सेक्स वर्कर के मानस गणिका की चौपाइयां सुनने पर आपत्‍ति क्‍यों

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जिस वक्‍त सनातन धर्म, राम मंदिर तथा हिंदुत्‍व के साथ-साथ जनेऊ और गोत्र सहित अनेक अन्‍य बे-सिरपैर के ‘झूठ से भरे’ समाचारों के समुद्र में देश की राजनीति गोते लगा रही हो तब आपको किसी संत द्वारा अत्‍यंत निकृष्‍ट व अस्‍पृश्‍य समझी जाने वाली ”वेश्‍याओं” के लिए सामान्‍यजन की भांति रामकथा सुनाने का पता लगे तो निश्‍चित ही ये राम के आदर्शों का प्रत्‍यक्ष रूप में ज़मीन पर उतरना ही माना जाएगा। 

जब से राममंदिर निर्माण का मुद्दा गहराया है तब से अयोध्‍या लाइमलाइट में है किंतु पिछले दो दिनों से मोरारी बापू द्वारा कमाठीपुरा मुंबई की वेश्‍याओं को गोस्‍वामी तुलसीदास रचित मानस गणिका सहित रामचरितमानस और धर्म का उपदेश देने की चर्चा हो रही है।

बापू द्वारा वेश्‍याओं को रामकथा सुनाना यहां के कथित धर्माचार्यों से हजम नहीं हुआ। उन्‍होंने इसका विरोध करते हुए अयोध्‍या के वातावरण को मलिन किए जाने का आरोप लगाया है। यह बिल्‍कुल उसी कहावत की तरह है कि मुंह में राम बगल में छुरी…।

शर्म आती है हिंदू…मंदिर…राम के नाम पर अपनी दुकानें चलाने वाले धर्म के उन ठेकेदारों पर जो स्‍वयं तमाम अनैतिक कृत्‍य करते हुए समाज के ऐसे वर्ग को रामकथा के अयोग्‍य बता रहे हैं, जो हमेशा से न सिर्फ समाज का हिस्‍सा रहा है बल्‍कि तथाकथित सभ्‍य समाज की ही देन है। उन्‍हीं लोगों की देन है जो दिन में नैतिकता का ढिंढोरा पीटते हैं और धर्म की रक्षा का आलाप भरते हैं लेकिन रात में इनके पास जाकर धर्म और कर्म की धज्‍जियां उड़ाते हैं।

ये धर्म का कौन सा रूप है जो स्‍वयं अपने आराध्‍य राम के आदर्शों को भी तार-तार करने पर आमादा हैं। डंडिया मंदिर के महंत भारत व्यास, ज्योतिष शोध संस्थान के प्रमुख प्रवीण शर्मा, धर्म सेना प्रमुख और बाबरी मस्जिद मामले के आरोपी संतोष दुबे जैसे लोग इसे अयोध्‍या की पवित्रता के लिए लांक्षन बताते हुए कह रहे हैं कि बापू ने अयोध्‍या को मलिन किया है जबकि ऐसा कहकर उन्‍होंने स्‍वयं की धर्मनिष्‍ठा को कठघरे में खड़ा कर लिया है क्‍योंकि ये अजामिल, गणिका- उद्धार, निश्‍छल भक्‍ति-मूर्ति शबरी की जूठन खाने और पति के अविश्‍वास की मारी अहिल्‍या का उद्धार करने वाले राम की कथा सुनने से वेश्‍याओं को दूर रखना चाहते हैं।

सच तो यह है कि इनकी सोच धर्म के बजाय उस आडंबर से ग्रस्‍त है जिसके कारण सनातन धर्म विवादित बना दिया जाता है और जिसके चलते इनकी अपनी रोजीरोटी सहित ऐशो-आराम की जुगाड़ होती रही है। ये लोग हमेशा से वंचितों को पैरों तले रखने का आदी है। इन्‍हें तो फिर उन भगवान दत्तात्रेय से भी आपत्‍ति होनी चाहिए जिनके 24 गुरुओं में एक गणिका भी थी…। तो अब ये भी जान लीजिए कि बड़ी और उदार सोच रखने वाले वैसी करनी भी करते हैं।
संकीर्ण मानसिकता वाले लोग, चाहे वह किसी भी धर्म से ताल्‍लुक क्‍यों न रखते हों…वो न धर्म को समझते हैं और न देश व समाज के प्रति अपने कर्तव्‍यों को।

