चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव परिणामों ने कांग्रेस के खात्में का
संकेत दे दिया है. कांग्रेसराज में व्याप्त चौतरफा भ्रष्टाचार, कमरतोड़
महंगाई और पथभ्रष्ट नीतियों से आजिज़ हुई जनता ने पंजे को जबरदस्त पटखनी
दी है. कमल जिस तरीके से पूरी अंगराई के साथ खिली है वह मोदीराज के संकेत
के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन स्वभावतः भाजपा विरोधी देश की मीडिया
और वामपंथी, इस जीत को फीका करने में कोई कोर कसर नही छोड़ रहे है. सब के
सब दिल्ली में अन्ना के जन आन्दोलन को धोखा देकर राजनीति की शुरुआत करने
वाले “आआपा” को मिली 28 सीटों के आगे भाजपा की शानदार सफलता को बौना
बताने में जुटे है.
यह ठीक है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को मिली अप्रत्याशित सफलता ने
राजनीतिक दलों के पारंपरिक चाल-चलन पर बहस छेड़ी है. राजनीति क्षेत्र में
शुचिता और व्यक्तिगत ईमानदारी पर एक नए सिरे से मंथन हो रहा है जो
लोकतंत्र के लिए शुभ लक्षण है. लेकिन इसके साथ साथ यह मानने में कोई
गुरेज नही होना चाहिए कि आप को मिली इस चुनावी सफलता के साथ कई चिंताएं
भी साथ साथ उभरी है जो भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए सुखद संकेत नही
है. इसमें सबसे खतरनाक है वामपंथियों का चोला बदलकर एक नए रूप में सामने
आने का.
दरअसल जिस आक्रामक अंदाज में आप की एंट्री को प्रचारित किया जा रहा है,
वह चौंकाने वाला है. कई लोग आप को मिली सफलता को उसकी नीतियों की जीत
बताते है. अब भला कोई ये बताए कि वो कौन सी नीतियाँ थी, जिसके बल-बूते आप
उतरी है! सिवाए झूठे आश्वासनों, कभी न पुरे होने वाले वादों, गाली-गलौज
और भावनात्मक तरीकें से लोगों को ब्लैकमेल करने की नीतियों के अलावा था
क्या. लेकिन जीत को इतना बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है मानो अब भाजपा की
जगह आआपा लेगी!
सच कहें तो आआपा की यह जीत दिल्ली के कुछ चिन्हित संस्थाओं व लोगों की
मेहनत का परिणाम है, जिसने पहली बार अनपढ़ों के साथ साथ पढ़े लिखें को भी
बरगलाने में कामयाब रही है. इसमें पहला नाम भाजपा-संघ परिवार की पारंपरिक
विरोधी मीडिया का है. आआपा के पक्ष में कुछ मीडिया घराने और पत्रकार
प्रवक्ता की तरह व्यवहार करते दिखे, जिसकी वजह से मतदाता भ्रमित हुए.
मीडिया का एक बड़ा धरा भाजपा को नीचा दिखाने और आप को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने
में दिन-रात एक करके लगा था, जिसने भाजपा को मिलने वाली बड़ी जीत केवल
ज्यादा सिट लाने वाले दल में बदल कर रख दिया.दिल्ली जैसे छोटे प्रदेश में
यह प्रयोग सफल रहा, इसलिए बड़े रोमांचित है सब. पता नही क्या क्या उपमाओं
से नवाजे जा रहे है आआपाई लोग.
कांग्रेस को समर्थन करनेवाले और भाजपा-संघ परिवार के पीछे हाथ धोकर पड़े
रहने वाले पत्रकार मोदी नाम से घबरा गए है. अब जबकि मोदी की आंधी में
सारे कांग्रेसी कीलें ढहते चले जा रहे है, जनता में मोदी के पक्ष में
माहौल बन रहा है, वैसे समय में मीडिया द्वारा कांग्रेस को छोड़कर एक ऐसा
मुखौटा खड़ा करने की साजिश चल रही है, जो कांग्रेसी विरोधी वोटों में सेंध
लगाकर भाजपा को सत्ता से दूर रख सकें! आआपा को प्रोजेक्ट करने के पीछे भी
वही रणनीति है.
