स्मोकिंग और सांसें – ये रिश्ता क्या कहलाता है


                                 – भाषणा बंसल गुप्ता

हमें जिंदा रहने के लिए क्या चाहिए? आप शायद इस सवाल पर हंस रहे होंगे कि कितना बचकाना सवाल है। बच्चा-बच्चा जानता है, कि जीवित रहने के लिए हमारी सांसों का चलना बहुत जरूरी है। सांसें गईं, तो सब गया। मतलब इन्सान खत्म। जितना सच ये है कि, सांसों की जरूरत के बारे में सबको पता है, उतना ही बड़ा सच ये भी है कि, शायद ही कोई ऐसा इन्सान होगा, जिसे पता नहीं होगा कि स्मोकिंग और सांसों के बीच क्या रिश्ता है। स्मोकिंग का सीधा संबंध, हमारे फेफड़ों से है। स्मोकिंग चाहे किसी भी रूप में हो, वो इन्सान के फेफड़ों को तबाह कर देती है। फेफड़े ही हैं, जो हमारी सांसों को चलता रखते हैं। ये खराब होते हैं, तो सांसों की लड़ी भी टूटने लगती है, बिखरने लगती है। 

इस बात में भी सौ प्रतिशत सच्चाई है कि सब जानते हैं कि स्मोकिंग करना गलत है। इससे फेफड़े खराब होते हैं। सिगरेट की डिब्बी पर भी लिखा होता है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे कैंसर होने का डर होता है। लेकिन फिर भी स्मोकिंग का चलन कम होने की बजाय, बढ़ता ही जा रहा है। ऐसा क्यों है?

हर जगह मौजूद हूं मैं

इसका मुख्य कारण है – स्मोकिंग प्रोडक्ट आसानी से मिलना। 18 साल से ऊपर का कोई भी व्यक्ति बड़े आराम से इन्हें खरीद सकता है। ये हर किसी के लिए आसानी से उपलब्ध हैं। और कुछ मिले न मिले, हर गली-नुक्कड़ की दुकान मिल जाती है, जहां इन्सान के फेफड़ों को गलाने का सामान धड़ल्ले से बेचा जाता है।

डिटेक्टिव गुरू राहुल राय गुप्ता कहते हैं, “मैंने जबसे अपनी कंपनी खोली है, तब से यही नियम बनाया है कि, स्मोकिंग करने वाला कोई भी इन्सान हमारी कंपनी में काम नहीं करेगा। इंटरव्यू के दौरान, कैंडिडेट से पूछा जाता है कि वो स्मोकिंग तो नहीं करता। मेरे ख्याल से हर ऑफिस में यही नियम होना चाहिए। मेरी कंपनी में ही नहीं, बल्कि मेरे घर में भी कोई स्मोकिंग नहीं कर सकता। मैं अपनी गाड़ी में किसी को स्मोकिंग करने की परमिशन नहीं देता, चाहे वो इन्सान कितना भी खास क्यों न हो। लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि, बड़ी-बड़ी कंपनियां अलग से ‘स्मोकिंग ज़ोन’ बनाती हैं, जहां लोग ‘स्मोक ब्रेक’ के लिये जाते हैं। ये एक तरह से उन लोगों के साथ सहानुभूति की तरह लगता है। उनकी जरूरत बना दिया गया है। जिसको पूरा करना कंपनी अपना फर्ज समझती है। हर एयरपोर्ट पर ऐसे ज़ोन बने होते हैं। ऐसे जोन्स की जरूरत ही बताती है कि हम स्मोकिंग रोकने को कितना सीरियसली लेते हैं।”

बड़ी-बड़ी हस्तियां गुलाम हैं मेरी

स्मोकिंग के बढ़ते चलन का एक और बड़ा कारण है – फिल्मों, सीरीज में इसका बहुत ज्यादा प्रयोग। बॉलिवुड की फिल्में हों, या टॉलिवुड की या फिर हॉलिवुड की, हर जगह पात्रों से इतनी ज्यादा स्मोकिंग करवाई जाती है, कि दर्शकों को लगने लगता है कि, स्मोकिंग इन्सान की ज़िंदगी का एक अभिन्न अंग है। ये कोई खराब बात नहीं है। आपने देखा होगा कि, जैसे ही फिल्म या सीरीज के मुख्य पात्र को कोई टेंशन होती है, तो वो झट से सिगरेट सुलगा लेता है। इससे दर्शकों के मन में ये संदेश जाता है कि, स्मोकिंग, तनाव को दूर करती है। 

जब लोग अपने मनपसंद हीरो को पर्दे पर स्मोकिंग करते देखते हैं, तो उनको लगता है कि ये तो आम बात है। ऐसा सब करते हैं। यही नहीं, जब असली ज़िंदगी में भी लोग, बड़े-बड़े एक्टर्स के बारे में पढ़ते हैं, कि उसे स्मोकिंग करने की लत है, तो वो उनको और ज्यादा प्रोत्साहन मिलता है। उनको लगता है कि, एक्टर्स तो अपने स्वास्थ्य को बेहद गंभीरता से लेते हैं। क्या उनको अपनी ज़िंदगी की फिक्र नहीं है? मतलब, वो ये मान लेते हैं कि ये इतनी बड़ी या गलत बात नहीं है।

फिल्मों और सीरीज में बेवजह ही ऐसे सीन ठूंस दिए जाते हैं। कहानी की मांग कहकर, निर्माता-निर्देशक इससे अपना पीछा छुड़ा लेते हैं। लेकिन हर कहानी की मांग ऐसी नहीं होती कि फ्लां व्यक्ति चेन स्मोकर है। पूरा दिन स्मोकिंग करता रहता है। कुछेक कहानियां ऐसी होती हैं, जहां पर इसका जिक्र होता है, उसे माना जाएगा कि कहानी की मांग है, स्मोकिंग।

मुझसे छुटकारा आसान नहीं

स्मोकिंग की लत को छोड़ना बेहद मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन तो बिल्कुल भी नहीं है। अगर इच्छाशक्ति हो तो इसे छोड़ा जा सकता है। इससे छुटकारा पाने के लिए पहले अपने अवचेतन मन को तैयार करना होगा। उसे बताना होगा कि ये आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। हमारा अवचेतन मन बेहद मजबूत है। उसमें एक बार जो बात फिट हो जाती है, वो फिर मिटाए नहीं मिटती। इसलिए मन की गहराईयों से कहें कि स्मोकिंग आपके फेफड़े गला रही है। आपकी सांसों को खराब कर रही है। आपकी उम्र को कम कर रही है। रोजाना दिन में एक-दो बार भी ऐसा सोचेंगे तो आपका अवचेतन मन इसे ग्रहण कर लेगा और इसमें बैठ जाएगा कि जिंदा रहना है तो स्मोकिंग छोड़नी ही होगी। अच्छा स्वास्थ्य चाहते हैं, तो स्मोकिंग से किनारा करना ही होगा।

हमारा मन ही है, जो हमसे अच्छे या बुरे काम करवाता है। बस उसको बोल दें कि, आपको खुश रहना है, जिंदा रहना है, स्वस्थ रहना है, आपका काम हो जाएगा। फिर मन आपको ऐसे-ऐसे सुझाव देगा कि आपका मन ही नहीं करेगा कि आप स्मोकिंग करें। यकीन मानिए, ऐसा जरूर होगा, बस मन में इस लत को छोड़ने की धुन पाल लें। फिर देखना, कैसे चमत्कार होगा।

                        भाषणा बंसल गुप्ता

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here