पर्यावरण की सुरक्षा – हमारा नैतिक कर्त्तव्य

पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश के लगभग सभी राज्यों की आधारभूत संरचना जिनमें विषेष रूप से पूर्व प्रधानमंत्री महोदय द्वारा घोषित स्वर्ण चतुर्भुज योजना, राष्ट्रीय राजमार्गों से लेकर ग्राम सडक योजना के तहत नवीन सडकों के निर्माण, पुराने मार्गों के अनुरक्षण के कार्य में अभूतपूर्व प्रगति हुई है । वास्तव में केंद्र तथा संबंधित राज्य सरकारें इसके लिये बधाई की पात्र हैं । हालिया मार्गों का बेहतर प्रचालन भी इसी कडी का हिस्सा है ।

मुझे याद है मेरे निवास से कार्यालय की मात्र 15 किलोमीटर की दूरी तय करने में मुझे पहले 45 मिनट तक लग जाते थे । अब वही दूरी मात्र 20 मिनट में मैं तय कर लेता हूॅं । यह अच्छे दिन आने की दिशा में प्रगति नहीं तो और क्या है ।

कभी-कभी हम स्वयं यह जान भी नहीं पाते कि सिर्फ हमारी ऐसी ही स्वीकारोक्ति से ही जाने-अनजाने में कर्त्ता का भाव रखने वाले को शुभेच्छा और संबल दोनों मिल जाते हैं और हम स्वयं इस बात से अनिभिज्ञ भी रह जाते हैं ।

हमें यह स्वीकार करना पडेगा कि इन राष्ट्रीय, राज्य तथा ग्रामीण मार्गों के निर्माण के लिये हमें पर्यावरण के कितने बडे नुकसान का बलिदान देना पडा है । मार्ग तो हमारी सुविधा के लिये बनाये गये हैं लेकिन तरह-तरह के विभिन्न किस्मों के पुराने बडे वृक्षों, सूक्ष्म वनस्पतियों को हमने खो दिया है । जब सरकार ने हमारी महती सुविधा के लिये इतने मार्गों का निर्माण किया है तो बदले में हमारा नैतिक कर्त्तव्य तो बनता ही है कि इन खोई हुई वनस्पतियों को वृक्षारोपण के माध्यम से पर्यावरण को हम एक नया जीवन दें ताकि हमें और हमारी आने वाली पीढियों को इस पर्यावरण का लाभ मिल सके ।

यह जिम्मेदारी भरा कार्य केवल चंद लाइनों के लेख लिख देने से पूरा नहीं होगा । हममें से प्रत्येक को यह संकल्प लेना होगा कि उनके इलाकों और सुदूर क्षेत्रों में जहॉं-जहॉं मार्गों तथा अन्य निर्माण कार्यों में वृक्षों की बलि दी जानी पडी है, उन्हें कम से कम दोगुनी मात्रा में वृक्षारोपण के माध्यम से हमें पर्यावरण को सहेजने का संकल्प लेना होगा । मेरा दावा है कि यदि यह कार्य किसी स्तर पर शुरू भी कर दिया गया तो सारे पर्यावरण प्रेमी, स्वयंसेवी संस्थाएॅं, गैर शासकीय संस्थाएॅं और यहॉं तक कि राज्य और केन्द्र सरकार का भी भरपूर सहयोग पर्यावरण क्रान्ति के रूप में जरूर मिलेगा । मैं यहॉं यह बताना बिलकुल भी जरूरी नहीं समझता कि पर्यावरण के फायदे क्या हैं, क्योंकि पर्यावरण के नुकसान की हानि हम झेल ही रहे हैं ।

यदि कोई चाहकर भी वृ़क्षारोपण के कार्य में सहयोग न दे पाये तो कोई बात नहीं । वह कम से कम इतना सहयोग तो जरूर कर ही सकता है कि – हममें से हर कोई रेल और सडक मार्ग से यात्रा जरूर करता है । इन यात्राओं के दौरान खाये जाने वाले फलों के बीजों को इधर-उधर कचरे के रूप में न फेंककर यात्रा के दौरान ही सडक या रेल मार्ग के किनारे बिखेर दें । उन बिखेरे गये बीजों से कुछ नहीं तो यदि 10 प्रतिशत पौधे ही पनप जायें तो भी पर्यावरण संरक्षण की दिषा में उनका यह बहुत बडा योगदान होगा ।

यही बात जल के सदुपयोग और दुरूपयोग से भी जुडी है । प्रकृति से जितनी छेडछाड मनुष्य ने की है उसका खामियाजा तो मनुष्य को भुगतना ही पडेगा । दूसरे शब्दों में, हमने प्रकृति से जितना लिया है, उससे अधिक हमें प्रकृति को लौटाने का प्रयास जरूर करना होगा । जल, वायु, मिट्टी या खनिज इत्यादि हमें प्राकृतिक और सीमित स्रोतों के माध्यम से प्राप्त हो रहे हैं । सरकार और स्थानीय प्रषासन द्वारा रेन वाटर हार्वेस्टिंग तथा वाटर रीचार्ज की योजना चलाई जा रही हैं, जिनमें नागरिकों को सब्सिडी भी देय है । मेरी राय में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को प्रत्येक नये तथा पुराने आवासों, सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यालयों के लिये अनिवार्य की जानी चाहिए । क्योंकि जल का दोहन हम जिस गति से कर रहे हैं, मुझे आश्चर्य नहीं कि आने वाले कुछ वर्षों में इसका खामियाजा हमें बडे जल संकट के रूप में भुगतना ही पडेगा ।

यही नहीं, हमें अपनी आने वाली पीढी को भी वृक्षारोपण तथा जल संरक्षण के माध्यम से हमारे पर्यावरण को सहेजने का संस्कार और समुचित संदेश देना होगा तभी हम वास्तविक रूप से पर्यावरण को संरक्षित करने में काफी हद तक सफल हो सकेंगे ।

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