जानिए शनि जयंती का महत्व और फल-

शनि जयंती 25 मई 2017 (गुरूवार) को–

****सूर्यपुत्र की आराधना का महापर्व हैं शनि जयंती —

प्रिय पाठकों/मित्रों,शनिदेव को ग्रहों में न्यायाधीश का पद प्राप्त है। मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही देते हैं। जिस व्यक्ति पर शनिदेव की टेड़ी नजर पड़ जाए, वह थोड़े ही समय में राजा से रंक बन जाता है और जिस पर शनिदेव प्रसन्न हो जाएं वह मालामाल हो जाता है। जिस किसी पर भी शनिदेव की साढ़ेसाती या ढय्या रहती है, उसे उस समय बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥

भगवान शनिदेव का जन्म अर्थात शनि जयंती वैशाख अमावस्या को दिन में बारह बजे माना गया। इसीलिए वैशाख अमावस्या का दिन शनैश्चर जयंती के रूप में मनाया जाता है। पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं, तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। शनि के अधिदेवता प्रजापिता ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। ये एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं।

इस वर्ष 25 मई, 2017 में गुरूवार के दिन ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाएगी. इस दिन शनि देव की विशेष पूजा का विधान है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों व स्तोत्रों का गुणगान किया जाता है | पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं. शनि अन्य ग्रहों की तुलना मे धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि के जन्म के विषय में काफी कुछ बताया गया है और ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ़ संकेत मिलता है. शनि ग्रह वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं| पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ट फल प्रदान करते हैं | शनि जयंती पूरे उत्तर भारत में पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार यह तिथि 25 मई 2017 को है। वहीं दक्षिणी भारत के अमावस्यांत पंचांग के अनुसार शनि जयंती वैशाख अमावस्या को मनाई जाती है। संयोगवश उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के साथ-साथ वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है।कुछ विद्वानों के अनुसार शनि जयंती के बारे में धर्मशास्त्र में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। इसके बावजूद शनिदेव को अंधकार का देवता माना जाता है। अमावस्या तिथि जिस दिन रात्रि को स्पर्श करती है, उसी दिन शनि जयंती मनाई जाती है।

शनि जयंती तिथि – 25 मई 2017
अमावस्या तिथि आरंभ – 05:07 बजे (25 मई 2017)
अमावस्या तिथि समाप्त – 01:14 बजे (26 मई 2017)

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस बार शनि जयंती गुरूवार को मनाई जा रही है,माना जाता है की इस समय शनि की पूजा,अर्चना करने से मनोकामनाए पूर्ण होती है| यदि बिना किसी छल कपट के दया भाव से शनि देव का स्मरण किया जाए तो व्यक्ति सब कष्टो से मुक्ति पा सकता है| साढ़ेसाती,ढैया या कुछ शनि दोष से परेशान हो रहे मनुष्यो इस दिन शनि देव को तेल उड़द जरूर चढ़ाना चाहिए|

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि देव कोई कठोर भगवान नहीं है,वो तो समूर्ण जगत में फल देने वाले है| अमावस्या के दिन जो भी मनुष्य शनि देव की मन से पूजा करता है,उसे स्मपुर्ण दुखो से मुक्ति मिल जाती है| विशेष अनुष्ठान से कालसर्प दोष,और आदि दोषो से मुक्ति प्राप्त कर सकते है|इसके अलावा शनि की साढ़ेसाती या महादशा से भी मुक्ति प्राप्त कर सकते है|

जानिए शनि जन्म कथा —

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत मान्य है जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं. सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानो के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई. इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था . इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली चली गईं. कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ.

