जय कन्हैया लाल की….

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(28 अगस्त जन्माष्टमी विशेष)

Bal  Krishna and Mother Yasoda परमजीत कौर कलेर

जब-जब अन्याय और पाप बढ़ा है तब-तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतार धारण करके इस धरती पर आते हैं… विष्णु ने भी अधर्म को रोकने और अधर्मी के संहार के लिए धरती पर अवतार लिया…इसी क्रम में भगवान विष्णु ने आठवां अवतार लिया श्रीकृष्ण जी के रूप में…और तभी से देश और दुनिया में जन्माष्टमी पर्व को धूम-धाम से मनाया जाने लगा…इस त्यौहार को अलग अलग सूबों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है…कृष्णाष्टमी, सातम आठम, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंति और कृष्ण जन्माष्टमी…हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्र महीने की अमावस्या की अष्टमी यानी आंठवें दिन कृष्ण अष्टमी को देश के अलग – अलग राज्यों में मनाया जाता है ।

मगर तीन राज्यों में तो गोकुलाष्टमी का अपना ही अहम महत्व है…ये राज्य हैं उतर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र…उतर प्रदेश की जन्माष्टमी इसलिए भी मशहूर है क्योंकि इसी पवित्र धरती पर ही कृष्ण जी का जन्म हुआ था…इसी पवित्र धरती पर अठखेलियां करते हुए नंद लाल का बचपन बीता…यहीं पर उन्होंने दुनिया को प्रेम का ज्ञान दिया…यहीं पर उन्हें राधा जी से प्रेम हुआ ..तरह तरह की लीलाएं कीं…उनकी ये लीलाएं सबका मन मोह लेती हैं…माखन चुराना, दूध , दही से भरी मटकियां इन्होंनें मथुरा, वृन्दावन की गलियों में  ही फोड़ीं हैं …इसके अलाव अगर बात गुजरात की करें तो यहां भी….ये पर्व बेहद मशहूर है…दरअसल गुजरात की पावन धरती भी गवाह है…भगवान कृष्ण की ठखेलियों की…और महाराष्ट्र में तो श्रीकृष्ण जी के बालहठ और शरारतों से जुड़े खेल होते हैं जो दुनियाभर में मशहूर हैं…दही हांडी प्रतियोगिता के लिए तो प्रतियोगी पूरे साल मेहनत करते हैं…महाराष्ट्र के नौजवान इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं…मराठी में इस टोली को ‘बाल गोपाल मित्र मंडल’के नाम से जाना जाता है…दही हांडी के इस मनोरंजक खेल को केवल मुंबई में सैकड़ों जगह पर आयोजित किया जाता है…यही नहीं खेलने वालों की टोलियां भी दो सौ से अधिक गों की होती है…गुजरात में मुरलीधर ने द्वारका नामक शहर को आबाद किया…और इसे अपनी राजधानी बनाया था…इसके चलते ही उन्हें द्वारकाधीश के नाम से जाना जाता है…गुजरात के हर शहर में भगवान श्रीकृष्ण के अनेकों मंदिर हैं…। पूरे देश में कृष्णजन्माष्टमी की धूम है …जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है…जिसे देश भर में बड़ी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जारहा है…पूरे देश में मंदिरों को शानदार तरीके से सजाया गया है….मंदिरों की रौनक देखते ही बनती है….जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है…देश भर के मंदिरों को बड़ी धूमधाम से सजाया गया है और हर गली मुहल्ले में बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े और महिलाएं सब जन्माष्टी की खुशी में सराबोर है….भगवान श्रीकृष्ण अवतार के उपलक्ष्य में हर जगह मंदिर देवालयों में सुन्दर झांकियां सजाई गई हैं…भगवान कृष्ण का श्रृंगार करके उनके लिए झूला लगाने की भी प्रथा है…इस दिन श्रद्धालु रात बारह बजे तक व्रत रखते हैं…रात के बारह बजे मंदिरों की आभा तो देखते ही बनती है..अष्टमी की रात को शंख और घंटे-घड़ियालों की आवाज से सारा माहौल कृष्णमय हो जाता है…मानों कृष्ण मुरारी के जन्म की खबर चारों दिशाओं में फैल जाती है…भगवान श्री कृष्ण की आरती उतारी जाती है उसके बाद प्रसाद बांटा जाता है…प्रसाद ग्रहण करने के बाद श्रद्धालु व्रत खोलते हैं या उपवास तोड़ते हैं…भारतीय धर्म शास्त्र के अनुसार जब धरती पर पाप हद से ज्यादा बढ़ जाते हैं तो उसका अन्त करने के लिए भगवान किसी न किसी रूप में जन्म लेते हैं और लोगों को इन दुखों से निजात दिलाते हैं…द्वापर युग में भी भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेकर धरती को कंस नामक राक्षस से मुक्ति दिलाई थी…

