आगरा की वेदना

डा. राधेश्याम द्विवेदी
आगरा का गौरवशाली अतीत
जम्बू नामक इस प्राकृतिक द्वीप में आर्यावर्त नामक एक भूखण्ड है। इसे भारत खण्ड के नाम से जाना जाता है। इसी के अन्र्तगत ब्रजमण्डल की धरती भी है। इसके बारे में कौन नहीं जानता है, इसमें स्थित 12 बनों तथा 24 उपबनों का नाम बहुत ही आदर व श्रद्धा के साथ लिया जाता है। इसी ब्रजमण्डल में एक अगर बन भी रहा है, जहां अगर नामक जंगली वृक्षों की कभी बहुलता रही। इसी अगर वन से ही मेरा अस्तित्व बनते बनते आज एक विश्व प्रसिद्ध ताजनगरी आगरा के रुप में आ बना है। अगर वन की पावन भूमि को अभिसिंचित करते हुए मेरा सांस्कृतिक स्वरूप अति समृद्ध रहा है। पतित पावनी यमुना मां के किनारे मेरा आवास रहा है। इसकी सहायक नदियां मेंरे भूआंचल को अभिसिंचित करती हैं। महाभारत का भी मैं साक्षी रहा हूं। पांडवों ने अज्ञातवास के कुछ क्षण यहां भी बिताए हैं। भगवान श्रीकृष्ण गायों को लेकर मेरे आंगन तथा बाग बागानों में आया करते थे। तब मेरा नाम अग्रवन ही हुआ करता था। भगवान परशुराम, उनके पिता जमदग्नि, मां रेणुका को भी यहां से जोड़ा जाता रहा है। महाराजा अग्रसेन को हमारा राजा होने का गौरव मिल चुका है। सूरदास ने यहीं तो बाल कृष्ण की लीलाओं का गायन किया है। भगवान शिव अपने पांच मंदिर धाम कैलाश, बल्केश्वर, राजराजेश्वर, रावली मनकामेश्वर, तथा पृथ्वीनाथ से बैठे बैठे हमारी रक्षा करते रहे हैं। लाखों शिवभक्त बम भोले का जयकार करते हुए मेरी पावन भूमि का परिक्रमा सावन मास में करते हैं। यद्यपि उनमें कुछ भक्त भावातिरेक में आकर सरकारी सम्पत्ति का नुकसान भी कर जाते है। मुगलों की आन-बान-शान का मैं सदैव साक्षी रहा हूं। गर्मी से त्रस्त बाबर पहली बार रामबाग को अपना विश्राम स्थल बनाया था। उस समय आगरा के लाला व्यवसायिक लोग डर से या मेहमानवाजी के अपने प्राचीन वसूलों को देखते हुए बाबर व उसके जैसे आक्रमणकारियों की खूब सेवा और आवभगत किये थे। जिनकी शह पर उसने अपना साम्राज्य यहीं से बढ़ाना शुरु किया था। पहले तो लूट के उद्देश्य से वह आया था बाद में उसे सोने की चिड़िया वाले इस देश को अपने मन के माफिक पाने पर यहां बसने तथा शासन करने की योजना बना डाली। उसके साथ बहुत बड़ी संख्या में अफगान सौनिक व सरदार भी आये थे, जो उसके लूट व शासन संचालन में सहयोग करते थे। यहां हिन्दू घर्म पर इतने जुल्म ढ़ाये गये जिनका जिक्र करने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जिस सन्त फकीर ने जितनी ज्यादा जोर जबरदस्ती की, सरकारी सुविधायें उतनी ही ज्यादा मिली। चाहे अजमेर की दरगाह हो या फतेहपुर सीकरी या फिर बहराइच का गाजी बाबा, सबने हिन्दू धर्म को तहस नहस किया है। आज की हिन्दू जनता इससे अनजान है और दुवा की लालच में अपने पूर्वजों के ऊपर डाले गये जुल्म का भान नहीं रख पा रही हैं। यहां बड़ी संख्या में प्राचीन मंदिर तोड़े जाने लगे। उन पर मस्जिद व मकबरे बनने शुरु हो गये। विदेशी विशेषज्ञों की मदद से अनेक सांस्कृतिक विरासतें जमीदौज कर दी गयी। बड़ी मात्रा में धर्म परिवर्तन कराया गया। भारत पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू ही रहे हैं। जो धर्म बदले उन्हें अच्छी अच्छी जागीरंे दी गयीं। वे बड़ी संख्या में यहां के प्राचीन किलों व मंदिरों को तोड़कर नये किले मस्जिद तथा सैरगाहें बनवाने लगे। हमारे पुरानी करीगरों को काम मिल गया। वे भी अपने जी जान से इस काम को करने लगे। जहां मौका पाया वहां अपने सनातनी चिन्हों व प्रतीकों को भी इन भवनों पर उकेरने लगे। आगरा में इमारतों पर इसे आसानी से देखा व समझा जा सकता है। बादलगढ़ पर ही अकबर ने