बस, अब और नहीं ….
राजनीति करने के बजाय सरकार के साथ खड़े हो इस मुद्दे पर सभी दल।
डॉ घनश्याम बादल
आतंकवाद का एक और घिनौना चेहरा पहलगाम में सामने आया है. जब से कश्मीर से धारा 370 हटाई गई है एवं नई विधानसभा का गठन हुआ है, तभी से आतंकवाद लगातार सर उठाने का प्रयास करता रहा है. सच यह भी है कि वहां आतंकवाद को प्रेशर देने के लिए पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसियां और वहां की राजनीतिक मजबूरियां इसके पीछे सबसे बड़े जिम्मेदार तत्व हैं लेकिन लंबे समय से उन्हें वहां ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं मिला था. ऐसे में उन्होंने पहलगाम की उस बैसरन घाटी को चुना जो अमरनाथ यात्रा का भी एक मुख्य बिंदु है और अमरनाथ यात्रा के दौरान इस क्षेत्र का बहुत अच्छे से सेना एवं स्थानीय सुरक्षा बलों द्वारा सैनिटाइजेशन किया जाता रहा है लेकिन अभी अमरनाथ यात्रा दूर है, इसलिए संभव है वहां की सतर्कता कम हुई हो और इसका फायदा आतंकवादियों ने उठकर पहलगाम में पर्यटकों की बड़ी संख्या में जान ले ली।
पहलगाम जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में आतंकवादी हमलों के पीछे कई प्रछन्न उद्देश्य हैं। ऐसे हमलों के पीछे आमतौर पर कई कारण और ताकतें होती शामिल हैं। यदि पहलगाम के आतंकी हमले पर एक निगाह डाली जाए तो साफ पता चलता है कि इस हमले में पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन कश्मीर घाटी में अस्थिरता फैलाने को आतुर जिम्मेदार हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इन संगठनों को पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसीज का हमेशा का समर्थन मिलता रहा है। दरअसल पिछले एक लंबे समय से जम्मू कश्मीर शांत क्षेत्र के रूप में तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता हुआ नजर आ रहा था और वहां पर पर्यटन उद्योग भी बहुत फल फूल रहा था और यह बात हमारे ईर्ष्यालु पड़ोसी को रास नहीं आई क्यूंकी उसका उद्देश्य हमेशा ही भारत में अस्थिरता फैलाना रहा है। आतंकवादी संगठन भारत में सांप्रदायिक तनाव और अस्थिरता फैलाना चाहते हैं ताकि देश की एकता और अखंडता को चोट पहुँचाई जा सके।
पाकिस्तान का हमेशा से ही कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का प्रयास जग जाहिर है। अब वह सीधे-सीधे तो भारत पर हमला करने की स्थिति में है नहीं क्योंकि उसकी एवं भारत की सैन्य ताक़त में ज़मीन आसमान का अंतर है । ऐसे में वह अपने पाले हुए आतंकी संगठनों का सहारा लेता रहा है। हमलों के ज़रिए ये संगठन दुनिया का ध्यान कश्मीर की ओर खींचना चाहते हैं ताकि उसे एक “विवादित क्षेत्र” के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। यह संगठन अपने आका के कहने पर कश्मीर के पर्यटन और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचने की कोशिश करते रहते हैं । पहलगाम जैसे स्थान, अमरनाथ यात्रा और अन्य पर्यटन केंद्र आतंकियों के निशाने पर इसलिए होते हैं क्योंकि वे कश्मीर की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। हमलों से पर्यटन प्रभावित होता है।
अपनी स्लीपिंग सेल्स के माध्यम से ये संगठन स्थानीय युवाओं का कट्टरपंथीकरण और ब्रेन वाश भी लगातार करते रहे हैं जिससे उन्हें वहां के कुछ गिने-चुने स्थानीय लोगों का समर्थन भी मिल जाता है। ऐसे हमलों के ज़रिए ये ताकतें स्थानीय युवाओं को प्रभावित कर उन्हें उग्रवाद की ओर मोड़ना चाहती हैं।