जानिए कैसे करें शनि जयंती पर शनि देव की पूजा—

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि जयंती के अवसर पर शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा पाठ तथा व्रत किया जाता है. शनि जयंती के दिन किया गया दान पूण्य एवं पूजा पाठ शनि संबंधि सभी कष्टों दूर कर देने में सहायक होता है. शनिदेव के निमित्त पूजा करने हेतु भक्त को चाहिए कि वह शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर नवग्रहों को नमस्कार करते हुए शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें और उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराएं तथा षोड्शोपचार पूजन करें साथ ही शनि मंत्र का उच्चारण करें :-ॐ शनिश्चराय नम:।।

इस मंत्र केसाथ साथ आप पूजन के दौरान शनि के निम्न दस नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर।

इसके बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करें. इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर निराहार रहें व मंत्र का जप करें. शनि की कृपा एवं शांति प्राप्ति हेतु तिल , उड़द, कालीमिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता तथा काले नमक का उपयोग करना चाहिए, शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए. शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपडे, जामुन, काली उडद, काले जूते, तिल, लोहा, तेल, आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान में दे सकते हैं | फिर उपरोक्त मंत्र का जाप करें–

शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।
केतवे अथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव॥

फिर अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार उचित ब्राह्मणों को भोजन कराकर लौह वस्तु धन आदि का दान अवश्य करें।
अगर मंदिर जाना संभव न हो तो घर पर ही शनिदेव का स्मरण कर शनि चालीसा का पाठ करें। इसके बाद शनि की आरती करें।
शनिदेव की पूजा से पूर्व अगर हनुमानजी की आराधना की जाए तो शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
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जानिए शनि जयंती महत्व का महत्त्व —

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस दिन प्रमुख शनि मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. भारत में स्थित प्रमुख शनि मंदिरों में भक्त शनि देव से संबंधित पूजा पाठ करते हैं तथा शनि पीड़ा से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं. शनि देव को काला या कृष्ण वर्ण का बताया जाता है इसलिए इन्हें काला रंग अधिक प्रिय है. शनि देव काले वस्त्रों में सुशोभित हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन हुआ है. जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे. यह न्याय के देवता हैं, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं. शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा जाता है यह जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं |
शनि जयंती का अपना अलग महत्व है,उस दिन जो सच्चे दिल से शनि की पूजा करता हिअ,वह शनि के प्रकोप से बचा रहता है| इस दिन शनि स्तोत्र का जाप करना चाहिए और महा मृत्युंजय मंयर का भी जाप करना फलदायक होता है|

“||शनि नवाक्षरी मंत्र अथवा“कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम:। सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत:।।”

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस मन्त्र का जाप करने से सरे दुखो से मुक्ति मिल सकती है|
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इस शनि जयंती पर पाएं पितृ दोष से मुक्ति —
यदि शनि देव की कृपा चाहते है तो शनि अमावस्या को शनि की आराधना मन से कीजिये| | माना जाता है की यदि शनि अमावस्या के दिन यदि पितरो का श्राद्ध किया जाए तो,पितरो को मोक्ष मिलता है| शनि देव को शनि अमावस्या बहुत ही प्रिय है| शनि देव की कृपा पितरो का उद्धार करती है|
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस शनि जयंती पर करें यह विशेष उपाय—
01 .अपने मता पिता का आदर-सम्मान करें..
02 .–यथा संभव सच बोलनेका प्रयास करें..
03 .–भिखारी,निर्बल-दुर्बल का मजाक/परिहास नहीं करें..
04. शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए तिल का तेल एक कटोरी में लेकर उसमें अपना मुंह देखकर शनि मंदिर में रख आएं (जिस कटोरी में तेल हो उसे भी घर ना लाएं)। कहते हैं तिल के तेल से शनि विशेष प्रसन्न रहते हैं।
05. सवापाव साबुत काले उड़द लेकर काले कपड़े में बांध कर शुक्रवार को अपने पास रखकर सोएं। ध्यान रहे अपने पास किसी को भी ना सुलाएं। फिर उसको शनिवार को शनि मंदिर में रख आएं।
06. काला सुरमा एक शीशी में लेकर अपने ऊपर से शनिवार को नौ बार सिर से पैर तक किसी से उतरवा कर सुनसान जमीन में गाड़ देवें।
04. ना तो नीलम पहने, ना ही लोहे का बना छल्ला पहने। इसके पहनने से शनि का कुप्रभाव और बढ़ जाता है।
06 .—इस शनि जयन्ती को नित्य कर्मों के निवृत्त होने के बाद स्वच्छ व श्वेत वस्त्र पहनें। पीपल की जड़ में केसर, चंदन, चावल, फूल मिला पवित्र जल अर्पित करें। तिल का तेल का दीपक जलाएं। यहां लिखे मंत्र का जप करें।