भव्य किला बनवाया था। ताजेश्वर महादेव मंदिर पर ताजमहल बनाने की बात विल्कुल काल्पनिक तो नहीं है। इसी तरह फतेहपुर सीकरी भी जंगली व पहाड़ी किला नहीं था। यहां जैनियों के इतनी मूर्तियां मिली हैं कि इसे नया कहने के बजाय अतिक्रमण की संज्ञा देना किसी भी सूरत में गलत नहीं होगा। अकबर का मकबरा भी पंचायत हिन्दू मंदिर की शैली में बना देखा जा सकता है। इसी तरह एत्माउद्दौला, मेहताब बाग जैसे दर्जनों स्मारक मेरे ही वक्षस्थल पर ही बने हैं। कुछ की संरक्षण व व्यवस्था के लिए भारत सरकार एक निश्चित शुल्क भी निर्धारित कर रखी है। कुछ निःशुल्क भी है। मेरा ताजमहल तो दुनिया के सात अजूबों में शुमार है। पहले सप्ताह में एक दिन शुक्रवार को यह निःशुल्क देखा जाता था। बाद में यह व्यवस्था वन्द कर दी गयी अब तो इस दिन नागरिकों के लिए ताज बन्द रहता है। केवल नमाजियों के लिए दोपहर बाद खोला जाता है। परम्परा के नाम पर आज ना केवल स्थानीय अपितु भारत व विदेशों के मुस्लिम इस मस्जिद में नमाज पढ़ने से ना तो अपने को रोक पाते हैं और ना ही प्रशासन उसे रोक पाता है। परम्परा के नाम पर ताज परिसर में दशहरा के दिन मेला लगता था जो अब नहीं करने दिया जाता हैं। ताज के अन्दर आंवले की पूजा भी सदियों से चली आ रही थी। जिसे अब हमेशा हमेशा के लिए पेड़ कटवाकर खत्म करवा दिया गया। गौशाला का नाम आज भी चला आ रहा है। इसे हिन्दू जन अपने शिव मंदिर का एक भाग आज भी मानते हैं । आज भी यमुना की रेती या कोरिडोर से ही ताज की पूजा होने की बात मरे कुछ भक्त करते रहते हैं। मैं अपनी वेदना में क्या क्या गिनाऊ आप मुझे क्या क्या समझने लगेगें ? परन्तु यह सत्य है कि एक समय था जब मैं पहले देश की राजधानी था। बाद में मैं आगरा सूबे का, फिर पश्मिोत्तर प्रान्त का और बहुत बाद में आगरा एक मण्डल का मुख्यालय मात्र रह पाया। यही पर प्रदेश का पहला उच्च न्यायालय बना था। समय चक्र ने करवटें बदली। मैं अपनी शान दिन बदिन खोता गया। अब मैं समस्याओं के मकड़जाल में उलझ गया हूं। लगभग 70 साल हो गये इस देश की आजादी के। बहुत दिनों के बाद देश व प्रदेश में कुछ अलग ही किस्म के सत्ताधारी सेवकों का अस्तित्व बना हैं जो अपने परिवार कुटुम्ब के बंधनों से मुक्त कुछ आम जनता के दुख दर्दों को समझने वाले देखे जा रहे है। हमें भी कुछ नई आस जगी है। इसलिए आज हम अपनी वेदना व्यक्त कर देना ही चाहता हूं। ना जाने इस बहाने हमारे नगर के निवासियों का कुछ भला ही हो जाय। मैं सिसक रहा हूं। मैं रो भी नहीं पा रहा हॅू। मैं तड़प रहा हूं। मैं दुखी हूं। मैं उलझन में हूं। सरकार आती है, चली जाती है और मैं वहीं का वहीं रह जाता हूं। मेरी बात न विधायक सुनता है, ना सांसद। ना मंत्री सुनता है और नाही संतरी। मुझे अपना अक्षुण्य गौरवशाली अतीत चाहिए। मुझे चाहिए कल-कल करती यमुना की पहले जैसी निर्मल जल धारा। मुझे सरपट चलती गाड़ियां चाहिए और आसमान में उड़ने वाले तेज गति के वायुयान। मुझे चाहिए मेल मिलाप भाई चारा तथा जो इतिहास मेरा छीन लिया गया है उसे पुनः सुधारा जाय दुबारा लाया जाय। मुझे सुरक्षा चाहिए शान्ति चाहिए तथा निरापद आवागमन का साधन चाहिए।
माथे पर गंदगी का टीका
