भारतवर्ष वह पावन भूमि है जिसने संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने ज्ञान से आलोकित किया है। इसने जो ज्ञान का निदर्षन प्रस्तुत किया है वह केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के कल्याण का पोषक है। यहाँ संस्कृति का प्रत्येक पहलू प्रकृति व विज्ञान का ऐसा विलक्षण उदाहरण है जो कहीं और नहीं मिलता। नये वर्ष का आरम्भ अर्थात् भारतीय परम्परा के अनुसार ‘वर्ष प्रतिपदा’ भी एक ऐसा ही विलक्षण उदाहरण है।भारतीय कालगणना के अनुसार इस पृथ्वी के सम्पूर्ण इतिहास की कुंजी मन्वन्तर विज्ञान मे है। इस ग्रह के संपूर्ण इतिहास को 14 भागों अर्थात् मन्वन्तरों में बाँटा गया है। एक मन्वन्तर की आयु 30 करोड़ 67 लाख और 20 हजार वर्ष होती है। इस पृथ्वी का संपूर्ण इतिहास 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का है। इसके 6 मन्वन्तर बीत चुके हैं। और सातवाँ वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है। हमारी वर्तमान नवीन सृष्टि 12 करोड़ 5 लाख 33 हजार 1 सौ 4 वर्ष की है। ऐसा युगों की भारतीय कालगणना बताती है। पृथ्वी पर जैव विकास का संपूर्ण काल 4,32,00,00,00 वर्ष है। इसमें बीते 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 1 सौ 11 वर्षों के दीर्घ काल में 6 मन्वन्तर प्रलय, 447 महायुगी खण्ड प्रलय तथा 1341 लघु युग प्रलय हो चुके हैं। पृथ्वी व सूर्य की आयु की अगर हम भारतीय कालगणना देखें तो पृथ्वी की शेष आयु 4 अरब 50 करोड़ 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष है तथा पृथ्वी की संपूर्ण आयु 8 अरब 64 करोड़ वर्ष है। सूर्य की शेष आयु 6 अरब 66 करोड़ 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष तथा सूर्य की संपूर्ण आयु 12 अरब 96 करोड़ वर्ष है।
विश्व की प्रचलित सभी कालगणनाओं मे भारतीय कालगणना प्राचीनतम है। इसका प्रारंभ पृथ्वी पर आज से प्राय: 198 करोड़ वर्ष पूर्व वर्तमान श्वेत वराह कल्प से होता है। अत: यह कालगणना पृथ्वी पर प्रथम मानवोत्पत्ति से लेकर आज तक के इतिहास को युगात्मक पद्वति से प्रस्तुत करती है। काल की इकाइयों की उत्तरोत्तर वृद्धि और विकास के लिए कालगणना के हिन्दू विषेषज्ञों ने अंतरिक्ष के ग्रहों की स्थिति को आधार मानकर पंचवर्षीय, 12वर्षीय और 60 वर्षीय युगों की प्रारम्भिक इकाइयों का निर्माण किया। भारतीय कालगणना का आरम्भ सूक्ष्मतम् इकाई त्रुटि से होता है। इसके परिमाप के बारे में कहा गया है कि सूई से कमल के पत्ते में छेद करने में जितना समय लगता है वह त्रुटि है। यह परिमाप 1 सेकेन्ड का 33750वां भाग है। इस प्रकार भारतीय कालगणना परमाणु के सूक्ष्मतम इकाई से प्रारम्भ होकर काल की महानतम इकाई महाकल्प तक पहँचती है।
पृथ्वी को प्रभावित करने वाले सातों ग्रह कल्प के प्रारम्भ में एक साथ एक ही अश्विन नक्षत्र में स्थित थे। और इसी नक्षत्र से भारतीय वर्ष प्रतिपदा का प्रारम्भ होता है। अर्थात् प्रत्येक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथमा को भारतीय नववर्ष प्रारम्भ होता है जो वैज्ञानिक दृष्टि के साथ-साथ सामाजिक व सांस्कृतिक संरचना को प्रस्तुत करता है। भारत में अन्य संवत्सरों का प्रचलन बाद के कालो में प्रारम्भ हुआ जिसमें अधिकांष वर्ष प्रतिपदा को ही प्रारम्भ होते हैं। इनमे विक्रम संवत् महत्वपूर्ण है। इसका आरम्भ कलिसंवत् 3044 से माना जाता है। जिसको इतिहास में सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा शुरु किया गया मानते हैं। इसके विषय में अलबरुनी लिखता है कि ”जो लोग विक्रमादित्य के संवत का उपयोग करते हैं वे भारत के दक्षिणी एवं पूर्वी भागो मे बसते हैं।”
इसके अतिरिक्त भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र शुक्लपक्ष में तथा वरुण देवता (झूलेलाल) का जन्म भारतीय मान्यताओं के अनुसार वर्ष प्रतिपदा को माना जाता है। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती के द्वारा आर्य समाज की स्थापना तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक प.पू.डॉ0 केशव राम बलिराम जी का जन्म 1889 में इसी पावन दिन (वर्ष प्रतिपदा) को हुआ था।
इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी भारतीय नववर्ष उसी नवीनता के साथ देखा जाता है। नये अन्न किसानों के घर में आ जाते हैं, वृक्ष में नये पल्लव यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी अपना स्वरुप नये प्रकार से परिवर्तित कर लेते हैं। होलिका दहन से बीते हुए वर्ष को विदा कहकर नवीन संकल्प के साथ वाणिज्य व विकास की योजनाएं प्रारम्भ हो जाती हैं। वास्तव में परम्परागत रुप से नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही प्रारम्भ होता है।
-बालमुकुन्द पाण्डेय
(लेखक अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय सह-संगठन मन्त्री हैं)
aapka yaha article bada accha v gyanvardhak laga. ise ratlam, Jhabua(M.P.), Dahoud(Gujarat) se prakashit Dainik Prasaran me prakshit karane ja rahhon hoon.
kripaya, aap apana postal addres aaj hi send karen, taki aapko parti samaya par pahoochayi ja saken.
pan_vya@yahoo.co.in