शायर साहिर लुधियानवी की ये चार पंक्‍तियां उन्‍हें आइना दिखाने के लिए काफी हैं…

”ज़रा इस मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज़ है हिंद पे वो कहाँ हैं
कहाँ है, कहाँ है, कहाँ है …” 

मोरारी बापू ने रामचरितमानस की तरह ही इन पक्‍तियों को भी मर्मस्पर्शी राग एवं लय में पेश किया और इसके विमर्श की ओर ध्यान आकृष्ट कराया।

क्‍या वेश्‍याओं के कथाश्रवण पर आपत्‍ति करने वाले कथित धर्माधिकारी देख नहीं पा रहे कि मंच पर महंत नृत्यगोपालदास के परमहंस वृत्ति वाले युवा शिष्य से लेकर पंडाल तक के श्रद्धालु थिरक रहे थे। गणिकाएं भी अपनी दीर्घा में आसन से उठकर करबद्ध सीता- राम के माधुर्य की तान छेड़ रही थीं। वेश्‍याएं स्वीकार्यता के यज्ञ में कृतज्ञता की आहुति देती प्रतीत हो रही थीं। जिनके जीवन में दिन देखने को नहीं मिलता, जिन्हें सिर्फ केवल रात ही देखने को मिलती है, उनके लिए मोक्षदायिनी अयोध्‍या में रामकथा सुनना किसी सुनहरे स्‍वप्‍न से कम नहीं रहा होगा। भगवान राम पतित पावन तो हैं ही, चरित्र पावन भी हैं… तो देश के कोने-कोने से आईं सेक्स वर्कर मानस गणिका की चौपाइयां क्‍यों ना सुनें।

वेश्‍याओं को रामकथा सुनाने का विरोध करने वाले क्‍या बता पाएंगे कि अपनी मन की कालिख छुपाने के लिए मोरारी बापू पर कीचड़ उछालने का प्रयत्‍न करना कितना उचित है।

आपत्‍ति आखिर है किस पर …अपने ”ना किए गए” पर या उस ”किए गए को उजागर करने पर” जिसके कारण हर युग में समाज कलंकति होता रहा है।  

इन जैसे समाज के विरोधियों को समझना होगा कि भगवान राम आध्यात्मिक हैं, ऐतिहासिक नहीं। वो सर्वव्‍यापी हैं और इसीलिए रामकथा सबके लिए है, उन वेश्‍याओं के लिए भी जिनके घरों में भी मंदिर होते हैं परंतु इनके यहां पूजा करने कोई नहीं आता बल्‍कि ये खुद ही पूजा करती हैं, किसी से करवाती नहीं हैं। राम के लिए सभी अपने हैं, ग्राह्य हैं, उन्‍होंने सबको स्वीकारा है यह कोई नया साहस नहीं है, राम दलित, वंचित, तिरस्कृत पावन के भी उतने ही हैं जितने किसी पंडित के। 

बहरहाल, बापू की यह  घोषणा स्‍वागतयोग्‍य है कि रामकथा के लिए साधु-संतों से राशि इकट्ठा करके वेश्‍याओं के हित में काम करने वाली संस्थाओं को दिया जाएगा क्योंकि बात वचनात्मक नहीं, रचनात्मक होनी चाहिए। इनके शरीर का सौदा तो बहुत किया, अब इनकी सेवा करनी होगी क्योंकि यह हमारे समाज के गमले की तुलसी हैं, इन्हें सींचने की जरूरत है।

मैं तो शायर दुष्‍यंत के शब्‍दों में इतना ही कहूंगी कि  ”सिर्फ हंगामा करना मेरा मकसद नहीं बल्कि मकसद है सूरत बदलनी चाहिए। 
और यदि बात रामकथा की है तो मोरारी बापू का विरोध करने वालों को श्रीराम रक्षास्तोत्रम् की इन दो पक्‍तियों का सार समझना चाहिए, शायद फिर उनके मन का क्‍लेश समाप्‍त हो जाएगा-

”राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे, सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने”

– अलकनंदा सिंह

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