जब से आगरा को नगर निगम का दर्जा मिला है, भारतीय जनता पार्टी का ही मेयर रहा है। यह आगरा की बदकिस्मती है कि मेयर कभी एक पानी का नहीं रहा। जनता ने उन्हें कमल के फूल पर वैठाया तो वे प्रदेश की सरकार के साथ मौज मस्ती लेने से अपने को रोक नहीं पाये। चाहे किशोरी लाल हो, या बेबी रानी मौर्य या वर्तमान आर्य साहब। सबने जनता को धोखा देकर पाली बदला है। एसे में उनसे वफादारी का उम्मीद करना ही मैने छोड़ दिया है। हमारे विकास के लिए पहले नगरपालिका बनी फिर महानगरपालिका और अब नगर निगम। हमारी सूरत कोई ठीक नहीं कर पाया। जब से विकास प्राधिकरण आया कुछ तबदीली देखने में आयी। परन्तु मेरे पथकर का पैसा मेंरे विकास व सुधार पर ना लगाकर अधिकारी अपने अपने सुख सुविधाओं में लगाना शुरु कर दिये। अब ना तो नियानुकूल काम दिखता है और ना ही सुचिता दिखती है। इतना होने के बावजूद देश के 100 स्मार्ट व स्वच्छ शहरों में मुझे स्थान नहीं मिला। मेरे माथे पर गंदगी का टीका लगा हुआ है। हर मोड़ पर गंदगी का ढेर है। अब यह न कहना है कि सफाई कर्मचारी कम हैं। संसाधनों का अभाव है। मेरी जनता से जमकर कर वसूला जा रहा है। मुझे तो लगता है भाजपा वाले चुनाव जीतने के लिए ही मुझे पेरिस और सूरत बनाने की बात करते हैं और फिर पांच साल तक किसी का सुध नहीं लेते। मुझे नहीं बनना पेरिस। मुझे नहीं बनना है सूरत। मुझे आगरा ही रहने दीजिए। ग्रीन आगरा क्लीन आगरा नारा तो हैं परन्तु दीखता नहीं है। आगरा। वही हरित आगरा। यहां तो साल के बारहों महीने सफाई अभियान चलता रहता है। पर यहां की जनता तो साफ रहना पसन्द ही नहीं है। वह पहले जैसा व उससे ज्यादा गन्दा बनना पसन्द करती है। इन अभियानों से कुछ नहीं होगा। यहां तो एक टीम बननी चाहिए और गन्दगी करने वाले का चालान नियमित करते रहना चाहिए। विन भय होय ना प्रीति जब तक अपनायी नहीं जाएगी। आगरा की गन्दगी नहीं मिटेगी।
जाम में कराह रहा हूं
मेरे यहां वीआईपी का ताता लगा रहता है। किसी की किस्मत ठीक रहती है तो वह जल्द मेरी भूमि से अलग हो जाता है। नही तो वह जाम में फंस भी जाता है। आम जनता को दूर ही रोक दिया जाता है। आपको बताना है कि मेरी सड़कें जाम से कराह रही हैं। में पूरे दिन में चिल्ल-पौं सुनकर परेशान हो चुका हूं। कहीं ऐसा न हो कि मेरी कान की सुनने की शक्ति ही खत्म हो जाये। ट्रैफिक पुलिस वाले ट्रैफिक को संभालने की जगह वसूली में लगे रहते हैं। दूसरे प्रान्त की गाड़ी का नम्बर देखते ही वाहनों के चालान कटने शुरु हो जाते हैं इस बहाने कुछ भाइयों का धंधा भी होता रहाता है। आप कह सकते हैं कि आगरा वालों में ट्रैफिक सेंस नहीं है, लेकिन इसे कौन लाएगा ? यही आगरा वाले हैं, जो हरियाणा या ताज एक्सप्रेस वे पर आते ही सीट बेल्ट लगा लेते हैं, लेकिन यहां नहीं। बाईपास तो नाम का रह गया है। यमुना किनारा, ग्वालियर रोड मथुरा रोड सब पर भी जाम रहता है। मैं इससे ऊब सा गया हॅू और बीमार सा हो गया हूं।
एस एन मेडिकल कालेज
बीमारी का नाम लेते ही मुझे अपने एस एन मेडिकल कालेज की यादें ताजा हो जाती हैं। किसी जमाने में देश के प्रमुख कालेजों में यह शुमार था। आज इसकी हालत किसी से छिपी नहीं है तभी तो योगी जी को सबसे पहले इसका जायजा लेना पड़ा। यह हाल केवल हमारे एसएन मेडिकल कॉलेज का ही नहीं है। जिला चिकित्सालय, महिला चिकित्सालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र आदि-आदि सबके सब बीमार हैं। सरकारी अस्पतालों में न रुई है, न सुई। स्ट्रेचर तक नहीं मिलता है। यमुना पार के निजी अस्पताल तो बाहर से आने वाले मरीजों को लूट खसोट रहे हैं। मेरी माताओं की कोख का कत्ल हो रहा है। न सीएमओ कुछ कर पा रहे हैं और न ही प्राचार्या। सब कुर्सी पर बैठकर मौज कर रहे हैं। सरकारी चिकित्सकों का सेवाभाव समाप्त हो चुका है। सबके सब निजी प्रैक्टिस में लीन हैं। जरा सी योगी जी ने सख्ती दिखाई तो डाक्टरों के इस्थीपे दना दन आने शुरु हो गये। अपने क्लीनिक व अस्पताल पर मोटी रकम के लिए उनके पास समय हैं आगरा की आम जनता के प्रति उनके पास समय नहीं है। अब आप ही बताइए कि क्या डाक्टर का यही धर्म है ?
