क्यों बिगड़ रहा है शादियों का मिजाज

भाषणा बंसल गुप्ता

समझ नहीं आती कि हमारे समाज में हो क्या रहा है। एक तरफ इतने सारे अतुल सुभाष हैं और दूसरी तरफ बहुत-सी विक्टिम लड़कियां भी हैं जो ससुराल के टॉक्सिक माहौल को झेल रही हैं, प्रताड़ित हो रही हैं और चाहकर भी उससे बाहर नहीं निकल पा रही हैं।

शादी अब नहीं रही पवित्र बंधन

शादियां एक तमाशा बनकर रह गई हैं। कुछेक सालों में शादियों की जो हालत हुई है, उसे देखकर कह ही नहीं सकते कि लोग शादी को गंभीरता से लेते हैं। एक लड़की ने केवल इसलिए शादी कर ली क्योंकि वो वेडिंग ड्रेस में फोटोशूट कराना चाहती थी। एक जगह बारात को रसगुल्ला न परोसे जाने की वजह से दूल्हे ने नाराज होकर शादी तोड़ दी। कहीं पर बारात को खाना परोसने में देर हुई तो दूल्हा नाराज हो गया और अपनी शादी बीच में छोड़कर चला गया। यही नहीं, उसने उसी दिन किसी और से शादी भी कर ली।

छोटे शहरों, यहां तक कि मेट्रो सिटीज में लुटेरी दुल्हनें हैं जो कई-कई लड़कों के साथ शादी करके कुछ घंटों, दिनों या महीनों बाद ससुराल वालों को लूटकर फरार हो जाती हैं। “डॉली की डोली” फिल्म ऐसी लुटेरी दुल्हन की कहानी पर ही बनी थी। असलियत में तो लुटेरी दुल्हनें इससे कई कदम आगे चल रही हैं।

लुटेरे दूल्हे भी एक्टिव हो रहे हैं। कुछ महीने पहले बैंग्लोर के एक लड़के ने लगभग 15 महिलाओं को शादी करके लूट लिया। बिल्कुल लुटेरी दुल्हनों की तर्ज पर। फिल्म “फ्रॉड सईयां” इसी विषय पर बनी है, जिसमें एक्टर अरशद वारसी लुटेरा दूल्हा बने हैं।

शादी करते वक्त नहीं देते हैं ध्यान

अंतर्राष्ट्रीय प्राइवेट डिटेक्टिव राहुल राय गुप्ता का कहना है, “लोग शादी से पहले पूरी तरह से छानबीन नहीं करते। बस शक्ल देखते हैं, काम देखते हैं, परिवार में कौन-कौन है, घर अपना है या किराए का, इतना जानना उनके लिए काफी होता है। जबकि ऐसी और बहुत-सी बातें होती हैं, जो रिश्ता पक्का करने से पहले पता होनी चाहिएं। जैसे जो रिश्ता आप कंसीडर कर रहे हैं, कहीं वो क्रिमिनल माइंड का तो नहीं है। कहीं उसकी पहले शादी तो नहीं हुई है। अगर उसका पहले से अफेयर था तो कहीं उसका एक्स क्रिमिनल माइंडेड तो नहीं है, जिससे आपकी आने वाली जिंदगी प्रभावित हो सकती है। लुटेरी दुल्हनें और लुटेरे दूल्हे इसीलिए सफल हो रहे हैं क्योंकि लोग शादी से पहले होने वाले पार्टनर की हिस्ट्री चेक नहीं करते। वो सोचते हैं कि हिस्ट्री से क्या लेना-देना। बहुत-सी मुलाकातों के बाद भी लोगों को एक-दूसरे का हर सच पता नहीं होता। दोनों अपना-अपना वर्जन बताते हैं, अपने परिवार को लेकर, रिश्तों, दोस्तों, नौकरी को लेकर, और उसे ही सच मान लिया जाता है। गहराई से कोई इस बात पर ध्यान ही नहीं देता कि उनकी कही बातें झूठी भी हो सकती हैं।”

ये तो मानना पड़ेगा कि लोगों की जानकारी में कहीं तो कमी रह जाती है, तभी तो उनको पता नहीं चलता कि जिसके साथ वो सात फेरे ले रहे हैं, उसके पता नहीं कितने फेरे हो चुके हैं। मेट्रिमोनियल साइट्स पर देखे रिश्तों पर लोग आंख मूंदकर भरोसा करते हैं। जयपुर में जो लुटेरी दुल्हन पकड़ी गई थी, वो एक मशहूर मेट्रिमोनियल साइट पर ही मिली थी।

