
—विनय कुमार विनायक
आत्मा और परमात्मा अनादि है
हर आत्मा परमात्मा का पारद सा
खंडित अंश है जिसका लक्ष्य है
परमात्मा में समाहित हो जाना!
आत्मा अनेकबार जन्म-मृत्यु से गुजरी है
जीवात्मा की दुश्मनी और रिश्तेदारी भी
पूर्व जन्मों से निर्धारित, सुनियोजित होती!
आत्मा की जन्म अवस्था लक्षित है,
जो शरीरी इन्द्रियों द्वारा है दृष्टिगोचर,
परन्तु आत्मा की मृत्यु से जन्म के
बीच की अवस्था है इंद्रियातीत अगोचर!
जन्म और मृत्यु निर्बाध क्रिया है
मानवीय दृग शक्ति परिसीमन के कारण
मृत्यु काल के बाद व जन्म के पहले
आत्मा का वाह्य आवरण अदृश्य होता!
जीवात्मा की मृत्यु के बाद जन्म पूर्व
स्थिति मनुष्य छोड़ कुछ अन्य जीव देखते
यही कारण है कि श्मशान से गुजरते
गाड़ी के बैल छाया से सकपका जाते!
कुछ रहस्यमयी परिस्थिति आने के पूर्व,
मनुष्य दृष्टि हीन सा अनजान रहते,
पर अन्य पशु-पक्षी भांप लेते समय पूर्व!
मनुष्य बलहीन,चर्महीन,रोम रहित प्राणी,
किन्तु बुद्धि-विवेक में नहीं कोई शानी!
मनुष्य को बुद्धि विवेक प्राप्ति के लिए
बहुत सारे जैविक गुण त्यागना पड़ता!
मनुष्य में घ्राण की शक्ति सीमित होती,
मनुज का तन आवरण स्थूल नहीं होता!
मनुष्य उड़ता नहीं आकाश में पक्षी जैसा,
मनुष्य उछल कूद सकता नही वानर सा
मनुष्य पशुओं की तरह तैर सकता नहीं!
मनुष्य कठिन स्थिति में जी नही सकता!
पशुओं में पाशविक शक्ति का चमत्कार,
मानव में आत्मिक शक्ति का है विस्तार!