आत्माराम यादव
भारत सरकार को चाहिये कि वह देशवासियों की खुशी, मौज और फायदे के लिये अंग्रेजी केलेन्डर के 30 व 31 दिन में पूरा होने वाला एक महिना 28 दिन का ओर 12 महिने की जगह 13 महिने का एक साल घोषित करें। सनातन काल से हिन्दू धर्म में गुडीपडवा चैत्र से नये साल की शुरूआत होती है और फाल्गुन मास साल का आखिरी महिना होता है जिसमें विक्रम संवत व शालिवाहन शकः के मान से 12 महिने एवं एक मलमास पुरूषोत्तम माह पडने से 13 महिने का साल की परम्परा सदियों से चली आ रही है और इसी ज्यो तिष गणना के आधार पर पाण्डवों के 13 साल का अज्ञातवास पूरा हुआ, यह अलग बात है कि दुर्योधन सहित कौरवों ने उसे स्वीेकार नहीं किया।
धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा समय की यह गणना हम भूल गये, हमारी सरकारें भूल गयी, पर भला हो मोबाईल कम्पनियों का जिन्हें धर्मसंगत यह गिनती याद रही और उन्होंने तत्काल बिना किसी हिचक के देश के प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, नेता, सुप्रीम कोर्ट से लेकर निम्न् कोर्ट के न्यायाधीशों, सरकारी उपक्रम के उच्च पदाधिकारियों, सहित आम नागरिकों को आपस में वार्तालाप करने, इंटरनेट सुविधा आदि हेतु अपनी सिम बेचते समय आजीवन सिम का मालिकाना हक दिया, फ्री सेवायें देते हुये हर नागरिक के हाथ में एक मोबाईल में दो-दो सिम थमा दी, मोबाइल की लत जब पूरे देशवासियों के नस-नस में समा गयी और वे मोबाईल के गुलाम होकर उसके चंगुल में फॅस गये, तब उनकी हालत वैसी हो गयी जैसे शराबी की शराब के बिना, नशेडी की सिगरेट-गुटका, अफीम-चरस के बिना होती है वैसे ही मोबाईल के बिना हर एक की हो गयी है और पैदा होने के बाद बच्चों का बपचन मोबाइल के हवाले किया जा रहा है और वे बचपन में ही जवान हो रहे है ।
मोबाइल के जनक धीरूभाई अम्बानी ने कपडे धोने के पावडर से जीवन की शुरूआत की, उन्होंने देखा कि अमीर-गरीब सभी कपडे पहनते-ओढते और बिछाते है जो गंदे होने पर उनके वाशिंग पाउडर से साफ किये जा सकते है, पावडर बिका, इतना बिका की कई वाशिंग पावडर कम्पनियॉ उनकी प्रतिस्पर्धा में आ गयी। धीरूभाई ने कपडे धोने के पावडर से देश की नब्ज टटोल ली और मोबाईल लांच किया जिसमें सुनने के भी पैसे देने होते थे। पूरे देश में सभी जगह सरकारी उपक्रम के रूप में बीएसएनएल के फोन देशवासियों को संतोषप्रद सेवायें दे रहा था, बस गॉधी जी के तीन बंदरों की देशना पूरी हुई और बीएसएनएल को ताला लगवाकर अंबानी जी का सपना साकार हुआ। इसके पूर्व देश के हर खास से आम व्यक्ति तक, महल से झुग्गीे झोपडी तक हर एक की जरूरत यह मोबाइल बन गया। फिर घरों से टीवी के एन्टीबना हटे, छतरिया आयी, छतरियों से चैनलों को दिखाने की होड ने टावरों की होड लगी, निशुल्क में दिखाये जाने वाले दो दर्जन से अधिक सरकारी चैनलों का प्रसारण बंद हो गया, रेडियेशन फैला, हर देशवासी की जेबें मोबाईल के लिये और मोबाईल से खुद की बीमारी के लिये खाली होना शुरू हुआ।
