृढ़ बनाये.

1 COMMENT

  1. भावेश नंदन झा जी पता नहीं आपकी उम्र क्या है?खैर इससे भी कोई ख़ास अंतर नहीं पड़ता,पर जहां तक मुझे याद है,नदियों को जोड़ने वाली योजना पहली बार बृहत् रूप में साठ के दशक में सामने आयी थी.धर्मयुग के किसी अंक में यह योजना प्रकाशित हुई थी.उस योजना का प्रारूप उस समय के सबसे अधिक चर्चितविषयों में से एक था.इंदिरा सरकार के समक्ष भी यह योजना रखी गयी थी.उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.फिर आयी मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार और यह विषय बड़े जोर शोर से सामने आया.इस पर कुछ प्रारंभिक कारर्वाई भी हुई.मुझे याद नहीं यह मामला उस समय क्यों अटक गया?शायद पर्यावरण संबंधी कोई कठिनाई सामने आ गयी थी.इस पर समय समय पर बहस अवश्य चलती. वाजपेई सरकार के समय भी इसका संशोधित रूप सामने आया था पर उनकी सरकार ने इस पर आगे क्या किया मुझे ज्ञात नहीं.
    मेरे इस गड़े मुर्दे उखाड़ने के उद्देश्य केवल यह हैं कि मेरे विचारानुसार इस मामले में विचार विमर्श वाजपेई जी के सत्ता में आने के बहुत पहले होता रहा है,पर मामला वहीं का वहीं अटका रहा.

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