दूसरी बड़ी भूमिका नक्सली-माओवादी समर्थक लोगों की है जो मार्क्स-लेलिन के
थोथी दलीलों के सहारे भारत में लाल पताका फहराने का हसीन सपना देखते रहते
है. वामपंथ अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है, इसके बावजूद विदेशी व मृतप्राय
हो चुकी विचारधारा से पलने वाले लोग अपना सबसे बड़ा शत्रु मोदी को मान
बैठे है. क्यूंकि पता है, मोदी घास नही डालेगा और भारतविरोधी
बुद्धिजीविता को कांग्रेस की तरह प्रश्रय और पैसा देने की वजाए मटियामेट
कर देगा. इसलिए मोदीराज की आशंका से वामपंथी गिरोह में भगदड़ मची हुई है.
मोदी के लगातार बढ़ते प्रभाव से मची खलबली बौखलाहट में बदल गई है. ऐसा
लगता है मानो मोदी नाम का चर्मरोग हो गया है, जिसे खाते, पीते, सोते
खुजलाने को बेचारे विवश है. मोदी के खिलाफ अब इनके तरकश में कोई तीर ही
नहीं बचा है. विडियो, ऑडियो, फेक एनकाउंटर के सब तीर फेल हो गए. सोचा था,
मोदी विरोध के नाम पर कांग्रेसी आकाओं के लुट-खसोट से लोगों का ध्यान
हटाने में सफल होंगे और सेक्युलर-कम्युनल की डिबेट छेड़कर, लोगों को बरगला
कर कांग्रेस की बेफिक्र वापसी में कामयाब हो जाएंगे. अब वह भी फेल होता
दिखाई दे रहा है. जीतना मोदी का विरोध, उतना ही ज्यादा समर्थन की लहर चल
पड़ी है. अब जबकि यह पक्का हो गया कि मोदी को रोकना मुश्किल ही नही,
नामुमकिन है तो एक नया राग छेड़ दिया है विकल्प की, जिसके लिए तीसरे
मोर्चे के साथ साथ आआपा फिट बैठ रहा है. इसलिए इस चुनाव में सारे वामपंथी
हंसुआ-बाली छोड़कर झाड़ू लेकर दौड़ पड़े थे. वामपंथी स्वघोषित विचारकों ने
दर्जनों लेख लिख डाले. यहाँ तक कि चुनाव में मिली सफलता के बाद सबने एक
सुर में प्रशंसा करने में देरी नही दिखाई.
आआपा के समर्थन में वामपंथीयों का उतरना एक खतरनाक संकेत है क्यूंकि चोला
बदलकर छोला खाने की पुरानी आदत रही है इनकी. खाकर चुप रहते तो ठीक था,
खाने के बाद ये रायता भी फैलाते है और खिलाने वाले के खिलाफ ही क्रांति
का बिगुल फूंक देते है. अपनी सड़ी-गली वैचारिक दुनिया को झाड़ूमय बनाकर
सत्ता पर काबिज होने का एक आशा भरी किरण आआपा में इन्हें दिख रही है.
वैसे भी आआपा के ज्यादातर लोग वामपंथी स्वभाव के रहे है. इसलिए आआपा का
विस्तार रेड अलेर्ट जैसा है, जिसको लेकर सचेत होने की जरुरत है.
तीसरी प्रमुख वजह, पढ़े-लिखे लेकिन भ्रमित हो सकने वे लोग शामिल है, जो
खुद नही बदलना चाहते लेकिन आस-पड़ोस और व्यवस्था को बदलते देखना चाहते है.
वे बीबी, बॉस, बेरोजगारी की वजह से परेशान रहते है. स्वभावतः परेशानी की
वजह से हुए मानसिक तनाव से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य ख्याली दुनिया में
सैर करना चाहता है जहाँ मनचाही मुराद चुटकी में पूरा होता हों. ऐसे लोगों
को बड़ी-बड़ी बातें, लम्बे-चौड़े वादें मनभावन लगते है. इन्हें बरगलाना आसान
है.
