बरसात, नाले-नालियों और मेढ़कों की रिपोर्टिंग 

 व्‍यंग्‍य आत्‍माराम यादव पीव
आकाश में चारों ओर से घने काले मेघ मॅडराते हुये रह-रहकर घमण्डी रिपोर्टरों  की तरह गर्जाना कर कौंध रहे है और साॅय-साॅय करती हवा अपने थपेड़ों से बड़े पेड़ों को धराशायी करते हुये,गरीब कमजोर के घरों की छतों के साथ फुटवाल खेलती नजर आ रही है। एक खोजी-सनसनीखेज रिपोर्टर के नाते मुझे इससे प्रभावित हुये लोगों और नुकसान की कवरेज के साथ कुछ फोटो भी चाहिये, पर हवा के आगे मेरा छाता खोलने पर उलट गया और धोखा देकर मुझे संकट में डालने लगा है। मैं ऐसे में आंंखों देखा हाल दिखाने और पढ़ाने की स्थिति में न पाते हुये अपने पास के ही दृश्यों को अपने कैमरामेन के साथ दिखाकर खुद समीक्षक बनकर प्रक्षेपित करने में जुट गया है और अंधड-पानी के भय से शरणार्थी बताकर कुछेक मित्रों को शामिल कर रिपोर्ट बनाकर उसे क्षेत्रीयता का जामा उसी प्रकार पहनाने में जुट गया जैसे मेरा छाता जरूरत पर उलट गया।
बादल आकाश में आंचलिक समाचारों की उमड़-घुमड़ रहे है, जिन्हें देखकर कोई भी रिपोर्टर इन बादलों में बनती-बिगड़ती आकृतियों की तुलना अपने-अपने संभाग, जिले, तहसील और गाॅवों के नक्शें से करता खुश होता है, तो कुछेक नया तलाशने पर इन आकृतियों में अपने-ईष्ट देव की आकृति देखकर उत्साह से इसे चमत्कार बताकर अपनी अलग पहचान बनाने के लिये सारे गुणगान कर झूमता हुआ दिखेगा और ऐसे ही लोगों के मनों में अपनी बात डालकर उनकी पुष्टि कर प्रसन्नता व्यक्त करेगा और उसकी खबर दिखाने पर छा जाती है और वह रिपोर्ट अपने इस सयानपत में किसी बूढ़े सयाने हो चुके रिपोर्टर के की दुखती रग कि उसे कभी बड़ा सम्मान या उपाधि नहीं मिली, खुद को राष्ट्रीय पुरस्कार का दावेदार समझ खुुुश हो जाता है।
बरसात शुरू हो गयी है, कहीं कहीं बादल फुहारों से स्नान करा रहे है, तो कहीं मूसलादार घनघोर पानी बरस रहा है। जिससे चारों ओर नालों में उफान है जिनमें मेढ़क टर्राकर रिपोर्टरों को बादलों की रायल्टी के हिसाब से कम-ज्यादा पानी बरसाने की बात बता रहे है, पर रिपोर्टर मेंढ़कों की रहस्यमयी बात सुनकर उसे अपनी सनसनीखेज खबर बनाने के चक्कर में अनसुनी कर रहे है। केमरा माईक लोगों के सामने रिपोर्टर मेढ़कों पर चीख रहे है कि देखियें इन टर्राने वाले मेढ़कों ने आम आदमी का जीना कितना दुश्वार कर दिया है जो इनकी टर्राहर को चैबीस घन्टे सुनकर परेशान है। एक ओर ये मेढ़क है तो दूसरी ओर ये बादल है,  इन्द्रदेव का प्रकोप, बरसा थमने का नाम नहीं ले रही है, अब तक हुई भारी बरसात से बाढ़ के आने का खतरा बढ़ गया है, निचली बस्तियों में पानी घुसने की खबरें आने लगी है। सच से कोसों दूर एक से एक विरोधी तथ्यों के खूबसूरत महल बनाकर उन्हें तोड़ मरोड़कर समाचारों में तड़का लगाया जा रहा है। नगर प्रशासन, जिला प्रशासन, राज्य सरकार पर तंज कसे जा रहे है कि बरसात को लेकर इनकी तैयारी अधूरी है, बाढ़ से निपटने के लिये इनके कोई इंतजाम नहीं है। जो रिपोर्टर विधायक, पार्षद ,स्थानीय नेताओं, अधिकारियों के चारों ओर मॅडराते है और उनका गुणगान से नहीं थकते वे खबरों में उन्हें उदीयमान कर रहे है तथा जिनसे पटरी नहीं बैठती उन्हें अन्तर्गल समाचारों मे पटकनी देकर रिपोर्टर खुद को रूस्तमें हिन्द समझकर फूला नहीं समा रहा हैैं।