मंत्र-

आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदम्।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।
विश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतए गोविन्दाय नमो नम:।

मंत्र जप के साथ पीपल की परिक्रमा करें। श्रीकृष्ण के निमित्त मिठाई का भोग लगाएं। धूप, दीपक जलाकर आरती करें। पीपल को चढ़ाया हुआ थोड़ा-सा जल घर में लाकर भी छिड़कें। ऐसा करने से घर का वातावरण पवित्र होता है।

07 .–शनि के बुरे फल को दूर करने के लिए काली चीजें जैसे काले चने, काले तिल, उड़द की दाल, काले कपड़े आदि का दान किसी गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति को करें। इसके साथ ही शनि देव के निमित्त हर शनिवार को विशेष पूजन करें।

08 .–शनि को प्रसन्न करने के लिए बताए गए खास उपायों में से एक उपाय है किसी कुत्ते को तेल चुपड़ी हुई रोटी खिलाना। अधिकतर लोग प्रतिदिन कुत्ते को रोटी तो खिलाते ही हैं ऐसे में यदि रोटी पर तेल लगाकर कुत्ते को खिलाई जाए तो शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि कुत्ता शनिदेव का वाहन है और जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे अति प्रसन्न होते हैं।
09 .–शनि महाराज की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को परेशानियों के कष्ट से मुक्ति मिल जाती है। साढ़ेसाती हो या ढय्या या कुंडली का अन्य कोई दोष इस उपाय से निश्चित ही लाभ होता है। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाने से शनि के साथ ही राहु-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है। राहु-केतु के योग कालसर्प योग से पीडि़त व्यक्तियों को यह उपाय लाभ पहुंचाता है।
10 .–ज्योतिष के अनुसार यदि किसी की राशि में शनि की साढ़ेसाती या ढय्या चल रही है तो शनि को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए हैं। इन उपायों में अधिकांश उपाय शनिवार के दिन किए जाते हैं। शनिवार शनिदेव का खास दिन है और इस दिन जो भी व्यक्ति शनि को प्रसन्न के लिए पूजन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

शनि की साढ़ेसाती और ढय्या या अन्य कोई शनि दोष हो तो हर शनिवार को किसी भी पीपल के वृक्ष को दोनों हाथों से स्पर्श करें। स्पर्श करने के साथ ही पीपल की सात परिक्रमाएं करें। परिक्रमा करते समय शनिदेव का ध्यान करना चाहिए। किसी शनि मंत्र (ऊँ शंशनैश्चराय नम:) का जप करें या ऊँ नम: शिवाय का जप करें।
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शनि पूजन में इन बातों का रखें विशेष ध्यान/सावधानी —
शनि देव की पूजा करने के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करना चाहिये।
शनिमंदिर के साथ-साथ हनुमान जी के दर्शन भी जरूर करने चाहिये।
शनि जयंती या शनि पूजा के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
इस दिन यात्रा को भी स्थगित कर देना चाहिये।
किसी जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को तेल में बने खाद्य पदार्थों का सेवन करवाना चाहिये।
गाय और कुत्तों को भी तेल में बने पदार्थ खिलाने चाहिये।
बुजूर्गों व जरुरतमंद की सेवा और सहायता भी करनी चाहिये।
सूर्यदेव की पूजा इस दिन न ही करें तो अच्छा है।
शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर को देखते समय उनकी आंखो में नहीं देखना चाहिये।
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जानिए भारतीय /वेदिक ज्योतिष में शनि देव—