आआपा के पीछे दिमाग लगाने वालों ने राजनीतिक व्यवस्था की खामियों व जनता
के मूड को अन्ना के सामाजिक आन्दोलन के समय पहचान लिया था. आआपा ने इसका
फायदा उठाया. अन्ना को पीछे छोड़ उन लोगों की दुनिया का ठेकेदारी ले ली,
जिन्हें सरकार और सरकारी व्यवस्था में ही केवल खामियां नज़र आती है, खुद
में नही. इसने एक नया फैशन दिया है-अपनी जिम्मेवारियों से भागों और
दूसरों को केवल गाली दो. लोकपाल का माला जपकर भड़काओ, सहानुभूति बटोरों और
नाटक-नौटंकी दिखाकर वोट लों. लोकपाल न हुआ, मानो कोई खजाना हो गया,
जिसके मिलते ही लोग मालामाल हो जायेंगे और देश में ईमानदारी की गंगा बहने
लगेगी.
आआपा वह काम करने में सफल रही.कुछ समय पहले तक यही काम वामपंथी करते रहे
है. पढ़े लिखे नौजवानों से लेकर अनपढ़ लोगों को क्रांति की घुट्टी पिलाकर
अपना उल्लू सीधा करते रहे है. अब जबकि लोगों को समझ में आ गयी है तो
क्रांति का यह खुनी विचार जड़ से उखड़ना शुरू हो गई है. आआपा के तौर तरीके
बस वही वही है, सिर्फ भारत माता की जय के तड़के लगाकार इसे भारतीयता की
शक्ल लिए वामपंथी दल बनाने की कोशिश की जा रही है.
देश में आज फिर से एक अनिश्चितता का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है.
यह ठीक है कि भाजपा के चाल-चलन सौ फीसदी ठीक नही है, उसके तौर तरीकों में
कुछ बदलाव जरुरी है. लेकिन एक भाजपा ही देश को शसक्त नेतृत्व और सरकार दे
सकती है. एक बड़े सामाजिक जन आन्दोलन की बलि चढ़ने से जन्मी पाप भारत का
भविष्य नही हो सकती. जरुरत है, भ्रष्ट सत्ता व उसकी सहयोगी मीडिया के
कुप्रचार से भ्रमित न हुआ जाए.
हाल के वर्षों में राजनीति और राजनीतिक व्यवस्था की नीतियों में व्याप्त
बुराईयों को पहली बार किसी ने आईना दिखाने की कोशिश की तो वह जयप्रकाश और
उनकी लोक सत्ता पार्टी थी, जिन्होंने सिविल सर्विस छोड़कर राजनीति को चुना
और 2009 में आन्ध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़कर विधायक बने. लेकिन कभी
उनकी चर्चा देश की मीडिया और छद्म बुद्धिजीवियों ने जोर-शोर से नही किया.
नही किया क्यूंकि लोकसत्ता झूठे प्रपंच करके, तमाशे करके, व्यवस्था को
गलियां देकर, संसद और संविधान से सर्वोच्च किसी कानून की मांग करके
राजनीति में नही आई थी. उसे कांग्रेसी-वामपंथियों का समर्थन नही मिला था.
दबी जुबान में कांग्रेसी भी इस बात को स्वीकारते है कि संभावित हार के
चलते उन्होंने भी आआपा को वोट दिया. चुनाव बाद जिस तरीके से कांग्रेस ने
बिना शर्त आआपा को समर्थन की बात कही है, वह यह जताता है कि भविष्य में
वामपंथी और कांग्रेस की डर्टी चाल अपने वजूद को कायम रखने के लिए है,
जिसको समझने की जरुरत है. सावधान रहना है ताकि मोदिविरोधी मुखौटे की चाल
में फंसकर देश बर्बादी की राह पर न चल निकले.