काले घने बादलों का डेरा आकाश में डटा हुआ है, जब भी आकाश में काले बादलों का झुण्ड निकलता है तब बिजली की चमक में इन्द्रदेव देखते है कि कहाॅ मेघों को बरसाना है, उनकी बिजली की चकाचैध बरसा की एकरूपता लाने के लिये है। जिस प्रकार बिलों में पानी भरने से सांप धरती की सतह पर आकर घास फूस और कच्चे मकानों-में पनाह ले लेते है ठीक वैसे ही इस घनघोर मूसलाधार बारिस और बिजली की चमक-गरज के सामने अधिकांश लाल बुझक्कड़ समाचारों की कवरेज करने अपने घरों में छिपकर सोशल मीडिया के कचरे से अपनी रिपोर्टिंग जिंदा रखते है। मजेदार तथ्य यह भी देखने को मिलता है कि अधिकांश रिपोर्टर नीलकंठ पक्षी की तरह दशहरे के दिन ही दिखाई देते है, जिन्हें आप नकली भी कह सकते है, पर ये नकली असल को मात देकर ऐसी रिपोर्ट दिखाते है मानों आंखों देखा बयान कर रहे है। इनमें से कुछ को सरकारी समाचारों, मौसम विभाग के सहारे व्हाट्सएप-ईमेल से अपना काम चलाकर ये दूसरों की भेजी फोटो और वीडियो को प्राप्त कर पाठकों के सामने ऐसे टर्राते है जैसे वे कार्तिकेय की तरह धरती की परिक्रमा करके लौटे हो, जबकि यह सच सबसे छिपा रहता है कि वास्तव में येे गोबर गणेश की तरह अपनी जगह से टस से मस नहीं हुये होते है।
मेंढ़कों के टर्राने के दर्द को न समझकर इसेे खुशी और प्रसन्नता आभासित करना ओर यह मानना कि उनकी जोर-जोर की टर्राहट परम सुखदायी है, उनके लिये सकून देता है जो मृगमरीचिका में अपनी खबर मुख्यपृष्ठ पर स्थान पाने का स्वप्न संजोते खुश होते है। बरसात में डूबे मोहल्लों व सैकड़ों घरों के धराशाही हो जाने पर पीड़ितों का शिविरों में आश्रय लेने पर कुछेक तो खराब मौसम पर मल्हार गाते विध्वंस का आंखों देखा हाल लिखकर खुद को उत्कृष्ट समाचारों का पितामह मान लेते है। उनका चंचल मन वल्ले-वल्ले उछाल मारता है जैसे किसी सूखे पेड़ में एक फुनगी उग आये तो वह पूरा पेड़ हरा-भरा नहीं होता,  किन्तु इन रिपोर्टर के सूखे मन में इनके बड़बोलेपन से पैदा हुआ कृतिम समाचार भूल से सनसनीखेज बन जाये तो ये महाशय पहले उजागर करने का दावा के साथ भारतरत्न की उपाधि के मन्सूबे बाॅधने लगते है।