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसारशनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं. शनि अन्य ग्रहों की तुलना मे धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है।शनिदेव भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। इन्हें क्रूर ग्रह माना जाता है जो कि इन्हें पत्नी के शाप के कारण मिली है। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण है व ये गिद्ध की सवारी करते हैं। फलित ज्योतिष के अनुसार शनि को अशुभ माना जाता है व 9 ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक रहते हैं तथा मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है। माना जाता है इसी गुरुत्व बल के कारण हमारे अच्छे और बूरे विचार चुंबकीय शक्ति से शनि के पास पंहुचते हैं जिनका कृत्य अनुसार परिणाम भी जल्द मिलता है। असल में शनिदेव बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं। यदि आप किसी से धोखा-धड़ी नहीं करते, किसी के साथ अन्याय नहीं करते, किसी पर कोई जुल्म अत्याचार नहीं करते, कहने तात्पर्य यदि आप बूरे कामों में संलिप्त नहीं हैं तब आपको शनि से घबराने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि शनिदेव भले जातकों को कोई कष्ट नहीं देते।

पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि के जन्म के विषय में काफी कुछ बताया गया है और ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ़ संकेत मिलता है।।सम्पूर्ण सिद्धियों के दाता सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले सूर्य पुत्र ‘ शनिदेव ‘। ग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह। जिनके शीश पर अमूल्य मणियों से बना मुकुट सुशोभित है। जिनके हाथ में चमत्कारिक यन्त्र है। शनिदेव न्यायप्रिय और भक्तो को अभय दान देने वाले हैं। प्रसन्न हो जाएं तो रंक को राजा और क्रोधित हो जाएं तो राजा को रंक भी बना सकते हैं।

‘स्कन्द पुराण’ के मुताबिक सूर्य की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ था। कथा है कि शनि के श्याम वर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया कि शनि उनका पुत्र नहीं है। जब शनि को इस बात का पता चला तो वह अपने पिता से क्रुद्ध हो गए। इसी के चलते शनि और सूर्य में बैर की बात कही जाती है।

शनि ने अपनी साधना और तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य देव के समतुल्य शक्तियां अर्जित कीं।
प्रत्येक अवस्था में एक संतुलन और होश को बांधे रखने में शनिदेव हमारे सहायक हैं। शनि प्रकृति में भी संतुलन बनाये रखते हैं और प्रत्येक प्राणी के साथ न्याय करते हैं। ऐसे में शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कार्य कर प्रसन्न किया जा सकता है।

इसलिए शनि जयन्ती के दिन हमें काला वस्त्र, लोहा, काली उड़द, सरसों का तेल दान करना चाहिए, तथा धूप, दीप, नैवेद्य, काले पुष्प से इनकी पूजा करनी चाहिए।

शनि ग्रह वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं. शास्त्रों के अनुसार शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ट फल प्रदान करते हैं।।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शनि को सर्वाधिक क्रूर ग्रह माना गया है। शनि को कंटक मंद और पापी ग्रह कहकर संबोधित किया जाता है। अधिकतर ज्योतिष शास्त्रों में शनि के दुष्प्रभाव और उसकी वक्र दृष्टि को लेकर बहुत नकारात्मक लिखा गया है।

कालपुरूष सिद्धांत के अनसार शनि व्यक्ति के कर्म और लाभ क्षेत्र को प्रभावित करता है और अपनी दृष्टि से व्यक्ति के मन मस्तिष्क, प्रेम, संतान पारिवारिक सुख, दांपत्य जीवन, सेहत, दुर्धटना और आयु को प्रभावित करता है
मानव जीवन का कोई भी पहलू ज्योतिष से अछूता नहीं है। यहां तक की व्यक्ति जो कपड़े पहनता है उस पर भी ज्योतिष अपना प्रभुत्व रखता है हम सभी अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र खरीदते हैं और उन्हें पहनते हैं।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि से प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधा का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को कम करने हेतु शनिचरी अमावस्या के दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो सके शनि दर्शन से भी बचना चाहिए।

किसी ने सच ही कहा है कि शनि जाते हुए अच्छा लगता है ना कि आते हुए। शनि जिनकी पत्रिका में जन्म के समय मंगल की राशि वृश्चिक में हो या फिर नीच मंगल की राशि मेष में हो तब शनि का कुप्रभाव अधिक देखने को मिलता है। बाकि की राशियां सिर्फ सूर्य की राशि सिंह को छोड़ शनि की मित्र, उच्च व सम होती है।