मेरे विचार में यहाँ प्रस्तुत लेख मोदी विरोधी षड्यंत्र ही है जो राष्ट्र व नागरिकों के हित में दो राष्ट्रवादी राजनितिक दलों में परस्पर सहयोग एवं संगठन को बढ़ावा न दे पाठकों के मन में उनके प्रति व्यर्थ का वाद-विवाद खड़ा करता है|
मुझे दिल्ली में १८५७ का इतिहास पुनरावृत होते दिखाई देता है। सांस्कृतिक रूप से भारतीय मूल प्रश्न अथवा विषय को अपनी अपनी व्यक्तिगत स्थिति के अनुसार देखते समझते हैं और इस कारण उनकी प्रतिक्रिया में संगठन का सदैव अभाव रहा है| हिंदुओं और मुसलमानो के मिल कर धूर्त फिरंगियों को परास्त करने हेतु १८५७ में बहादुर शाह ज़फर द्वारा की गई उद्घोषणा इन्ही कारणो से विफल रही थी| आज यदि मूल प्रश्न भ्रष्टाचार मिटा सुशासन को स्थापित करना है तो राष्ट्रीय दलों में सहयोग और संगठन क्यों नहीं है? बहादुर शाह स्वरूप नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में फिरंगी स्वरूप १८८५-जन्मी कांग्रेस को उखाड़ फैंकने की स्थिति में आई बीजेपी की आज नाना साहिब सवरूप एएपी अवज्ञा नहीं कर सकती| अत: राष्ट्रवादी मनोवृति रखने वाले लोगों को बीजेपी और एएपी में समझौता करने का आग्रह करना चाहिए| इस ओर प्रयास करते स्वयं नरेंद्र मोदी को दल से भ्रष्ट तत्वों को दूर कर एएपी के सहयोग के लिए अरविन्द केजरीवाल से निवेदन करना होगा| अन्यथा दो बिल्लियों के बीच सेंध लगाए बंदर तो बैठा ही है!
अगर मैं यह कहूँ कि आपका यह पूरा आलेख एक बकवास के सिवा कुछ नहीं है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. आपलोग रट लगाए जा रहे हैं कि अन्ना को धोखा दिया.आपलोग अपनी अपनी पार्टियों के गरेबान में झाँक कर देखिये कि किसने किसको धोखा दिया. आपलोग अन्ना के रामलीला मैदान के अनशन के बाद संसद द्वारा अनुमोदित मनमोहन सिंह का पत्र क्यों भूल जाते हैं? ऐसे भी आंदोलन से क्या होना था? क्या संसद में आंदोलन का बार बार मजाक नहीं उड़ाया गया था? क्या नेताओं द्वारा चुनौती नहीं दी गयी थी कि संसद में आओ और अपना क़ानून बनाओ. आप अभी बच्चे हैं परिपक्वता लाइए तब बड़ी बड़ी बातें कीजिये.अगर अरविन्द केजरीवाल की पुस्तक स्वराज ,जो आम आदमी पार्टी का आधार है, कम्युनिज्म सिखाती है तो गांधी का हिन्द स्वराज भी कम्युनिज्म सिखाता होगा.आप यही कहना चाहते हैं न.तब पंडित दीन दयाल उपाध्याय की पुस्तकें एकात्ममानववाद और भारतीय अर्थ नीति:विकास की एक दिशा को क्या कहियेगा? मैं तो आज भी कहता हूँ कि अगर कांग्रेस गांधी के कहे अनुसार चलती या पहले भारतीय जनसंघ और बाद में बीजेपी ने पंडित जी का अनुशरण किया होता ,तो न भारत में इतनी असामनता होती, न इतना भ्रष्टाचार होता और न अन्ना या आम आदमी पार्टी का उद्भव होता.
रही बात कांग्रेस के द्वारा आम आदमी पार्टी को जन्म और सहयोग देने की बात तो सच पूछिए तो कांग्रेस का यह कहना की आप बीजेपी का बी टीम है ,ज्यादा तर्क पूर्ण लगता है. आपने यह विश्लेषण किया है कि आम आदमी पार्टी ने किसका वोट काटा है? केवल अल्पमत वोट बैंक को छोड़कर कांग्रेस का सब वोट बैंक धरासाई हो गया है,जिसके चलते बीजेपी अपने प्रतिशत वोट में इजाफा कर सका और नौ ज्यादा सीट पाने में समर्थ रहा. मैंने यह भी लिखा था कि अगर आमआदमीपार्टी दिल्ली में द्वितीय स्थान पर आता है ,तो भारत में राष्ट्रीय स्तर पर दो पार्टियां बीजेपी और आप होंगी.