आखिर ऐसा क्या बदल गया

शादियों का ये मिजाज समझ से परे है। सिंगल मदर्स और सिंगल फादर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इससे बच्चों का फ्यूचर काफी प्रभावित हो रहा है।

मनोवैज्ञानिक और मैरिज काउंसलर शिवानी मिसरी साधु बताती हैं, “आजकल के कपल्स अपने कैरियर, आर्थिक जिम्मेदारियों और निजी महत्वाकांक्षाओं की वजह से तनावग्रस्त रहते हैं और साथ में क्वालिटी टाइम नहीं बिता पाते। ज्यादातर मामलों में कपल्स को समझ ही नहीं होती कि वो अपने विवादों को कैसे सुलझाएं। जिससे उनके बीच की छोटी-मोटी असहमतियां कब बड़ा मुद्दा बन जाती हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता।”

अंतर्राष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक डॉ. कशिका जैन का मानना है, “डेटिंग ऐप्स और सोशल मीडिया के कारण रिश्ते तेजी से बनते हैं, लेकिन अकसर रिश्तों में गहराई की कमी होती है। इसी के कारण कपल्स एक-दूसरे के प्रति समर्पण नहीं दिखाते, जिम्मेदारी नहीं बांटते तो संघर्ष बढ़ता है। पति-पत्नी के बीच खुलकर बातचीत न होना, समस्याओं और भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त न कर पाना, रिश्ते में दरार का बड़ा कारण है। पहले तलाक को कलंक माना जाता था। अब इसे ‘नई शुरुआत’ के रूप में देखा जाता है।”

सोशल मीडिया की भूमिका  

डॉ. कशिका जैन कहती हैं, “सोशल मीडिया पर परफेक्ट कपल्स की तस्वीरें देखकर लोग उनसे अपनी शादी की, सुविधाओं की, पार्टनर की तुलना करने लगते हैं। इससे रिश्ते में असंतोष बढ़ता है। सोशल मीडिया और फिल्मों की देखादेखी लोग अपने जीवनसाथी से बेवजह की उम्मीदें रखने लगे हैं, जो पूरी नहीं होती हैं तो रिश्तों में तनाव आता है। चमक-धमक और रुतबा बनाए रखने की चाहत और उस पर बढ़ती महंगाई, कर्ज का बोझ, और दोनों की अलग-अलग आर्थिक प्राथमिकताओं के कारण रिश्ते पर असर पड़ता है।”

डिटेक्टिव राहुल राय गुप्ता कहते हैं, “हर कोई अपनी शादी को अच्छा दिखाना चाहता है। शादी के फंक्शन्स तक तो सब खुश होते हैं, लेकिन असली जिंदगी में कदम रखते ही पैसों को लेकर झगड़े होने लगते हैं। कई कपल्स अपने छोटे-मोटे झगड़ों को भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते हैं। असल में वो पूरी दुनिया के सामने खुद को विक्टिम शो करना चाहते हैं और उनको हमदर्दी मिल भी जाती है। लेकिन उनके पार्टनर पर इसका गलत असर पड़ता है। उसके अहं को चोट पहुंचती है। दोनों के बीच फासले बढ़ने लगते हैं। कम्युनिकेशन गैप आ जाता है, जिससे रिश्ता खराब होने लगता है।”

रिश्ता करते वक्त पारदर्शिता है जरूरी

शादी से पहले चीजें जितनी साफ होंगी, शादी सफल होने की संभावना उतनी ज्यादा बढ़ेगी। लेकिन हमारे समाज में शादी के लिए रिश्ता तय करते समय बहुत दिखावा किया जाता है।

डिटेक्टिव राहुल राय गुप्ता कहते हैं, “अकसर लोग शादी से पहले बहुत-सी बातें छिपा लेते हैं। कोई बीमारी, कोई ऐसा अतीत, जिससे शादी प्रभावित हो सकती है। लड़के या लड़की का काम या फैमिली की कोई ऐसी बात, जिससे बदनामी होने का डर हो। उनका फोकस इस बात पर होता है कि बस किसी तरह रिश्ता पक्का हो जाए। बाद की बाद में देखी जाएगी। लेकिन शादी के बाद वही बातें जब खुलती हैं तो शादी टूटने की नौबत आ जाती है।”

