—विनय कुमार विनायक
नारी पुरुष का मूलतः चार जैविक रुप होता
माँ-पिता भाई-बहन पति-पत्नी और पुत्र-पुत्री
माँ-पिता हैं इस धरा के सबसे बड़े देवी देवता
माँ-पिता के बराबर कोई सम्बन्धी नहीं होता!
भाई-बहन का आपसी रिश्ता तबतक ही होता
जबतक वे माँ-पिता के आश्रित, नाबालिग होते
जबतक वे माँ-पिता की रसोई में खाना खाते
जबतक पिता करते हैं अन्न धन की व्यवस्था!
भाई-भाई,भाई-बहन अपने होते बचपन तक ही
जब भाईयों और बहनों की शादियाँ हो जाती
तब पिता से मिले एक विरासती जमीन में भी
भले पड़ोसी सा नहीं रह पाते, हो जाती दुश्मनी!
पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा है
कि एक दूसरे से संतुलन बिठाने में उम्र गुजर जाती
जहाँ पति पत्नी के भाईयों और बहनों से प्यार करता
वहीं पत्नी पति के भाई-बहनों से दूरी बरकरार रखती
पराएपन की व्यवहार रखती, अक्सर तकरार करती!
भाई-भाई के अपनापन को उनकी पत्नी कम कर देती
भाईयों के बीच जायदाद की लड़ाई को पत्नी उकसाती
एक पत्नी अपने पति को उनके माँ-पिता से छीन लेती!
अगर कोई पुत्र अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजता
तो उसके पीछे उसकी पत्नी का सोलह आना हाथ होता
एक पत्नी अपने पति को इतना अधिक मजबूर कर देती
कि पति अपने माँ-पिता भाई-बहन से बहुत दूर हो जाता!
नारी माँ के रुप में जितनी उदारमना महान देवी होती
पत्नी रुप में नारी की उतनी ही स्वार्थ भरी छवि होती
पत्नी रुपी नारी माता-पिता से उनके पुत्र को छीन लेती
और अपने पति को भाई-बहनों से भी अनबन करा देती!
हर पत्नी अपने पुत्र पुत्री से बेशुमार अंधा प्यार करती
हर नारी गांधारी सा अपनी आँखों में पट्टी बांध लेती
ऐसे में अगर कोई पिता धृतराष्ट्र जैसा अंधा हो जाए
तो संतान दुर्योधन दुशासन सा दुर्जन कौरव हो जाती!
अक्सर संतान सफल इंसान माता के प्यार से नहीं
पिता के अनुशासन और कठोर व्यवहार से ही होती!
दुनिया की कोई भी दंपति ऐसा नहीं
जिसमें पत्नी पति का दम नहीं पछाड़ देती
पत्नी जितनी अधिक सुन्दर होती
पति से अकेले उतना अधिक शीतयुद्ध करती
ऐसी कोई पत्नी नहीं होती जो अपने पति को
माँ पिता भाई बहन की नजर में पतित ना कर दे!
नारी माता के रूप में जहाँ स्वर्ग से भी सुन्दर होती
वही पत्नी रुप में बहुत ही मायावी मगरूर हो जाती
हर पत्नी दुनिया की निगाह में मासूम मूरत बनती
लेकिन बंद कमरे में रणचंडी दुर्गा जैसी करतूत करती!
पत्नी घर की हर सफलता का श्रेय खुद लेती
और असफलता का ठीकरा पति के माथे पर फोड़ती
पत्नी पति के भाव विचार से कभी सहमत नहीं होती
मौका मिलते ही पत्नी पति को धर्मसंकट में डाल देती!
क्या जरूरत थी सीता को कंचनमृग अभिलाषी होने की
वो पति के कहने से स्वर्ण आभूषण त्याग वनवासी बनी
अगर सीता अपने पति की परिस्थिति से सहमत होती
तो अपहरित नहीं होती, होती नहीं नारकीय घर गृहस्थी!
द्रोपदी को क्या जरूरत थी
दुर्योधन को अंधा का बेटा अंधा कहने की
पत्नी वजह बनी भाईयों के बीच महाभारत लड़ाई की
नारी का ये चार रुप पुरुष के चार रुपों पर भारी पड़ती!
—विनय कुमार विनायक