यह भी मानकर चलिए कि अगर आज फिर से दिल्ली में चुनाव हो जाए तो आम आदमी पार्टी आसानी से बहुमात प्राप्त कर लेगी,क्योंकि बीजेपी के प्रचार तंत्र ने हौआ खड़ा कर दिया था कि आप को वोट देने से आपका वोट ब्यर्थ हो जाएगा और अब लोग उसके लिए पश्चाताप कर रहे हैं.
चाइना गेट( नब्बे के दसक के अंत में आई हिंदी फ़िल्म ) में जगीरा ने कहा था कि ताकत और हिम्मत तो जुटा लोगे,पर कमीनापन कहाँ से लाओगे? भारतीय राजनीति का मूल यही कमीना पन है . आम आदमी पार्टी के लोग इससे निपटने का कोई कारगर तरीका अभी तक नहीं ढूंढ पाये हैं.जिस दिन इस कमीनेपन की कीचड़ में लिपटे बिना वे इसका जबाब ढूंढ लेंगे और अपनी ताकत हिम्मत और ईमानदारी बरकरार रखेंगे उस दिन वे अजेय हो जायेंगे.,
चाइना गेट( नब्बे के दसक के अंत में आई हिंदी फ़िल्म ) में जगीरा ने कहा था कि ताकत और हिम्मत तो जुटा लोगे,पर कमीनापन कहाँ से लाओगे? भारतीय राजनीति का मूल यही कमीना पन है . आम आदमी पार्टी के लोग इससे निपटने का कोई कारगर तरीका अभी तक नहीं ढूंढ पाये हैं.जिस दिन इस कमीनेपन की कीचड़ में लिपटे बिना वे इसका जबाब ढूंढ लेंगे और अपनी ताकत हिम्मत और ईमानदारी बरकरार रखेंगे उस दिन वे अजेय हो जायेंगे.,
अगर मैं यह कहूँ कि आपका यह पूरा आलेख एक बकवास के सिवा कुछ नहीं है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. आपलोग रट लगाए जा रहे हैं कि अन्ना को धोखा दिया.आपलोग अपनी अपनी पार्टियों के गरेबान में झाँक कर देखिये कि किसने किसको धोखा दिया. आपलोग अन्ना के रामलीला मैदान के अनशन के बाद संसद द्वारा अनुमोदित मनमोहन सिंह का पत्र क्यों भूल जाते हैं? ऐसे भी आंदोलन से क्या होना था? क्या संसद में आंदोलन का बार बार मजाक नहीं उड़ाया गया था? क्या नेताओं द्वारा चुनौती नहीं दी गयी थी कि संसद में आओ और अपना क़ानून बनाओ. आप अभी बच्चे हैं परिपक्वता लाइए तब बड़ी बड़ी बातें कीजिये.अगर अरविन्द केजरीवाल की पुस्तक स्वराज ,जो आम आदमी पार्टी का आधार है, कम्युनिज्म सिखाती है तो गांधी का हिन्द स्वराज भी कम्युनिज्म सिखाता होगा.आप यही कहना चाहते हैं न.तब पंडित दीन दयाल उपाध्याय की पुस्तकें एकात्ममानववाद और भारतीय अर्थ नीति:विकास की एक दिशा को क्या कहियेगा? मैं तो आज भी कहता हूँ कि अगर कांग्रेस गांधी के कहे अनुसार चलती या पहले भारतीय जनसंघ और बाद में बीजेपी ने पंडित जी का अनुशरण किया होता ,तो न भारत में इतनी असामनता होती, न इतना भ्रष्टाचार होता और न अन्ना या आम आदमी पार्टी का उद्भव होता.