मैं प्यासा हूं
कल कल करने वाली यमुना के तट पर होते हुए मैं प्यासा हूं। कारण यह है कि यमुना नें प्यास मिटाने की क्षमता खो दी है। पहले मेरी प्यास बुझाने के लिए यमुना काफी थी, लेकिन सरकारी नीतियों ने हत्या कर दी है। मेरी यमुना में पानी के नाम पर मलमूत्र और फैक्ट्रियों के कचरे मात्र है। दिल्ली, हरियाणा से ही मलमूत्र आ रहा है। मेरी यमुना को शुद्ध करने के लिए हजारों करोड़ रुपये जल निगम वाले डकार चुके हैं। सिर्फ बारिश में यमुना कुछ समय के लिए भरी हुई दिखती है। इसके बाद तो सिर्फ नाला ही नजर आती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यमुना में गंदगी डाली जा रही है। अब ना तो भैंसें स्नान कर पा रही हैं। ना धोबी कपड़े धो पा रहे हैं। नालों की गंदगी जा रही है। कोई रोकने वाला नहीं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बस देखने के लिए हैं। यमुना में पानी नहीं है तो मेरी कोख से पानी निकाला जा रहा है। आखिर मैं इतना पानी कहां से लाऊं। आज मेरा आंचल तो राजस्थान का रेगिस्तान हो गया है। तालाबों को विल्डर पाट पाटकर आलीशन भवन बनवाते चले जा रहे हैं। बारिश का पानी यूं ही बह जाता है। यमुना को शुद्ध कीजिए और भूजल स्तर को सुधारने के लिए अभियान चलाइए। यमुना पर बैराज बनवाइए ताकि बारिश का पानी रोका जा सके। यमुना शुद्धीकरण जन चेतना अभियान के लिए गुरु वशिष्ठ मानव सेवा समिति जल सत्याग्रह व साप्ताहिक आरती कराते कराते पं. अश्विनी कुमार ने बल्केश्वर घाट की काया कल्प तो करवा दी। पुलों के किनारे जालियां लगवाकर कुछ कचरा ऊपर से गिराने के लिए रोकवा दी। एक दर्जन घाटों व पार्कों के विकास तथा शुद्धीकरण के लिए योगी जी की ही तरह अपने अभियान में लगे हैं। साधन विहीन होते हुए लोगों के सहयोग से अपने मिशन में लगे हुए है। जल पुरुष श्री राजेन्द्र सिंह के कर कमलों से हाथीघाट का काल्पनिक नक्शा जारी करवा करवा दिया। श्रमदान से साफ सफाई भी कुछ हो गयी है। वहां की झाड़िया कटवाकर मोबाइल टायलेट भी लगवा दी है। हाथीघाट वालों का पूरा सहयोग ना मिल पाने से यह सफाई फिर से गंदगी में बदल जाती है। घाटवाले लोगों ने अपनी दुकानें तो चमका रखी हैं और पडित जी केवल पूजा करवाते लोगों के सहयोग तथा जन जागरण तक सीमित रह गये है। फिर भी वह यमुना वेदनार्थियों को एक जुट करने में असफल नहीं हुए हैं। काश! योगी जैसा कोई करिश्मायी ताकत उन्हें भी मिलता तो वह भी मां यमुना तथा आगरा के लिए बहुत कुछ कर जाते।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here