प्यारी और न्यारी है…ये धरती तब धन्य हो गई …जब वहां भगवान कृष्ण ने जन्म लिया…मथुरा नगरी को बेशक मधु नामक राक्षस ने बसाया था…मथुरा नगरी कृष्ण भक्तों को काफी प्रिय रही है…भगवान कृष्ण के जन्म के बाद उनकी लीलाओं के दीदार दुनिया ने इसी पावन धरती पर किया…इन लीलाओं को करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कई चमत्कार भी दिखाए…कंस के आतंक से कराहती जनता को राहत देने के लिए कंस का वध किया….जिससे भोली भाली जनता ने राहत की सांस ली…अगर बात करें मथुरा की तो यहां जन्माष्टमी के अवसर पर गौरांग लीला और रामलीला होती है…इस अवसर पर ठाकुर जी को बड़े ही अच्छे ढंग से सजाया जाता है…मथुरा का जिक्र हो और बांके बिहारी की क्रीड़ा- स्थली के बारे में हम ना बताए भला ये कैसे हो सकता है…वृन्दावन भगवान कृष्ण की क्रीड़ा स्थली रही है…वो अपने सखाओं के साथ गाय चराने और खेलने यहां आया करते थे…अगर बात करें यहां के मंदिरों की तो यहां मंदिरों की संख्या बेशुमार है…पूरे वृन्दावन में तकरीबन पांच हजार मंदिर हैं…ये स्थान भगवान कृष्ण को बेहद प्रिय था…यहीं पर  रह कर इन्होंने कई लीलाएं रचाई …ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण को ये स्थान इतना प्रिय था कि आज भी वृन्दावन में उनका वास है…यही कारण है कि हर व्यक्ति को इस स्थान से बेहद लगाव है…और हर किसी की तमन्ना होती है कि वो अपने जीवन में एक बार वृन्दावन की गलियों की जरूर सैर करे…श्रीकृष्ण ने अपना अधिकतर समय यहीं पर व्यतीत किया था…इसी कारण वृन्दावन को अन्य धार्मिक स्थलों से अलग माना जाता है…वृन्दावन वो धाम है…जहां कण कण में भगवान कृष्ण बसते हैं…यहां तक कि पेड़ पत्तों में भगवान कृष्ण का वास है…यहां पर आकर सभी श्रद्धालुओं को आत्मिक सुकून और शांति मिलती है…

बेशक वासुदेव श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा में हुआ और उनका पालन पोषण वृन्दावन में हुआ….लेकिन उनका हरियाणा की धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से भी गहरा ताल्लुक रहा है…जब कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ तो गिरधर गोपाल यहां भी आए थे…इसी धरती पर महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था…जन्माष्टमी देश के कोने कोने में मनाई जाती …सूर्य छिपने के बाद तो मंदिरों की आभा देखते ही बनती है..झूले में रखी श्रीकृष्ण की मूर्ति को झूला झुलाया जाता है और कुछ श्रद्धालु अपनी श्रद्धा अनुसार यथाशक्ति धन-दौलत उपहार में चढ़ाते हैं…जिस घर में व्रत उपवास रखा जाता है… उस घर में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं….फल-फूल सजा कर श्रद्धाभाव से पूजा अर्चना की जाती है…और मान्यता के मुताबित रात के बारह बजे जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होता है उस समय श्रद्धालु मदिरों और देवालयों में उत्सव मनाने के लिए इक्ट्ठा हो जाते हैं…मंदिरों में रात के वक्त भगवान के जन्म के समय धूम-धाम से आरती होती है….महाराष्ट्र में जन्माष्टमी मिट्टी पर दही हांडी का खेल बेहद मशहूर है….दही से भरी मटकी जो काफी उंचाई पर बांधी जाती है और हांडी फोड़ने वाले दल पिरामिड बना बना कर मटकी फोड़ने की कोशिश करते हैं….और इसको फोड़ते ही…विजेताओं की वाहवाही होने लगती है…

