किसानों को चर्चा के केन्द्र में लाएगी स्कूलो में कृषि शिक्षा

विवेक कुमार पाठक 
मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री ने दो दिन पहले कहा है कि प्रदेश में अब कक्षा 6 से कृषि विषय को स्कूलों में पढ़ाया जाएगा। प्रदेश में नई सरकार आने के बाद यह घोषणा तब हुई है जब देश प्रदेश की राजनीति में किसान चर्चा का केन्द्र बने हुए हैं। मप्र में वक्त बदलाव का लाने में कांग्रेस को किसानों का कितना समर्थन मिला है ये चुनाव परिणामों ने दिखा दिया है। ऐसे में किसानों और खेती किसानी की शिक्षा स्कूलों में दिए जाने के अपने मायने हैं। कृषि शिक्षा देने से किसान और खेती किस तरह गांवों की तरह शहर में जानी पहचानी जाएगी इस पर चर्चा की जरुरत है। दशकों से हम पढ़ते आ रहे हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है और भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। कृषि पर इस निर्भरता के बाबजूद देश में कृषि की तरफ से निरंतर पलायन हो रहा है। मध्यप्रदेश में भी देश के अन्य राज्यों की तरह निरंतर नगरीकरण बढ़ रहा है। गांवों से कस्बों और कस्बों से नगर और महानगर की ओर किसान और किसान का परिवार पलायन कर रहा है। सक्षम किसान खुद खेतीबाड़ी देखते हुए अब अगली पीढ़ी का भविष्य खेती में नहीं देखते। वे बच्चों को गांव से शहर पढ़ने भेज रहे हैं और किसानी का काम बटाईदार से करा रहे हैं। बटाईदार भी खेती कर रहा है मगर ये उसका मन का काम न होकर मजबूरी का काम है। वो भी किसी तरह अपने बच्चों को इस बिना फायदे के काम से दूर रखना चाहता है। उसके बच्चे भले ही गांव में पढ़ते हों मगर वे भी किसान नहीं बनना चाहते। शहर में चौकीदार, गार्ड से लेकर तमाम चतुर्थ श्रेणी के काम उसे पसंद हैं मगर खेती से बटाईदार और गरीब किसान का बेटा भी दूर रहना चाहता है। खेती के भविष्य के लिए यह स्थिति खतरे का संकेत हैं। ऐसे में खेती और किसानी के काम के प्रति सकारात्मक वातावरण बनाने का काम स्कूलों से बेहतर किया जा सकता है। शहर के बच्चे चित्रकारी र्स्पधाओं में हरे भरे जो खेत बना देते हैं क्या हकीकत में उन्होंने देखे हैं। क्या उनके घर रोज खरीदी जाने वाले फल,सब्जियां अनाज के उगने से विक्रय तक की उसे कोई जानकारी है। कैसे छोटे छोट बीज धरती के गर्भ में जाकर करोड़ों देशवासियों का पेट भरने खेतों में लहलहाती फसल के रुप में खड़े हो जाते हैं क्या शहरी बच्चों ने देखे हैं। किसान की फसल कैसे बाजार में आती है कैसे उसकी उपज बिकती है और किस तरह उसका घर परिवार चलता है इन बातों की समाज में चर्चा की बहुत जरुरत है। खेती लाभ का धंधा सिर्फ सरकारी मंचों से घोषणाओं और नीति निर्माण सें नहीं बनेगी। खेती किसानी के प्रति समाज में चर्चा, बहस और बातचीत बहुत जरुरी है। गांवों से शहर में पलायन तभी रुकेगा जब गांवों के किसानों को उनकी उपज पक्की आमदनी का पक्का वादा देगी। अधिक पैदावार और कम पैदावर दोनों स्थितियों में किसानों का शोषण बिना समाज में व्यापक चर्चा और बहस के नहीं रुक पाएगा। ऐसे में बहुत जरुरी है कि गांवों से निकलकर खेत और किसान की जिंदगी उनकी समस्याओं और उनके हल के प्रति हमारे समाज में संवेदनशीलता और जानकारी बढ़े। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार अगर 6वीं कक्षा से स्कूलों मेें कृषि की शिक्षा देती है यह कदम निश्चित ही खेती किसानी के लिए वातावरण निर्माण में अच्छा कदम होगा। हालांकि अभी यह सिर्फ घोषणा ही है मगर प्रदेश के युवा कृषि मंत्री सचिन यादव ने इंदौर में मंच से बोलकर इस दिशा में शुरुआत तो कर ही है। सचिन खरगोन के कृषि बहुल क्षेत्र से हैं और उनके पिता और मप्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय सुभाष यादव की खांटी किसान छवि को बरकरार रखने की अहम जिम्मेदारी उन पर है। मध्यप्रदेश मंत्रीमंडल में उन्हें कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की छवि देने के पीछे उनके परिवार की किसान हितैषी पृष्ठभूमि भी है। ऐसे में अब इंतजार करना होगा कि क्या नयी सरकार के युवा कृषि मंत्री कृषि शिक्षा को स्कूलों में शुरु करा पाते हैं या नहीं। खेती किसानी के प्रति मध्यप्रदेश में सकारात्मक वातावरण बनाने में इस कदम का हर किसान हितैषी को अब इंतजार रहेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here