रही बात कांग्रेस के द्वारा आम आदमी पार्टी को जन्म और सहयोग देने की बात तो सच पूछिए तो कांग्रेस का यह कहना की आप बीजेपी का बी टीम है ,ज्यादा तर्क पूर्ण लगता है. आपने यह विश्लेषण किया है कि आम आदमी पार्टी ने किसका वोट काटा है? केवल अल्पमत वोट बैंक को छोड़कर कांग्रेस का सब वोट बैंक धरासाई हो गया है,जिसके चलते बीजेपी अपने प्रतिशत वोट में इजाफा कर सका और नौ ज्यादा सीट पाने में समर्थ रहा. मैंने यह भी लिखा था कि अगर आमआदमीपार्टी दिल्ली में द्वितीय स्थान पर आता है ,तो भारत में राष्ट्रीय स्तर पर दो पार्टियां बीजेपी और आप होंगी.
यह भी मानकर चलिए कि अगर आज फिर से दिल्ली में चुनाव हो जाए तो आम आदमी पार्टी आसानी से बहुमात प्राप्त कर लेगी,क्योंकि बीजेपी के प्रचार तंत्र ने हौआ खड़ा कर दिया था कि आप को वोट देने से आपका वोट ब्यर्थ हो जाएगा और अब लोग उसके लिए पश्चाताप कर रहे हैं.
आप से कुछ हो सकने की अपेक्षा मुझे नहीं है।
(१)उसके स्वयंसेवक भी राजनीति के अनुभवी नहीं है?
(२)न उपलब्धियों का कोई इतिहास है।
(३) न दिल्ली के बाहर कोई स्वयंसेवकों का जाल?
(४) न उनका तात्विक ढाँचा किसी को ज्ञात?
(५) अवसरवादी इनके रथ पर चढ सकते हैं, और भारत का भविष्य बिगाड सकते हैं।
(६) क्यों भारत का सूरज उगने में देर करवा रहे हो?
पछताओगे।
मराठी की कहावत है, “हात च सोडून पळत्या च्या पाठी ”
अर्थ:===>हाथ की वस्तु छोडकर (पलायन करती) दौडती हुयी के पीछे भागने से क्या मिलेगा?
न उपलब्धियों का कोई इतिहास है, न कांग्रेसी दाँवपेंच का अनुभव।
मोदी जी, अपनी चाणक्य जैसी चाणाक्षता के कारण टिक ही नहीं पाए, रैलियों का महासागर भी एकत्रित कर पाए थे। आप क्या कर पायेगी?
यहाँ चाणक्य और राम का मिश्रण चाहिए जो, मोदी में है।
डाक्टर साहब आप अमेरिका में बैठे हुए उस क्रांति को नहीं देख पा रहे हैं,जो आज भारत में पनप रहा है.’आप’ की अनुभव हीनता उसका सबसे बड़ा हथियार है. बीजेपी और कांग्रेस के मंजे हुए खिलाड़ियों को लोग एम्.सी.डी और दिल्ली सरकार में प्रतिदिन दिन केवल देख ही नहीं रहे हैं ,बल्कि भुगत रहे हैं. मैंने झुग्गी में रहने वालों की आँखों में चमक देखी है.उनके मन में आशा की एक किरण फूटती दिख रही है. ‘आप’ के जो स्वयं सेवक दिल्ली में दिख रहे थे उसमे सैकड़ों की तादाद में पड़ोसी राज्यों और भारत के अन्य भागों से आये हुए थे.ऐसे अमेरिका ,इंग्लैण्ड और मिडल ईस्ट से आने वालों की संख्या भी काफी थी. भारत में उपलब्धियों के इतिहास के साथ भ्रष्टाचार भी जुड़ा हुआ है. आम आदमी पार्टी की यह भी एक विशेषता बन गयी है. एक बात पर मैं आपसे सहमत हूँ कि अवसर वादी इस रथ पर चढ़ सकते हैं और भारत का भविष्य बिगाड़ सकते हैं.इसके लिए पार्टी को सावधानी बरतनी होगी. डाक्टर साहब नमो के बढ़ते हुए कदम को चुनौती देने वाला पैदा हो चूका है,पर उसके साथ वह खेला खाया हुआ दल नहीं है. यही उसकी ताकत और कमजोरी दोनों है.
