बेटियों पर अत्याचार !

करें जितनी निंदा ।
पड़ते शब्द कम ।।
बेटियां पर अत्याचार ।
होतीं आंखें नम ।।
जा चुका है गर्त में ।
अपना ये समाज ।।
है व्यभिचार अनवरत ।
तज कर लोक लाज ।।
मर गयी संवेदना ।
बना मानव दानव ।।
राम राज्य कालखंड ।
है पतन की लव ?
करती रूदन आत्मा ।
विलख रहा मन ।।
चली प्रगति बात ।
रहे पर विपन्न ।।

कृष्णेन्द्र राय

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