ध्यान रखे — शनि-शुक्र की राशि तुला में उच्च का होता है। शनि का फल स्थान भेद से अलग-अलग शुभ ही पड़ता है। सम में ना तो अच्छा ना ही बुरा फल देता है। मित्र की राशि में शनि मित्रवत प्रभाव देता है। शत्रु राशि में शनि का प्रभाव भी शत्रुवत ही रहता है, जो सूर्य की राशि सिंह में होता है। सभी जानते हैं की वस्त्र व्यक्ति की शोभा भी बढाते हैं साथ-साथ उसके सामाजिक प्रभाव में भी वृद्धि करते हैं। आप जानते हैं की आप कोरे कपड़े पहनकर जो नए और बगैर धुले होते हैं कुछ समस्याओं को स्वयं निमंत्रण दे देते हैं।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि का फ़ल व्यक्ति की जन्म कुंडली के बलवान और निर्बल ग्रह तय करते हैं। मनुष्य हो या देवता एक बार प्रत्येक व्यक्ति को शनि का साक्षात्कार जीवन में अवश्य होता हैं । शनि के प्रकोप को आदर्श और कर्तव्य के प्रतिमूर्ति प्रभु श्रीराम, महाज्ञानी रावण, पाण्डव और उनकी पत्नि द्रोपदी, राजा विक्रमादित्य सभी ने भोगा है। इसिलिए मनुष्य तो क्या देवी देवता भी इनके पराक्रम से घबराते हैं।

कहा जाता है शनिदेव बचपन में बहुत नटखट थे। इनकी अपने भाई बहनों से नही बनती थी। इसीलिये सूर्य ने सभी पुत्रों को बराबर राज्य बांट दिया। इससे शनिदेव खुश नही हुए। वह अकेले ही सारा राज्य चलाना चाहते थे, यही सोचकर उन्होनें ब्रह्माजी की अराधना की। ब्रह्माजी उनकी अराधना से प्रसन्न हुए और उनसे इच्छित वर मांगने के लिए कहा।

शनि देव बोले – मेरी शुभ दृष्टि जिस पर पड़ जाए उसका कल्याण हो जाए तथा जिस पर क्रूर दृष्टि पड़ जाए उसका सर्वनाश हो जाए। ब्रह्मा से वर पाकर शनिदेव ने अपने भाईयों का राजपाट छीन लिया। उनके भाई इस कृत्य से दुखी हो शिवजी की अराधना करने लगे। शिव ने शनि को बुला कर समझाया तुम अपनी शक्ति का सदुपयोग करो। शिवजी ने शनिदेव और उनके भाई यमराज को उनके कार्य सौंपे। यमराज उनके प्राण हरे जिनकी आयु पूरी हो चुकी है, तथा शनि देव मनुष्यों को उनके कर्मो के अनुसार दण्ड़ या पुरस्कार देंगे। शिवजी ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि उनकी कुदृष्टि से देवता भी नहीं बच पायेंगे।

