पंजाब में आजकल जो चल रहा है ठीक नही चल रहा है। अकालीदल भाजपा की सरकार के सिर ड्रग्स व नशे के कारोबारियों का शरण देने की बात कही जा रही है और यह वह लोग कर रहें हैं जो कि एक लम्बे समय तक इसी राज्य में रहनुमा बने रहे और इस कारोबार में महत्वपूर्ण पक्ष बने रहे। आखिर यह कारोबार इतनी जल्दी कैसे उंचाईयों तक पहुंच गया और सरकार को पता नही चला, आकंडो की माने तो 7500 करोड का कारोबार ड्रग्स से होता है और यह ड्रग्स पाकिस्तान से आकर पंजाब में बेची जा रही हैं, जिसकी गिरफत में लगभग पंजाब का हर तीसरा युवक है। इतना बडा घंधा कुछ वर्षो में खड़ा नही हो सकता, इसके लिये बीज बोने वाले जिम्मेदार हैं। किन्तु सरकार अभी भी फसल काटने में लगी है , न कि उन हाथों को लगाम लगाने के लिये जिन्होने इस पंजाब को नशेड़ी पंजाब बना दिया। कांग्रेस पर यह आरोप लग रहा है और कांग्रेस दम भर रही है कि वह पंजाब की सियासत में एक बार फिर आ रही है । यहां यह बता देना उचित होगा इसी नशे के कारण पंजाब से कांग्रेस की सरकार का पलायन हुआ था और अब भाजपा अकाली सरकार की हालत भी ठीक नही हैं । केजरीवाल प्रयास में है लेकिन केजरीवाल की जो हालत दिल्ली में है वह पंजाब में नही होगी , इस बात पर बातों का बाजार गर्म हैं।
यह तो सच है कि पंजाब में वर्तमान सरकार आना एक टेढ़ी खीर सा है। पूरा माहौल पगड़ी के खिलाफ वैसे ही खड़ा है जैसे कि हरियाणा में जाठों में खिलाफ था। इसका मूल कारण वहां अन्य राज्यों से आये हुए लोगों की अधिकता है। सरदार तो विदेशों में मस्त है और अकूत सम्पदा कमा रहे हैं इसलिये अभी घर की याद नही आ रही है। घरों में जो लोग है वह वो सरदार नही है जो काम धंधे को आगे बढाये। वह आराम पसंद है और सारा खेती बारी से लेकर धंधों तक का काम लेबरों से कराते है जो अन्य राज्यों से आते हैं। उनके परिवारों की हर जरूरत का काम आज बिहार व अन्य राज्यों से आये लेबरों के हाथ में है जिसके कारण उनके रहने खाने से लेकर हर जरूरतों के लिये सरदार परिवार खड़ा रहता है । यह इसलिये भी जरूरी है कि जो आपके लिये इतना करता है उसके लिये उतना करना तो लाजिमी है ही। यह उसी तरह से पंजाब के लिये था जिस तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के लिये किया था। अब यही बाहरी लोग वहां सम्पन्न है और पगड़ी धारी लोग विदेशों में अपनी सम्पन्नता का डंका बजा रहें हैं ।
अब कांग्रेस की बात करते है तो सबसे ज्यादा शासन कांग्रेस ने किया और वह इस बात पर कभी ध्यान केंन्द्रित नही कर सके, पंजाब के संस्कार व मान सम्मान पर सीधे सीधे यह समझौता था जो उनके समर्थन से शुरू हुआ। गुरूद्वारों पर भी मनन करें तो पगड़ी वाले इसे भी विस्तार रूप् नही दे पाये । यदि कांग्रेस चाहती तो गुरूद्वारा संस्कृति पूरे देश में भाईचारे का सिद्धान्त पढा चुकी होती लेकिन उन्होने कलह पैदा की और उन लोगो को उनपर वरीयता दी जो इस व्यवस्था के दुश्मन थे। पंजाब जल रहा था और वह अपनी रोटी सेंक रहे थे । अलग राज्य बनाने के लिये इन कांग्रेसियों ने कितने सिखों के सर कलम करवा दिये लेकिन उसके बाद फिर इन्ही सिखों ने इन्हें इज्जत दी और वह उन्हें नशे के हवाले कर गये। आज जो पंजाब की स्थिति है उसमें आज की सरकार नही बल्कि वह सरकार दोषी है जिन्होने इतने बडे पैमाने पर पंजाब में ड्रग्स के लिये बाजार तैयार किया।
आम आदमी पार्टी अब इसी कांग्रेस का फायदा उठाना चाहती है। उसके वोट हथियाना चाहती है, उसे लगता है लोग कांग्रेस से नाराज होते है तो भाजपा में चले जाते है और भाजपा से नाराज होते है तो कांग्रेस में चले जाते है, लोगों के पास विकल्प नही है, नही तो गाडियों व उस पर लगे झंडे न बदलते, लोग बदलते , बल्कि वातावरण में परिवर्तन होता । आम आदमी पार्टी के नेताओं को संसदीय सीट जिताकर पंजाब में इस माहौल की आस जगी, कि परिवर्तन हो सकता है मगर कैसे इस बात को लेकर केजरीवाल परेशान हैं। जबकि पंजाब की जनता केजरीवाल की असलियत जान चुकी है और यह भी जानती है कि यह वह सख्स है जो चुनाव के समय कुछ , बाद में कुछ बोलते है। इस बात को खुद केजरीवाल ने ही प्रमाणित किया है।
