नहीं भला होता लड़ने से

    थप्पड़ ने लप्पड़ को मारा,

    लप्पड़ ने घूँसे को।

    घूँसा अब क्या करे बेचारा,

    पीट दिया ठूंसे को।


     ठूंसेजी को वहीं पास में,

     मुक्का पड़ा दिखाई।

     बिना बिचारे उस मुक्के की,

     कर दी खूब धुनाई।


     सबको लड़ता देख वहाँ पर,

     बुलडोज़र सर आये।

     मार- मार उन्हें भगाया,

     मौका बिना गंवाए।


     तभी दौड़कर चांटा आया

     थप्पड़ को समझाया।

     लप्पड़जी पर व्यर्थ आपने,

     अपना हाथ चलाया।


     आपस में ही लड़ जाने से,

     किसका  हुआ भला है।

     रहे गुलामी में सदियों,

     ये ही परिणाम मिला है।
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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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