40-45 साल पहले लगातार पन्द्रह-बीस दिन, कभी न थमने वाली बरसात होती थी तब के लोग बोरे की बरसाती के ऊपर सागौन के पत्तों की बरसाती ओढ़कर घर से निकला करते थे, जिसमें एक बूंद भी पानी शरीर के अन्दर नहीं पहुॅचता था। तब कितनी भी तेज मूसलाधार घनघोर बादलफोड़ बरसात हो जाती पर शहर के सभी नाले मुश्किल से आधा ही भर पाते थे, किन्तु इनमें उफान आने की बात किसी के गले नहीं उतरती थी। हाॅ यह सच है कि तब कुछ गलियों में नालियाॅ उफान पर आ जाती थी तब गली-मोहल्ले के बच्चे मस्ती कर इन नालियों में अपनी कागज की नाव चलाते थे। आज हालत बदले है, शहर बदला है, शहर के लोग नालों पर बस गये है और नाले नालियों में तब्दील हो गये। मोहल्लें की नालियों पर लोगों ने कब्जा कर अपने घरों की सीढ़िया बना ली, रही सही कसर घर से निकलने वाले रोजाना के कचरे में अधिंकांश कूड़ा कचरा इन नालियों में बहा दिया जाता है जो जगह जगह डेरा डाले निकासी के पानी का रास्ता रोककर सड़कों-गलियों और घरों में आ जाये तो बरसात को कौसना ठीक नहीं पहले मूसलाधार बरसात में बिना झंझट नालों से पानी सरपट निकल जाता था, आज लगातार दो घन्टे की बरसात का पानी नहीं निकल पा रहा है। अब पहले जैसी मूसलाधार बरसात नहीं, नालों में पानी की रफ्तार नहीं, जब हमने प्रतिभाशाली नालों का भूगोल नालियाॅ में बदल दिया, तब नालियों को नाला बताकर बेचारी बोझकी मारी नालियों के दम तोडने पर इन कमजोर नालियों को बदनाम क्यों करें ?  
रिपोर्टर बरसात में कभी भी पानी के आगे नहीं पीछे खड़ा होता है अगर आगेे खड़ा हो तो पानी का सीना दिखेगा और पानी का सीना देखने की उसकी सामर्थ नहीं है। नाले के तेज बहावदार पानी के पीछे होने से वह खुद को सुरक्षित मानता है, नाले के पीछे होने का मतलब ही है कि वह बहते पानी की पीठ देख रहा है, मजेदार बात यह है कि पीठ की जीभ नहीं होती है जबकि किसी भी रिपोर्टर या संवाददाता से संवाद के लिये जीभ न हो तो बिना संवाद कैसे और क्या समाचार लिखा जाये यह कौन और किस प्रकार तय होगा,यह यक्ष प्रश्न है। पीठपीछे रिपोर्टर मुॅह भर-भरकर गाली ही देगा, सो वह देता है। आज के वीर बहादुर रिपोर्ट समाचारों की पीठ से बात करते है जबकि वे जानते है कि पीठ से बात नहीं की जा सकती, पर ये कमाल के होते है और पीठ की भी जीभ निकलना बताकर अपनी रिपोर्ट तैयार कर पाठकों के मस्तिष्क में ऐसे उड़ेलते है जैसे पाठकगण इनके समाचार पढ़ने-देखने के लिये सदियों से भूखे, बेघर, बेपैर, वेसर, और नंगे बैठे हुये है। थोड़े से पानी से जिस कदर नाला फूल कर लबालब हो जाता है, उसी प्रकार ये रिपोर्टर फूला न समाते हुये सोसल मीडिया के हर ग्रुप में धरती पर छाने वाली हरियाली की तरह छा जाते है। लाईक्स, कमेंटस एवं उनके मैसेन्जर को पढ़ने वालों की सॅख्या देखकर इनकी बुद्धि के पंख आकाश में उड़ने लगते है जिसे देख लगता है कि इन बेचारों के पेट में दिल और मस्तिष्क घुटनों में आ बसा है।                                                                                                                                                                                   आत्माराम यादव पीव

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