आतंकवादियों का लक्ष्य किसी भी हाल में भारतीय सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ना भी रहता है। सेना, सी आर पी एफ और पुलिस बलों को निशाना बनाकर आतंकवादी उनके मनोबल को तोड़ने और जनता में भय का माहौल बनाने का प्रयास करते हैं।
इस हमले में जिस टीआरएफ का नाम आया है जो एक नया लेकिन बेहद सक्रिय आतंकवादी संगठन है जो विशेष रूप से कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए सक्रिय रहता है। वास्तव में यह संगठन लश्कर ए तैयबा की ही एक छद्म शाखा है जो 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के कुछ ही समय बाद बना था। अंतरराष्ट्रीय दबाव और प्रतिबंधों के कारण इसका नाम बदलकर एक नया चेहरा दिया गया।
यह संगठन कितना चालाक है कि इसके सदस्य विभिन्न कंपनियों तक में कर्मचारियों के रूप में काम करते हैं. टीआरएफ सोशल मीडिया और साइबर स्पेस में भी सक्रिय रहता है जहाँ ये युवाओं को कट्टरपंथी बनाने का काम करता है। रणनीति के तहत यह संगठन आमतौर पर छोटे हथियारों से हमले करता है जिसमें स्थानीय नागरिक, प्रवासी मज़दूर, पंचायत सदस्य या पुलिस बल के जवान निशाने पर होते हैं मगर इस बार तो इन्होंने एक-47 जैसी रायफलों का इस्तेमाल करके यह जता दिया है कि अब यह एक साधन संपन्न संगठन है एवं इसे नजर-अंदाज करना बहुत ख़तरनाक हो सकता है।
यह संगठन खुद को “स्वदेशी कश्मीरी प्रतिरोध” के रूप में पेश करता है ताकि यह दिखाया जा सके कि ये आंदोलन बाहर से थोपा गया नहीं बल्कि स्थानीय है । टीआरएफ सोशल मीडिया और इंटरनेट सेवी आतंकी संगठन है जो धमकियाँ देना, ज़िम्मेदारी लेना, वीडियो जारी करना आदि बड़ी सक्रियता के साथ करता है। इसी टीआरएफ ने पिछले कुछ वर्षों में श्रीनगर, बारामुला, अनंतनाग और पुलवामा जैसे इलाकों में कई टारगेटेड किलिंग्स और ग्रेनेड हमलों की ज़िम्मेदारी ली है।
पहलगाम जैसे संवेदनशील क्षेत्र में आतंकवादी हमले की स्थिति में राज्य सरकार और भारत सरकार को त्वरित और दीर्घकालिक दोनों स्तरों पर ठोस कार्रवाई करनी होगी।
इस और ऐसे ही दूसरे संगठनों को खत्म करने हेतु त्वरित प्रतिरोध और ऑपरेशन एनकाउंटर या सर्च ऑपरेशन चलाकर आतंकवादियों को जल्द से जल्द पकड़ना या मारना होगा । सुरक्षाबलों की संख्या और गश्त बढ़ाने, खासकर संवेदनशील क्षेत्रों और यात्रा मार्गों पर (जैसे अमरनाथ यात्रा मार्ग)। इंटेलिजेंस नेटवर्क को मजबूत करने स्थानीय और केंद्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाने।मानव और तकनीकी खुफिया दोनों को बढ़ावा अपनाना होगा। स्थानीय जनता का विश्वास बहाल करना होगा उनके साथ संवाद बढ़ाना होगा ताकि वे आतंकियों का समर्थन न करें और सूचनाएँ साझा करें।
बेशक, वर्तमान सरकार आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलती है और उस पर शक्ति से चलना भी होगा लेकिन बिना सोचे समझे और बिना रणनीति के कार्रवाई करना भी एक ग़लत संदेश देगा. वही ऐसी हरकतों को चुपचाप सहना या इसमें बहुत देरी करना भी खतरनाक है । कुल मिलाकर अब बारी राज्य एवं केंद्र सरकार की है और उसे अपनी भूमिका बहुत अच्छे से निभाते हुए सिद्ध करना होगा कि भारत अब ऐसी गतिविधियों को किसी भी हाल में सहन करने वाला नहीं है. सभी राजनीतिक दलों को भी आगे बढ़कर बजाय राजनीति करने के आतंकियों के ख़िलाफ़ एक जुट होकर सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए।
डॉ घनश्याम बादल