सनातन की पहचान है पगड़ी

—विनय कुमार विनायक
सनातन की पहचान है पगड़ी
मरते पगड़ी जीते पगड़ी
सनातनी हर अवसर पर पहनते पगड़ी!

पगड़ी में भेदभाव नहीं अगड़ी पिछड़ी
सनातनी हिन्दू बौद्ध जैन सिख
कभी किसी की उछालते नहीं हैं पगड़ी
सनातनी जन्म से मृत्यु तक
सुविधानुसार बांधते और खोलते पगड़ी!

हिन्दू बच्चों की पहली मुंहजुट्ठी में
पहनाई जाती कान्हा जैसी पगड़ी
श्राद्ध के तेरहवीं तिथि को रसम पगड़ी!

हल जोतते बैलगाड़ी चलाते सनातनी किसान
बांधते थे किसानी मुड़ैठा नामक पगड़ी
प्राचीन काल से सनातनी बिना लिखा पढ़ी
मकान दुकान भाड़े में लगाते लेकर धन राशि पगड़ी!

राजस्थान में हर मौसम में अलग रंग की मौसमी पगड़ी
पंजाब हरियाणा में पहनते साफा दस्तार पंजाबी पगड़ी
बिहार यूपी में चौपाल पंचायत में पहनते अंगोछा की पगड़ी
सम्मान का प्रतीक है पगड़ी, अपमान है उछालना पगड़ी!

सनातनी किसान पुट्ठे व सींगधारी बैल की पूजा करते थे
देशी गोवंश को सम्मान देते सींग माथे पर ढक्कन लगाके
अब विदेशी नस्ल की दोगली जर्सी गाय के बकलोल बछड़े
बिना पुट्ठे और सींग के होते मंदबुद्धि बिना किसी काम के!

विवाह मंडप व गुरुद्वारा में अवश्य पहनी जाती पगड़ी
विवाह में वर और वधू पक्ष वाले पहनते पहनाते पगड़ी
समधी मिलन होता नहीं बिना सिर पर बांधे पगड़ी!

घर के बुजुर्ग मुखिया या माता-पिता की मृत्यु पर
तेरहवीं को ज्येष्ठ पुत्र पितृ दायित्व उठाने के लिए
पगड़बंधन रस्म अदायगी कर धारण करते हैं पगड़ी!

जब दूल्हा पक्ष को प्रचुर तिलक दहेज नहीं दे पाते
कन्या के गरीब पिता पगड़ी उतार कर माफी मांगते
या विषम परिस्थिति में खुद ही उतारनी पड़ती पगड़ी!

ऐसा ही भारतवर्ष में एक अवसर आया था
जब एक बूढ़ी राजनीतिक पार्टी का बड़ा पेड़ गिरा था
तो उस पार्टी के लोगों ने पगड़ीधारी सिखों का कत्ल किया
हर गली मुहल्ले के वोटर लिस्ट से नाम खोज-खोजकर
निर्दोष सिखों के गले में टायर बांधकर जीते जी जलाया
तब जीवन रक्षा हेतु सिख संतों को उतारनी पड़ी थी पगड़ी!

इस विपदा के बाद फिर कभी सनातनी पगड़ी खतरे में नहीं पड़ी
आज उसी गिरे पेड़ के ठूंठ से निकले विदेशी रक्त मिश्रित नस्ल के
बिना पगड़ी वाले एक वंशवादी साम्प्रदायिक नेता ने साजिश के तहत
विदेशी धरती पर जाकर फिर से उछाल रहे सनातनी सिखों की पगड़ी!

जिसे खुद की जाति पता नहीं पर हिन्दुओं की जाति ढूंढते-ढूंढते
पगड़ी कड़ा तिलक कलावा की भी जाति धर्म मजहब ढूंढने लगते
पगड़ी कड़ा तिलक कलावा की कभी अलग-अलग जाति रही नहीं!

आरंभ से सनातन पंथों में पगड़ी कड़ा पहनने की रीति थी
राम कृष्ण तथा दस सद्गुरु पगड़ी कड़ा बाजूबंद पहनते थे
गौर से देखो सारे तीर्थंकर और बुद्ध के सिर घुटे नहीं थे
घुंघराले बालो जैसी ढकी हुई पगड़ी सिर से चिपक बैठी थी
सनातन संस्कृति को मानने वाले मुस्लिम भी पहनते पगड़ी
इस सनातनी पगड़ी वाले देश में कोई क्यों उछालेगा पगड़ी!
—विनय कुमार विनायक

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