बहुत बढ़िया और विवेचन . बिना किसी पूर्वाग्रह का एकदम सटीक
===> “आप” के पाप का भागी बनना मैं, नहीं चाहता।प्रश्न (२)बीजेपी और कांग्रेस के मंजे हुए खिलाड़ियों को लोग एम्.सी.डी और दिल्ली सरकार में प्रतिदिन दिन केवल देख ही नहीं रहे हैं ,बल्कि भुगत रहे हैं.
उत्तर: स्थानिक नेतृत्व का कुप्रभाव चुनावों में दिख ही गया। उसी के बलपर भारत का घाटा करने पे तुल जाना, किस देश भक्तिका प्रमाण है? कम से कम नरेंद्र मोदी ने अपना कर्तृत्व, प्रामाणिकता और चतुराई, भयंकर विरोधों के बीच, प्रदर्शित की है।
==>प्रश्न (३) मैंने झुग्गी में रहने वालों की आँखों में चमक देखी है.उनके मन में आशा की एक किरण फूटती दिख रही है.
उत्तर: “आशा की किरण” की, गुजरात में जो साक्षात घटा है” उससे तुलना “? किस तर्क शास्त्र में बैठती है?
==>विधान (४) ‘आप’ के जो स्वयं सेवक दिल्ली में दिख रहे थे उसमे सैकड़ों की तादाद में पड़ोसी राज्यों और भारत के अन्य भागों से आये हुए थे.ऐसे अमेरिका ,इंग्लैण्ड और मिडल ईस्ट से आने वालों की संख्या भी काफी थी.
उत्तर: इससे क्या प्रमाणित किया जा सकता है? यदि मोदी के अधिक हुए तो?
==>विधान (५) भारत में उपलब्धियों के इतिहास के साथ भ्रष्टाचार भी जुड़ा हुआ है. आम आदमी पार्टी की यह भी एक विशेषता बन गयी है.
उत्तर: ऐसा मोदी के, गुजरात में नहीं है।
==>विधान (६) एक बात पर मैं आपसे सहमत हूँ कि अवसर वादी इस रथ पर चढ़ सकते हैं और भारत का भविष्य बिगाड़ सकते हैं.इसके लिए पार्टी को सावधानी बरतनी होगी.
उत्तर: अननुभवी पार्टी जल्दी में, कैसे सावधानी बरतेगी? एक केजरीवाल कितने भाग सकते हैं।
==>विधान (७) डाक्टर साहब नमो के बढ़ते हुए कदम को चुनौती देने वाला पैदा हो चूका है,पर उसके साथ वह खेला खाया हुआ दल नहीं है.
उत्तर: ऐसी चुनौती का केवल एक ही परिणाम हो सकता है, कि भारत को और पीछे धकेल दे सकते हैं। जो सूरज उगने जा रहा है, उसको पीछे ठेल दोगे। आप मोदी का नहीं भारत का विचार करें। भारत केंद्र है।
==>विधान (८) यही उसकी ताकत और कमजोरी दोनों है.
