मिसाइल निर्माण में आत्मनिर्भर हुआ देश

aakshसंदर्भ-‘आकाश‘मेक इन इंडिया का कमाल

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना ‘मेक इन इंडिया‘ ने आकार लेना शुरू कर दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ी उपलब्धि पहली स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली तकनीक से र्निमित ‘आकाश मिसाइल‘ अस्तित्व में आ गई है। इसे औपचारिक रूप से थल सेना के बाद वायु सेना के बेड़े में शामिल करने का काम रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने ग्वालियर में वायु सेना अध्यक्ष अरूप राहा को प्रतिकात्मक चाबी सौंपकर पूरा किया। रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने वाली इस मिसाइल के कल-पूर्जों का ९२ फीसदी निर्माण स्वदेशी तकनीक से किया गया है। इसके हरेक पूर्जे पर ‘मेक इन इंडिया‘ अंकित है। इसके पहले बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-५ के निर्माण में ८५ प्रतिशत स्वदेशी तकनीक की भागीदारी थी।

आकाश मिसाइल सरकारी व निजी साझेदारी से तैयार की गई है। इससे रक्षा के क्षेत्र में निजी पूंजी निवेश की सार्थकता सिद्ध हुई है। यह आत्याधुनिक मिसाइल प्रणाली है,मोदी सरकार के इस महत्वाकांक्षी सपने को भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड ;बेलद्ध के व्यावसायिक परियोजना प्रबंध द्वारा सकार किया गया है। इसके हर पुर्जे पर ‘मेक इन इंडिया‘ लिखा हुआ है। इस मिसाइल की खासियत यह है कि यह सभी मौसमों व विपरीत परिस्थितियों में भी एक से अधिक लक्ष्य साधने में सक्षम सुपरसोनिक मिसाइल है। २५ से ३० किलोमीटर की दूरी तक यह अचूक निशाना साधने एवं हवा में भी मारक क्षमता में परिपूर्ण है। भारत आकाश की सफलता के बाद आकाश-२ के निर्माण की तैयारी में लग गया है। इसकी मारक क्षमताएं आकाश-१ से दोगुना होगी। साथ ही इसमें शूट एंड फायर सिस्टम मिसाइल में ही जुड़े होंगे। इसलिए यह लक्ष्य को और प्रभावी ढंग से भेदने में सफल होगी।

 

भारत मे रक्षा उपकरणों की उपलब्धता की दृष्टि से प्रक्षेपास्त्र श्रंृखला प्रणाली की अहम भूमिका है। अब तक इस कड़ी में देश के पास पृथ्वी से वायु में और समुद्र्री सतह से दागी जा सकने वाली मिसाइलें ही उपलब्ध थीं। इसके बाद ८५ फीसदी स्वदेशी तकनीक कमाल का अविष्कार अग्नि-५ मिसाइल थी। यह ऐसी अद्भुत मिसाइल है जो सड़क और रेलमार्ग पर चलते हुए भी दुश्मन पर हमला बोल सकती है। इसके निर्माण में कैनेस्तर तकनीक का इस्तेमाल किए जाने से इसकी खूबी यह भी है कि जासूसी उपकरण और उपग्रह भी यह मालूम नहीं कर पाएगें कि इसे कहां से दागा गया है और यह किस दिशा में उड़ान भर रही है। इसलिए दुश्मन देश को इसे बीच में ही नष्ट करना नामुमकिन है। अग्नि-५ की विशेषता है कि इसे एक बार छोड़ने के बाद लक्ष्य साधने वाले सैनिक व वैज्ञानिक भी रोक नहीं सकते। ५० टन वजनी इस मिसाइल में एक हजार किलोग्र्राम परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता है। अमेरिका को छोड़कर शेष यूरोप, संपूर्ण एश्यिा और अफ्रीका इसकी मारक क्षमता के दायरे में है। भारत को बार-बार आखें दिखाने वाले चीन की राजधानी बीजिंग ही नहीं चीन का उत्तर में सबसे दूर बसा नगर हार्बिन भी इसकी मार की जद में है।

भारत के लगातार मिसाइल निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर होते चले जाने के कारण चीन और पाकिस्तान जैसे देश आशंिंकत है। लिहाजा ये देश आशंका जता रहे हैं कि एक के बाद एक भारत द्वारा मिसाइलों के निर्माण से एशियाई परिक्षेत्र में हथियारों का भण्डारण करने की होड़ लगेगी। हालांकि यह सच्चाई नहीं है। पाकिस्तान ईरान व कोरिया पहले से ही मिसाइलों के निर्माण और उनके परीक्षण में लगे हैं। विकसित व घातक हथियारों के कारोबार में लगे देश भी अपने हथियारों को बेचने के लिए कई देशों को उकसाने में लगे रहते हैं। आज पूरी दुनिया को भस्मासुर साबित हो रहे तालिबानी आंतकवादियों को हथियार मुहैया कराने का काम यूरोपीय देशों ने अपने हथियार खपाने के लिए ही किया हुआ है। पाकिस्तान पोषित कश्मीर में आतंकवाद और उड़ीसा व छत्तीसगढ़ में पसरा चीन द्वारा पोषित माओवादी उग्रवाद ऐसी ही बदनीयति का विस्तार हैं।