कई कम्पीनियों ने मोबाइल और टेलीविजन चैनलों के प्रसारण् हेतु सिग्नल घर पर ठीक से पहुंचने के लिये बीमारी फैलाने वाले टाबरों का जाल फैला दिया, इन टावरों के रेडियेशन से लोग बीमार होना शुरू हुये, पक्षियों की कई प्रजाति नष्ट हो गयी, हम ओर आप नासमझ है मोबाईल टीवी की लत के गुलाम, चौबीस घन्टे मोबाईल से चिपके उससे पैदा होने वाले रेडियेशन से अपना जीवन तवाह कर कई अनचाही बीमारियों को अपने शरीर में स्थान देकर तिलतिल मर रहे है, डाक्टरों का भला कर रहे है।
अब हम मोबाइल के महाजाल फेशबुक, व्हाटसअप ग्रुप, इस्ट्रा ग्राम, टियूटर, सहित अनेक ऐपों के ऐबों के गुलाम हो गये है, मोबाईल हमारी जिन्दगी का हिस्सा बन गया है इसलिये मोबाइल कम्पनियों ने गुलाम बनाने से पहले जो सिम आजीवन शर्त पर सन 2040-50 तक की समयावधि के लिये दी वह वायदा कम्पनी ने तोड दिया और अब हर रिचार्ज की समयावधि में बंद हो जाती है और गुलाम होने के कारण हम सब सहने को आदी हो गये। उन्होंने फ्री सेवाओं से शुरू कर अपनी शर्तो पर अनेक प्रकार के टेक्सों को थोपकर लूट-खसूट शुरू की, हमने स्वीाकार कर लिया, वे हमारी खामोशी पर खुश हुये। फिर उन्होंने कहा तुम्हारे केलेन्डर में जो 30 और 31 दिन का महिना होता है वह हमारे हिसाब से 28 दिन का होता है और उन्होंने 28 दिन का एक महिना कर साल के 12 महिने में दो- दो दिन कम करके बारह दूनी 24 का एक महिना 31 दिनों के महिने से चार दिन लेकर 28 दिन का एक नया महिना और 13 महिने का एक साल कर दिया, सरकार चुप, देश का हर आदमी चुप, और 13 महिने के पैकेज में एक अतिरिक्त महिने का पैकेज उन्होंने दिया हमने ऑख मूंदकर स्वीकार कर अपने गुलाम होने की बेबशी पर ठप्पा लगा दिया।
जब सरकार ने मोबाइल कम्पेनियों के 28 दिन को एक महिना एवं 13 महिने को एक साल स्वीकार कर ही लिया है तो हम देश की जनता, खालिस खुद को ही गुलाम क्यों माने, सरकार भी तो हमारे साथ शामिल है। सरकार को चाहिये कि वे अपने केलेन्डर में बदलाव करें और मोबाइल कम्पनियों के 12 महिने में 13 महिने किये जाने को सरकारी जामा पहनाकर संसद में एक अध्यादेश लाये और बकायदा इसे मंजूर कर पूरे देश में लागू करें ताकि जहॉ सरकारी कर्मचारियों सहित पूरे देशवासियों को 28 दिन के महिने के हिसाब से उसका वेतन भत्ता आदि प्राप्त हो सके, हर देशवासी इस सौगात से वंचित न रहे, ताकि जो लोग मोबाईल कम्पनियों द्वारा 12 महिने के एक साल में 13 महिने के लाभ से वंचित है, वे स्वंयं को गुलाम या उल्लू कहलाने से बचकर शान से कह सके कि एक साल 12 महिने नहीं बल्कि 13 महिने का होता है और एक महिना 28 दिन का, जिसके लाभ से देश के हर स्कूली छात्र अछूते न रह सके और 28 दिन के महिने व 13 महिने के एक साल का अध्यादेश पारित होने पर हर देशवासी कह सके, हुर्रे एक महिना 28 दिन का और एक साल 13 महिना करने वाली मोबाइल कम्पनियां की खुशी की यह सौगात सबको बराबर बिना भेदभाव के प्राप्त हुई है, दुनिया के सामने एक नई मिसाल कायम कर 13 महिने का एक साल किये जाने पर दुनिया के देश हमारी इस उपलब्धि से अपना सर नौचते रह जाये तथा भारत के इस विकास पर विश्व की हर सरकार नतमस्तक हो जाये,