उत्तर(८): उसकी ताकत सीमित है, वह भारत के भविष्य सूर्य को उगने में रोडा अटकाने की, इतना ही मैं इसका अर्थ लगाता हूँ।
अधिक से अधिक यही कर पाएंगे। आज ऐसा ही अनुमान करता हूँ।
विलम्ब के लिए क्षमस्व।
मधु सूदन
कांग्रेस को मोदी फोबिआ पहले ही था अब कुछ और ज्यादा हो गया है.आप के द्वितीय स्थान पर आने से कांग्रेस का संकट और बढ़ गया है.लेकिन आप से भी ज्यादा उमीद करना गलत ही होगा.अनुभव शुन्य ठोस घोषणा पत्र के बिना वह लोकसभा में क्या करेगी.कांग्रेस व भा ज पा से तंग आई जनता विकल्प में देखरही है पर यह सब केवल एक प्रकार का मायाजाल ही है.आपो के समक्ष प्रशन यह है कि वह कांग्रेस व भा ज पा कि बी टीम के लांछन से कैसे बचे.अकेले उसके वश का कुछ करना है नहीं. अतएव वह इनका नुक्सान जरूरकरेगी. तीसरे मोर्चे वाले भी उसकी और हाथ बढ़ा रहे हैं,पर यदि वह उनके साथ हो ली तो आप अपने आप ही काल के मुहं में चली जायेगी.तीसरा मोर्चा वह शव है जिसे हर चुनाव से पहले कुछ सत्ता के भूखे लोग ताबूत से बाहर से भूत बना कर बाहर निकलते है और फिर चुनाव बाद वापिस दफना देते हैं.
अभिषेकजी
आपका लेख पढ़ा अच्छा तो है पर अभी परिपक्वता कि जरूरत है. आपने आप पार्टी की बखिया उधेड़ी जो कि समय से पहिले दिया गया बयान है.भारतीय जनता पार्टी की सफलता को महिमा मंडित करने का प्रयास किया है आपने, जो किसी हद तक ठीक भी है. कांग्रेस की जनविरोधी नीतिया ही उसके पराजय का मुख्य का कारण हुई.मोदीजी का कम अभी गुजरात के सीमित स्पेस में दिखायी दिया है. जब की विस्तृत फलक पर उसे प्रकट होना अभी बाकी है, जिसका अभी अनुमान ही लगाया जा रहा है.जहाँ तक आप पार्टी के उदय की बात है उसके पीछे वामपंथियो का हाथ है यह समझ में नहीं आया. दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं प्राप्त कर सकी तो क्या इसके लिए वामपंथी जिम्मेवार है? माना आप भारतीय जनता पार्टी के प्रति विशेष झुकाव रखते है तो क्या इस तरह की अनर्गल बातों के लिए आपको छूट दी जा सकती है. आप पार्टी की न कोई विचारधारा है और न कोई दूरगामी उद्देश्य.क्रन्तिकारी तो कतई नहीं. इन्हे इतनी जल्दबाजी थी कि इन्होने अन्ना का साथ तक chhod दिया यही इनके अवसरवादी होने का प्रमाण भी है.आप तो अभी बच्चे है और अतिरिक्त उत्साह में यह लेख लिख मारा. आपको छमा किया जा सकता है. पर ek बात तो जरूर कहूंगा वामपंथियों को गाली कब तक देते रहेंगे ये बुर्जुआवादी सोच रखने वाले लोग. vampanth ek विचारधारा है.और विचारधारा kabhi marati नहीं aisa hota तो भारतीय जनता पार्टी के nayak modi ji को भी ek mrit विचारधारा का sahara नहीं lena padata .aisa samajhe कि वह भी विकाश की बात करते है और उनका विकाश किसका विकाश है? यह सभी जानते है.भारत्या जनता पार्टी का चरित्र कांग्रेस के चरित्र से ज्यादा भिन्न नहीं है, इसका प्रमाण पिछली एन डी ए की सरकार की आर्थिक नीतिया. लोक लुभावन वादे तो वह भी कराती रही है और कर भी रही है.धार्मिक भावनाओं को अपना हथियार बनाना कोई इनसे सीखे.इसीलिए इतिहास पढने की जुर्रत भी किया करिये आज इकिश्वि सदी में इनका क्या मतलब? जातिवादी राजनीति ये करते है छेत्रवादी राजनीति ये करते है जिसका प्रमाण महाराष्ट्र में उत्तरभारतीय पर होने वाले प्रहार पर इनका चुप रह जाना तथा मंडलवादियों के सुर में सुर मिला कर आरक्षण का समर्थन करना.ये सब क्या इनके दोहरे चरित्र का प्रमाण नहीं है. अभी बहुत समय है आकलन करने का और बहुत सारा पानी गंगा से बहना भी है इसीलिए द्रष्टा भाव में रहिये.
ओशो VIPIN