अगर देश के दीगर सूबों में देखें तो….तामिलनाडू में बेशक बांके बिहारी के मंदिरों की संख्या कम है…लेकिन वहां भी कृष्ण जी की मूर्तियां स्थापित हैं…कांजीवरम के एक मंदिर का नाम पांडवा अधूथर है जिसका अर्थ है …पांडवों का दूत बनकर कौरवों की ओर जाना…चेन्नई में बने पार्थ – सारथी मंदिर में श्रीकृष्ण अर्जुन के (पार्थ) सारथी बन कर उन्हें कुरुक्षेत्र में युद्ध के मैदान में लेजाते हैं…और कदम-कदम पर उनको मार्ग दर्शन देते हैं…वहीं उड़ीसा में इन्हें भगवान जगन्नाथ के नाम से जाना जाता है ।भगवान कृष्ण ने दुनिया को कई रूप का दीदार कराया और दुनिया को सीख दी…श्रीकृष्ण पाण्डवों के रिश्तेदार और आभिन्न मित्र थे और युद्ध में धर्म का साथ दिया…वहीं वे कुशल योद्धा होने के बाद भी युद्ध में अस्त्र-शस्त्र को हाथ भी नहीं लगाया…राजनीतिज्ञ और दार्शनिक भी थे…उनका दर्शन आज भी प्रासांगिक …श्रीकृष्ण युगों – युगों से हमारी आस्था का केन्द्र रहें हैं…उन्होंने दुनिया में जो भी किया उसका मकसद इंसानियत की भलाई ही रहा है….कभी माता यशोदा के लाल के रूप में तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा के रूप में…कभी गोपियों का चैन चुराने वाले छलिया बन कर तो कभी किसी और रूप में…उनका हर रूप मन मोहक रहा है….और हर रूप में कोई ना कोई संदेश रहा है….इसी लिए श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव से सम्बंधित सुन्दर झांकियां निकाली जाती हैं…मनीपुर में कृष्ण लीली को नृत्यशैली में पेश करते हैं…मणीपुर में कृष्ण अष्टमी दो मंदिरों में मनाई जाती है…एक गोविन्दा जी मंदिर में दूसरे इस्कॉन टेम्पल में…पश्चिम बंगाल में भी लोग व्रत रख कर आधी रात को भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं…भागवत पुराण के दसवें स्कंद से श्रीकृष्ण की स्तुति से संबंधित गीत गाए जाते हैं…और दूसरे सूबों से अलग जन्मांष्टमी के दूसरे दिन नंद उत्सव मनाया जाता है जिसमें नंद और यशोदा की भी पूजा होती है…इस दिन लोग अपना व्रत खोलते हैं और कई तरह की मिठाईयां बनाते हैं…दक्षिण भारत में तो लोग अपने घरों में छोटे- छोटे पैर बनाते है…ऐसी आस्था है कि कृष्ण उनके घर से माखन चुराने आएंगे…नेपाल में भी अस्सी प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है …वहां भी कृष्ण अष्टमी को बड़ी ही शिद्दत के साथ मनाते हैं…वहां अष्टमी के दिन रात तक व्रत रखते हैं…भागवद् गीता के कुछ खास श्लोकों का पाठ भी होता है….लोग भजन गाते हैं तो सारा वातावरण ही मानो मंत्रमुग्ध हो उठता है…सभी श्रद्धालु भगवान कृष्ण, नारायण और गोपाल के नामों को गाकर सारा माहौल कृष्णमय बना देते हैं…तालियों की गूंज से मानो उनकी भक्ति में और भी जोश आ जाता है…भक्त कृष्ण की झाकियों पर फूलों और चांदी के सिक्कों की वर्षा करते हैं…इसके बाद मंदिर के पुजारी श्रद्धालुओं को प्रसाद देते हैं…भगवान कृष्ण किसी के चेहरे पर मायूसी और उदासी नहीं देखना चाहते…उन्हें तो सत् चित् आनंद का संगम माना गया है…जिसका अर्थ है कि वो  सबका ख्याल रखते हैं और सबकों आनंदित देखना चाहते हैं…इस तरह जो भी उनकी शरण में आता है…वो आनंदित हो जाता…हम भी चाहते हैं कि आप हमेशा कृष्ण के रंग में रंगे रहे और बांके बिहारी की कृपा आप पर हमेशा बनी रहे

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