शादी से डरने लगा है युवावर्ग

शादियों का ऐसा मंजर देखकर आज के बहुत-से यंगस्टर्स शादी को खौफनाक समझने लगे हैं।

शिवानी मिसरी साधु युवाओं को ये सलाह देती हैं कि, “मौजूदा हालातों में शादी डरावनी लग सकती है लेकिन सही माइंडसेट होने से ये डर खत्म हो सकता है। युवाओं को ये याद रखना चाहिए कि शादी एक पार्टनरशिप है, कोई दौड़ या जिम्मेदारी नहीं। पार्टनर ढूंढने से पहले अपने मूल्यों, लक्ष्यों, प्राथमिकताओं पर गौर करें। होने वाले पार्टनर से खुलकर बातचीत करें, अपनी उम्मीदों और भविष्य की योजनाओं के बारे में बताएं। कोई भी शादी परफेक्ट नहीं होती। लेकिन धैर्य और आपसी सम्मान होने से चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। समाज के प्रेशर में न आएं। शादी तभी करें, जब आप मानसिक रूप से तैयार हों।”

डॉ. कशिका जैन सुझाव देती हैं कि, “बातचीत को प्राथमिकता दें। एक-दूसरे को आजादी दें। फैमिली के दखल को कम करें। दोनों परिवारों के साथ संबंधों को संतुलित करें। सोशल मीडिया का प्रयोग कम करें। रिश्ते में असुरक्षा और तुलना से बचें। समस्या बढ़ जाए तो पेशेवर मदद लेने में न हिचकिचाएं। धैर्य, आजादी, छोटी छोटी बातों को संभालने की समझदारी और बातचीत जरूरी है। सप्ताह में एक बार डिजीटल डिटॉक्स करें। एक बार डेट नाइट रखें।”

डिटेक्टिव राहुल राय गुप्ता के सुझाव हैं कि “यंगस्टर्स को शादी करने से पहले खुद को पूरी तरह तैयार करना चाहिए। दिखावे को छोड़कर असली जिंदगी जीना सीखें। वर्चुअल दुनिया को केवल मनोरंजन तक सीमित रखें। शादी के बाद हर जिम्मेदारी को बांटें। एक-दूसरे को स्पेस दें। छोटी-छोटी चीजों में खुशियां तलाशें। आर्थिक मामले मिलकर संभालें ताकि एक पर बोझ न पड़े। सपने पूरे करने में एक-दूसरे का साथ दें। एक-दूसरे के पेरेंट्स की जिम्मेदारी मिलकर संभालें। जेंडर को कभी रिश्ते के बीच में न लाएं क्योंकि अब जमाना बहुत बदल चुका है। समय के साथ चलना सीखें।”

क्या हो समाज की भागीदारी

डॉ. कशिका जैन बताती हैं, “बेटी के माता पिता भी लड़की के परिवार में बहुत ज्यादा दखलअंदाज़ी करने लगे हैं। उनके इस दखल की वजह से लड़की को छोटी बात कभी-कभी बड़ी लगने लगती है और रिश्ता ज्यादा खराब हो जाता है।”

राहुल राय गुप्ता कहते हैं, “हमारे समाज को शादियों को लेकर प्रेक्टिकल दृष्टिकोण अपनाना होगा। शादी केवल इसलिए नहीं होनी चाहिए क्योंकि उम्र हो गई है। या कैरियर बन चुका है, तो शादी कर लो। बल्कि शादी तब होनी चाहिए, जब लड़का-लड़की दोनों पूरी तरह से तैयार हों। आजकल कई कपल्स इसलिए भी शादी बचाने की ज्यादा कोशिश नहीं करते क्योंकि वो शादी करना ही नहीं चाहते थे। करीब 80 प्रतिशत शादियां किसी न किसी दबाव के कारण होती हैं। उनमें से ज्यादातर शादियों के न चलने की यही मुख्य वजह होती है।”

मैरिज काउंसलर शिवानी मिसरी साधु के मुताबिक, “समाज और परिवार, कपल्स में आपसी समझ, सहयोग और बराबरी के कल्चर को विकसित करके उनकी मदद कर सकते हैं। साथ ही वे उनसे बेतहाशा उम्मीदें रखने या बेवजह दखल देने की बजाय उनको भावनात्मक सहयोग देकर उनका साथ दे सकते हैं। हमारा समाज दहेज, लिंगभेद या समय से पहले शादी जैसे सामाजिक दबावों को खत्म करके, कपल्स को ऐसा माहौल दे सकता है, जहां शादी को प्यार, भरोसे और साझे मूल्यों के आधार पर आगे बढ़ाया जाए।”

कपल्स खुद, उनका परिवार और समाज मिलकर कोशिश करें तो शादी जरूर सफल होगी। इसके लिए सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारी बखूबी संभालनी होगी ताकि शादी के इंस्टीट्यूशन को बचाया जा सके।

भाषणा बंसल गुप्ता

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