भाजपा की बात करें तो वहां उसके लिये कुछ खोने जैसा नही है ,वह वहां दूसरे दर्जे की पार्टी थी और आज भी है वह अपने दम पर सरकार नही बना सकती । अगर बिहार की तरह प्रयास करती है तो पार्टी ओंधे मुंह गिरेगी। हां, अगर हरियाणा की स्थिति का जादू चला या हरियाणा में अच्छे संकेत दिखे तो पार्टी सत्ता में आ सकती हैं। लेकिन उसके लिये पहले समीकरणों को जानना होगा । क्योंकि जिस तरह की गलती खट्टर सरकार ने राम रहीम के मामले में जल्दबाजी करके दिखायी है उससे बचना होगा। पंजाब में डेरा सच्चा सौदा का वजूद उतना नही जितना कि हरियाणा में है और दूसरी बात यह कि अन्य राज्यों से आये लोगों का वोट पाने के लिये उस व्यवस्था से हटकर टिकटों का वितरण करना होगा जिससे लगे कि पगड़ी वालों की संख्या कम है । नही तो मुंह के बल गिरना तय है।
अब मूल बात , वह यह कि इस आगामी होने वाले चुनाव का मूलदर्शन क्या होगा और चुनौतियां कौन सी होगी? कांग्रेस की बात करें तो उनके लिये प्रताप बाजवा व अमरेन्दर सिंह का जंग ही काफी है लेकिन अब एक नयी किरण का पर्दापण हो रहा है, जिनका नाम रामेश्वर राजौरा है । गांधी परिवार के करीबी रहे राजौरा के छोटे बेटे को नियमों को ताक पर रखकर इंटक का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया जबकि उन्हें कांग्रेस में आये कुछ ही दिन हुए हैं। इसके अलावा राजौरा को पंजाब कांग्रेस में विशेष स्थान दिये जाने की तैयारी को अंतिम जामा पहनाये जाने की तैयारी लगभग पूर्ण हो गयी है। यहां यह बात बता देना उचित होगा कि यह वही राजौरा है जिन्होने स्व राजीव गांधी के साथ कंधा से कंधा मिलाकर राजनीति की थी और उनके निधन के बाद चले गये थे, लेकिन उन्होने गांधी परिवार से रिश्ता कायम रखा और पंजाब कांग्रेस के व कई मंत्रालयों के अहम पद पर रहे ।
आम आदमी में भी पगड़ी को किनारे कर किसी ऐसे चेहरे को लाने का प्रयास किया जा रहा है जिसे की वहां की जनता जो अन्य राज्यों की समर्थन दे सके , केजरीवाल इसके लिये सबसे बेहतर अपने को मानते है , उनको लगता है कि पंजाब में सरकार बनती है तो उनके नाम पर ही बनेगी और वह वहां के मुख्यमंत्री बनेगें तो उनके हाथों में पावर भी होगी दिल्ली की तरह हर बात के लिये केन्द्र का मुंह नही देखना पडेगा। फिर दिल्ली में सिसोदिया को पूरी तरह से दायित्व दे दिया जायेगा।
भाजपा ने अभी तक अपना कोई कार्यक्रम पंजाब को लेकर नही बनाया है, लेकिन उसका मानना है कि वर्तमान सरकार के प्रति जो माहौल है उसे सुघारा जा सकता है इसके लिये कुछ और ठोस कदम उठाने होगें। लेकिन यह कदम तभी उठेंगें जब राष्ट्रीय ईकाई की घोषणा हो जायेगी। नये अध्यक्ष ही अपनी बात रखेगें। फिलहाल पंजाब में जहां तक चुनौतियों की बात है तो नशे को लेकर जहां अकालीदल भाजपा गठबंधन की सरकार मुश्किलों में है वही कांग्रेस के अंतद्वन्द्र व राजौरा के आगमन से भीतर ही भीतर त्रिकोणीय मुकाबला चल रहा है । आम आदमी पार्टी इस चुनाव में क्या पायेगी यह समय ही बतायेगा लेकिन पंजाब की जनता इतनी मूर्ख नही है कि वह केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने व पंजाब को हडपने की नीति को न समझ सके।
कोशिश तो इसी दिशा में है -कि वे सीधे प्रधान मंत्री ही बन जाये. स्वप्न देखने में कोई हर्ज नहीं – उन्हें साकार करने के लिए उचित कदम उठायें. प्रधान मंत्री से मतभेद रखना ठीक है लेकिन अपनी भाषा तो ठीक रखनी चाहिए. ईश्वर से प्रार्थना है की उन्हें सद्बुद्धि दे.
अभी समय बहुत बाकी है कई समीकरण बनेंगे व बिगड़ेंगे , कांग्रेस ने अमरिंदर को कमान सौंप दी है इसलिए वह एक बार फिर पगड़ीधारी सिखों में आधार बनाएंगे ऐसी आशा है , केजरीवाल की राजनीति अब फ्लॉप हो गयी है जनता एक बार उनके झांसे में आ कर देख चुकी है ,’आप ‘ के कार्यकर्ताओं के करतब भी जनता को सचेत किये जा रहें हैं ,भा ज पा के लिए तो कोई ख़ास जगहबाँटि नहीं क्योंकि अकालियों के साथ रहकर वह काफी बदनाम हो चुकी है वह उन पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकी , और स्वंतत्र लड़ कर तो तीसरे चौथे स्थान पर जाएगी शेष अभी तो बिसात बिछनी है , माहोल क्या रहता है , आज की राजनीती में कौनसी वारदात वोटों का ध्रुवीकरण कर दे कोई भी पूर्व घोषणा नहीं कर सकता , क्योंकि आजकल चुनाव जितने के लिए भारतीय राजनीति में दलों ने यह नया बेजोड़ हथकंडा अपनाया है और इसमें कोई भी पीछे नहीं है