व्यंग्य

व्यंग्य : इस खाकी वर्दी में बड़े-बड़े गुण…

पुलिस विभाग की कुछ महान आत्माओं का अपना एक गीत है—”इस वर्दी में बड़े-बड़े गुण”. लाख सुखों का इक अड्डा है, आ भरती हो जा.. आ भरती हो जा”. उस दिन की बात है जब एक पुलिस वाला”देश भक्ति, जन सेवा”के लिये गंगाजल की कसम खा रहा था तो लोग चकरा गए. पुलिसवाला और गंगाजल की कसम ?

एक ने कहा -”एक तो पुलिस वाला गंगाजल या किसी भगवान् की कसम खाने से रहा और अगर खा भी लिया तो इसका साफ-साफ मतलब यही है कि वह सच से ‘चार सौ बीस’ किलोमीटर दूर।”

दूसरे ने कहा -”क्या अब पुलिस वालों में इतनी नैतिकता बची है, कि वे सच्ची कसम खाएँ ? गरीबों को सताएंगे, अमीरों से वसूली करेंगे. और जब पत्रकारों या नेताओं की ‘बत्ती’ पड़ेगी तो कसम खाएँगेकि हमने ऐसा नहीं किया. उनके लिए गंगाजल,महानदी और नाली के पानी में कोई फर्क नहीं होता।”

तीसरे ने पूछा -”यार, लोगबाग अपने-अपने भगवान, अल्लाह या गॉड की झूठी कसमें क्यों खाते है ?”

चौथे ने मुसकराते हुए जवाब दिया -”जिसे मालेमुफ्त खाने की आदत पड़ जाये, वही सबसे ज्यादा कसमें खाता है ताकि वर्दी या पद सलामत रहे। वर्दी न रही तो ‘दिलेबेरहम’ कैसे हो सकेगा? वर्दी है तो धौंस है, वरना दो कौड़ी के भी नहीं रहेंगे। चालाक लोग झूठी कसम खा कर कुर्सी बचा लेते हैं। सच बोल दें तो फुटपाथ पर आ जाएँ ।”

सभी लोग इस बात पर सहमत थे।

बात-बात पर अपनी करतूतों पर सफाई देने वाले कुछ पुलिस वाले मुफ्तखोरी का अंतरराष्ट्रीय शौक पाल लेते हैं । इसी तरह का एक शौक़ीन पुलिसवाला क्या-क्या नहीं खाता था फोकट में। सड़क से गुजरे तो उसकी भूख बढ़ जाया करती थी। फल का ठेला दिखे तो अंगूर उठा कर खा ले। ठेले वाला मन ही मन गाली देता है- ‘साले, तेरे बाप का ठेला है क्या’, लेकिन प्रकट में बोले- ‘सब कुछ तो आपका ही है, सर’।

चाय-ठेला देख कर चाय पी ले। फिर कुछ देर बाद आइसक्रीम भी माँग कर खा ले। सब उनको अपने बाप-दादों के ठेले और दुकानें लगती हैं। जहाँ जी किया, चले गए. माँग लिया: नहीं-नहीं छीन लिया कहना ज्यादा सही होगा। खाया-पीया और डकार ले कर आगे बढ़ गए। इसलिए नहीं कि पुलिसवाला कोई महान आत्मा है। वरन् इसलिए कि उसके तन पर खाकी वर्दी है। हाथ में डंडा है। इसीलिए वह शहर भर का पंडा है। खा-पीकर मुसटंडा है। यह वर्दी का फंडा है.यही हथकंडा उसके बढ़ाते हुए पेट का और उनके घर-बार, बाल-बच्चों का, बीवी और रखैलों का भाग्य विधाता है।

एक ने पूछा -”इस तरह से फ़ोकट का माल खानेवाले लोग आखिर जीते कैसे हैं ?”

दूसरे ने उत्तर दिया -”जी लेते हैं बेचारे…क्योंकि दुनिया में आये हैं तो जीना ही पड़ेगा.ऐसे लोगों के पास एक चीज का सर्वथा अभाव रहता है। वो चीज है आत्मा। आत्मा के बिना हर कोई चैन से जी लेता है. ऐसे लोग सम्मानित भी होते रहते हैं।”

तीसरे ने चट से कहा-”उदाहरण सामने है। रावणी-गोत्र के पुलिसवाले ने एक व्यक्ति का हाथ तोड़ दिया। लेकिन उस पर कार्रवाई तो दूर, अगले के नाम के आगे-पीछे श्री-जी भी लगाया जाता रहा। बाद में उसका प्रमोशन भी हो गया. क्या ये चोर-चोर मौसेरे भाई वाली फिक्सिंग का नतीजा है? इनको कुछ सबक सिखाया जाना चाहिए.”

चौथे ने कहा -”अरे यार, तुम तो ऐसी बातें करने लगे, गोया पुलिस व्यवस्था रूपी दुम ‘सीधीच्च’ हो जाएगी। श्वान की दुम और ‘वर्दी-चरित्तर’ के सीधे होने की कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। हताशा-निराशा ही हाथ लगेगी भाया।”

तीसरा मौन हो गया। उसे लगा कि उसके यार-दोस्त ठीक ही बोल रहे हैं। आजादी के इतने वर्षों में ये नहीं सुधरे तो अब क्या सुधरेंगे। उल्टे मुँह में सुविधाओं का खून लग गया है। थाने मे बलात्कार तो जैसे इनका”नित्य’-कर्म”बन गया है. थाने का नाम होगा धरमजयगढ़. मगर वहां अधर्म की जय-जय करते रहेंगे.बलात्कार भी करेंगे और ऐसा आतंक फैलायेंगे कि पीड़ित औरत वर्दी का चेहरा भी पहचानने से इनकार कर देगी. वर्दी की आड़ में गरीबों का रक्तपान करके मच्छर-खटमलों को भी मात देने वाले, बहुत से पुलिस वाले न सुधरे हैं, न सुधरेंगे। इन पर चिंतन ही बेकार है।

एक ने सुझाव दिया -”लेकिन सरकार चाहे तो इन पुलिसवालों को ‘राइट’ कर सकती है। पुलिसवालों के अधिकारों में कटौती कर दी जानी चाहिए और जैसे ही पता चले कि पुलिस वाले ने किसी गरीब के हाथ-पैर तोड़े हैं, उसे तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए। ठीक है, एकदम से न करें। पहले निलंबित करें, फिर मामले की जाँच करें और जाँच में पुलिस का अधिकारी न रहे वरना वह तो यही रिपोर्ट देगा कि जिस व्यक्ति का हाथ या पैर टूटा था वह तो एक नंबर का अपराधी है। पुलिस वाले उसे पकडऩे दौड़ रहे थे कि वह छत से कूद पड़ा या गिर पड़ा और हाथ-पैर टूट गए।”

सबके सब अपने-अपने रास्ते चल दिए। ज्यादा मुखालफत ‘नाक के लिये खतरा’ यानी ‘खतरनाक’ भी हो सकती है. मैं भी अपनी बात यही रोकता हूँ, क्योंकि मुझे भी अपने हाथ-पैर नहीं तुड़वाने। लोग पुलिस को तो कुछ नहीं कहेंगे, मुझे ही गरियाएंगे कि कलम चलाते-चलाते हाथ लचक कर टूट गया होगा।