माना जाता है रावण के योग बल से बंदी शनिदेव को लंका दहन के समय हनुमान जी ने बंधन मुक्त करवाया था। बंधन मुक्त होने के ऋण से मुक्त होने के लिए शनिदेव ने हनुमान से वर मांगने को कहा। हनुमान जी बोले कलियुग मे मेरी अराधना करने वाले को अशुभ फ़ल नही दोगे। शनि बोले ! ऐसा ही होगा। तभी से जो व्यक्ति हनुमान जी की पूजा करता है, वचनबद्ध होने के कारण शनिदेव अपने प्रकोप को कम करते हैं।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि से प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधा का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को कम करने हेतु शनिचरी जयंती के दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो सके शनि दर्शन से भी बचना चाहिए।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कर कार्य सिद्ध करने के लिए विधिपूर्वक मंत्र जाप एवं अनुष्ठान जरूरी होते हैं। वस्तुतः पूर्व कृत कर्मों का फल यदि आराधना के द्वारा शांत किया जा सकता है, तो इसके लिए साधकों को पूरी तन्मयता से साधना और आराधना करनी चाहिए। इसदिन शनि मंदिरों एवं हनुमान के मंदिरों में शनि जयन्ती को पूरी निष्ठा के साथ विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवग्रहों में शनिदेव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । शास्त्रों में शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना गया है । इनकी माता का नाम छाया है । सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र होने के कारण इनका रंग काला है । मनु और यमराज शनि के भाई हैं तथा यमुनाजी इनकी बहन हैं । शनिदेव का शरीर इंद्रनीलमणि के समान है । इनका रंग श्यामवर्ण माना जाता है। शनि के मस्तक पर स्वर्णमुकुट शोभित रहता है एवं वे नीले वस्त्र धारण किए रहते हैं । शनिदेव का वाहन कौआं है । शनि की चार भुजाएं हैं । इनके एक हाथ में धनुष, एक हाथ में बाण, एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में वरमुद्रा सुशोभित है।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान बताया गया हैं । शनिदेव न्याय, श्रम व प्रजा के देवता हैं । यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि सुखी-समृद्धि जीवन प्रदान करते हैं । गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है । जो लोग गरीबों को परेशान करते हैं, उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है । सूर्यपुत्र शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । इस वजह से शनि ही हमारे कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं । जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं, ठीक वैसे ही फल शनि प्रदान करते हैं । परंतु ज्योतिषियों द्वारा नवग्रहों में न्यायाधीश शनि की सर्वाधिक निंदा की गई है ।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनिदेव सूर्य पुत्र हैं और वे अपने पिता सूर्य को शत्रु भी मानते हैं। शनि देव का रंग काला है और उन्हें नीले तथा काले वस्त्र आदि विशेष प्रिय हैं। ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश बताया गया है। व्यक्ति के सभी कर्मों के अच्छे-बुरे फल शनि महाराज ही प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढय्या के समय में शनि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। अमावस्या को मंदिरों में प्रातः सूर्योदय से पूर्व पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाना तथा दिन में शनि महाराज की मूर्ति पर तैलाभिषेक एवं यज्ञ अनुष्ठानों के द्वारा हवनात्मक ग्रह शांति यज्ञ करने से मनुष्य को अपने पाप कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता है।

किसी ने सच ही कहा है कि शनि जाते हुए अच्छा लगता है ना कि आते हुए। शनि जिनकी पत्रिका में जन्म के समय मंगल की राशि वृश्चिक में हो या फिर नीच मंगल की राशि मेष में हो तब शनि का कुप्रभाव अधिक देखने को मिलता है। बाकि की राशियां सिर्फ सूर्य की राशि सिंह को छोड़ शनि की मित्र, उच्च व सम होती है।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि-शुक्र की राशि तुला में उच्च का होता है। शनि का फल स्थान भेद से अलग-अलग शुभ ही पड़ता है। सम में ना तो अच्छा ना ही बुरा फल देता है। मित्र की राशि में शनि मित्रवत प्रभाव देता है। शत्रु राशि में शनि का प्रभाव भी शत्रुवत ही रहता है, जो सूर्य की राशि सिंह में होता है।
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भूलकर भी नहीं करें शनि जयंती पर न करें ये काम, वरना बढ़ सकते हैं शनि के दोष—

गरीब व्यक्ति को उचित मान-सम्मान दें। अपनी क्षमता अनुसार उनकी मदद करने का प्रयास करें।
वाहन चलाते समय सावधान रहें। वाहन और मशीन के कारक शनि देव हैं। छोटी सी भूल के भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
शनि जयंती और अमावस्या के दिन कभी भी किसी से न उलझें और न अपशब्दों का प्रयोग करें।
मांसाहार और नशे का सेवन न करें अन्यथा आर्थिक, शारीरिक और मानसिक हानियां उठानी पड़ेंगी।
घर में सुख-शांति बनाए रखें। जिस घर में लड़ाई-झगड़ा व कलह-क्लेश होता है वहां शनि कृपा कभी नहीं बरसती।
तेल खरीद कर घर न लाएं लेकिन दान जरूर करें।
शनिवार और शनि जयंती पर कोई भी नया काम शुरू करने से बचें अन्यथा अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
श्रीमान जी, धन्यवाद..

Thank you very much .

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