रक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देने की दृष्टि से भारत में एकीकृत विकास कार्यक्रम की शुरूआत १९८३ में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य देशज तकनीक व स्थानीय संसाधनों के आधार पर मिसाइल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इस परियोजना के अंतर्गत ही अग्नि, पृथ्वी, आकाश और त्रिशूल मिसाइलों का निर्माण किया गया। टैंको को नष्ट करने वाली मिसाइल नाग भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है। पश्चिमी देशों को चुनौती देते हुए यह देशज तकनीक भारतीय वैज्ञानिकों ने इंदिरा गांधी के प्रोत्साहन से इसलिए विकसित की थी क्योंकि सभी यूरोपीय देशों ने भारत को मिसाइल तकनीक देने से इंकार कर दिया था। भारत द्वारा पोखरण में किए गए पहले परमाणु विस्फोट के बाद रूस ने भी उस आरएलजी तकनीक को देने से मना कर दिया, जो एक समय तक मिलती रही थी। किंतु एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिभा और सतत सक्रियतासे हममिसाइल क्षेत्र में मजबूती से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते रहे। सिलसिलेवार मिसाइलों के सफल परीक्षण के कारण ही वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को ‘‘मिसाइल मेन’’ अर्थात ’’अग्नि – पुत्र’’ कहा जाने लगा था।

उनकी सेवानिवृत्ति के बाद इस काम को गति दी महिला वैज्ञानिक टीसी थॉंमस ने। श्रीमती थॉंमस आईजीएमडीपी में अग्नि ५ अनुसंधान की परियोजना निदेशक रही हैं। उन्हें भारतीय प्रक्षेपास्त्र परियोजना की पहली महिला निदेशक होने का भी श्रेय हासिल है। २३ साल पहले टीसी थॉंमस ने एक वैज्ञानिक की हैसियत से इस परियोजना में नौकरी की शुरूआत की थी। अग्नि-५ से पहले उनका सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख अनुसांधन ’री एंट्री व्हीकल सिस्टम’ विकसित करना है। इस प्रणाली की विशिष्टता है कि जब मिसाइल वायुमण्डल में दोबारा प्रवेश करती है तो अत्याधिक तापमान ३००० डिग्र्री सेल्सियस तक पैदा हो जाता है। इस तापमान को मिसाइल सहन नहीं कर पाती और वह लक्ष्य भेदने से पहले ही जलकर खाक हो जाती है। आरवीएस तकनीक बढ़ते तापमान को नियंत्रण में रखती हैं, फलस्वरुप मिसाइल बीच में नष्ट नहीं होती। इस उपलब्धि के हसिल करने के बाद से ही टीसी थॉंम को ’मिसाइल लेडी’अर्थात् ’अग्नि – पुत्री’ कहा जाने लगा है। श्रीमती थॉंमस को रक्षा उपकरणों के अनुसंधान पर इतना नाज है कि उन्होंने अपने बेटे तक का नाम लड़ाकू विमान ’तेजस’ के नाम पर तेजस थॉंमस रखा है। वे मिसाइल अनुसंधान में लगे ४०० वैज्ञानिक के समूह का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने में लगी हैं।

 

डॉ कमाल और थॉमस ने नितांत मौलिक चिंतन से जुड़ी इस समस्या का समाधान को देशज सोच से विकसीत किया। जबकि हमारे नवउदारवादी नेता इन समस्याओं के हल निजीकरण की कुंजी और अंग्रेजी शिक्षा को बेवजह बढ़ावा देने में तलाशते रहे हैं। जबकि हमारी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को पहले ही बाजार के हवाले किया जा चुका है। नतीजतन शिक्षा मौलिक सोच और गुणवत्ता का पर्याय बनने की बजाए,डिग्री हासिल कर केवल वैभव और विलास का जीवन व्यतीत करने की पर्याय भर रह गई है। ये हालात प्रतिभाशाली व्यक्ति के मौलिक चिंतन और शोध की गंभीर दृष्टि व भावना को पलीता लगाने वाले हैं। यहां हमें गौर करने की जरुरत है डॉ अब्दुल कलाम बेहद गरीबी की हालत में सरकारी पाठशालाओं से ही शिक्षा लेकर महान वैज्ञानिक बनकर पूरी दुनिया में मिसाइल मेन के नाम से जाने जाते हैं। यही नहीं उनकी माध्यमिक तक की शिक्षा मातृभाषा में हुई है। लिहाजा डॉ कलाम और श्रीमती थॉमस इस बात के प्रतीक हैं कि वैज्ञानिक उपलब्धियां शिक्षा को बाजार के हवाले कर देने से कतई संभव नहीं हैं ? इन्हें देशज तकनीक और मौलिक सोच के वातावरण में विकसित करने की जरुरत है। यह अच्छी बात है कि अग्नि-५ से लेकर आकाश मिसाइल के निर्माण में स्वदेशी तकनीक को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है।

 

प्रमोद भार्गव

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