पंडित आनन्द अवस्थी
दीपावली भारतवर्ष में ही नहीं कई देषों में अपना विशेष महत्व रखती है। कहा जाता है कि त्योहारों के माध्यम से सभी धर्मों की रक्षा भी होती है। सामाजिक सौहार्द्र, सामाजिक संरचना निर्माण कार्यों में यह त्योहार अपना विषिष्ट स्थान रखते हैं। धार्मिक परंपराओं में तमाम वैज्ञानिक कारण भी शामिल हैं। दीपावली मुख्यत: अधिदैविक, आध्यात्मिक, अधिभौतिक, तीनों रूपों का समागम करने वाला प्रमुख त्योहार है।
कार्तिक मास में दीपदान का अतिमहत्व शास्त्रों में स्वीकार किया गया है। पंचमहोत्सव, अर्थात धनतेरस, रूपचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, तथा यम द्वितीया को दीपदान करने से यज्ञों और तमाम तीर्थ स्थलों का पुण्य प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इन पांचों पर्वों की पूजा से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और स्थिर रूप से विराजती हैं इसीलिए इस पंच पर्व को कौमुदी महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है।
धनतेरस:- यह पर्व 3 नवम्बर बुधवार, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, वैधृति योग, तैतिलकरण के अंर्तगत है। शास्त्रों में कहा गया है कि यह पर्व दीपावली की प्रथम सूचना का संदेष देता है इसीलिए घर में लक्ष्मी जी का प्रवास माना जाता है इसीदिन धनवंतरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे। इसी वजह से धनतेरस को धनवंतरि जयंती भी कहते हैं।
पूरे वर्ष में यम का पूजन भी मात्र इसी दिन किया जाता है कहा गया है कि जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है तो यमराज से आशीर्वाद के रूप में अकाल मृत्यु से रक्षा का प्रसाद भी मिलता है।
सभी घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारंभ हो जाती है अत: इसी दिन से घरों की सफाई पुताई आदि भी की जाती है। रंगोली बनाने से लेकर चौक संवारने तक का कार्य तन्मयता के साथ किया जाता है और यह भी कहा जाता है कि इस दिन पुराने बर्तनों को बदल कर नये बर्तन खरीदना शुभ प्रद माना जाता है। इसी दिन चांदी के बर्तन खरीदने, चांदी का सिक्का आदि खरीदने से तो अधिकाधिक पुण्य मिलता है।
पूजन समय:- प्रदोष द्वादषी का पूजन प्रात: 4 बजकर 55 मिनट से 7 बजकर 12 मिनट के मध्य तुला लग्न में किया जा सकता है।
धनतेरस की पूजा सायंकाल 5 बजकर 57 मिनट से रात्रि में 7 बजकर 54 मिनट के मध्य वृष लग्न में की जा सकती है यदि किसी कारणवश वृष लग्न में पूजा संभव न हो तो रात्रि में 10 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 25 मिनट के मध्य कर्क लग्न में की जा सकती है।
नरक चतुर्दशी:- कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी का पर्व नरक चतुदर्षी का पर्व माना गया है। मुख्यत: इस पर्व का संबंध गंदगी से है इसी दिन नरक से मुक्ति पाने के लिए सूर्योदय से ही तेल डालकर अपामार्ग (चिचड़ी) का पौधा जल में डालकर स्नान करना चाहिए।
वैसे तो इस पर्व का संबंध स्वच्छता से है इसीलिए इस त्योहार को घर का कूड़ा साफ करने वाला त्योहार भी कहते हैं इसदिन शारीरिक स्वच्छता का भी विशेष महत्व है कहा जाता है कि सूर्योदय से पूर्व उठकर शरीर पर तेल उबटन आदि लगा कर स्नान करना चाहिए जो लोग सूर्योदय से पूर्व स्नान नहीं करते उन्हें वर्ष भर शुभ कार्यों में विनाष झेलना पडता है व दरिद्रता और संकट पूरे वर्ष उनका पीछा नहीं छोडते।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (धनतेरस) के दिन स्नान के बाद तीन अंजुल जल भरकर यमराज के निमित्त तर्पण करना चाहिए। जिनके पिता जीवित हैं उन्हें भी यह तर्पण करना चाहिए कि यमराज प्रसन्न रहें तथा उनके परिवार में न तो किसी को नरक में जाना पड़े और न ही किसी को मृत्यु का भय रहे।
इसदिन सायंकाल दीपक जलाते हैं इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं मुख्यत: दीपक जलाने का सिलसिला त्रयोदशी से ही प्रारंभ हो जाता है त्रयोदषी के दिन यमराज के लिए भी एक दीपक जलाते हैं अमावस्या को बड़ी दीपावली का पूजन होता है।
दीपक जलाने का मुख्य कारक:- त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या इन तीनों दिन में दीपक जलाने की मुख्य धारणा यह बतायी जाती है कि इन दिनों भगवान बामन ने राजा बलि की पृथ्वी को नापा था। भगावान बामन ने तीन पगों में पृथ्वी, पाताल, व बलि का शरीर नापा था।
छोटी दीपावली को ग्यारह, इक्कीस, इकतीस दीपक जलाने का प्रावधान है। इसमें पांच अथवा सात दीपक घी के जलाये जाते हैं शेष दीपक तेल के होते हैं।
त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या को यम के लिए दीपक जलाकर लक्ष्मी पूजन सहित दीपावली मनाते हैं। इसके पीछे धारणा यह है कि यमराज उन्हें कष्टित न करें व लक्ष्मी जी स्थिर भाव से विराजती रहें।