कविता

अस्मिता

vasant
अप्रिय सदा अभिमान मुझे,पर
प्राणों से भी प्रिय स्वाभिमान।
मुझे मिले सम्मान नहीं,पर
रक्षित रहे आत्मसम्मान ।।
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मिथ्या-गौरव नहीं चाहिये,
मुझे हो जीने का अधिकार ।
चाहे मुझे मिले न आदर,
क्यों दे कोई तिरस्कार।।
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चाहे सुयश कभी न पाऊँ,
अपयश रहे सदा ही दूर।
नहीं प्रशंसा की इच्छा,पर
निन्दा मन को करे न चूर।।
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निज कुटिया ही प्यारी मुझको,
भव्य भवन की चाह नहीं।
मुझको प्रिय स्वदेश ही अपना,
पर विदेश का स्वर्ग नहीं।।
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सन्तति की ममता ही मुझको
खींच यहाँ ले आई है।
स्वस्थ सुखी ये रहें सदा,
बस यही मुझे सुखदायी है।।
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मर्यादा में रहें सदा ही,
सादा जीवन उच्च विचार।
मातृभूमि को कभी न भूलें,
चाहें विश्व बने परिवार।।
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– शकुन्तला बहादुर