दूरियों को दूर कर के , दूर के सब पास आए ।
नित्य बातें हो रही हैं , मन सभी का हैं लुभाए ।।
क्या बड़े , युवजन और बच्चे , सभी तो डूबे हुए हैं ।
लिखते ,पढ़ते , मुस्कुराते , जैसे मूवी देखते हैं ।।
पास में जो सदा रहते, बात उनसे हो न पाए ।
व्यस्त सब इतने कि उनसे,बात का समय न पाएँ।।
व्हॉट्सैप ने कर दिया, सबको बेग़ाना किस क़दर ।
भरे से परिवार में भी, नहीं कोई हमसफ़र ।।
अनजाने मे, भूला जाता, यह अनछुआ दृष्टिकोण जो ठोस संबंधों को बिसार कर दूरियाँ बढाता है। क्या जिस जंगल से मनुष्य निकला था, वहीं पर वापस जा रहा है?
किसी संत ने कहा है: आगे बढें, आगे बढें, हम इतने ऐसे आगे बढें?
कि स ब के पी छे र ह ग ए।
जी, हाँ!
सब के पीछे रह गए।
सुन्दर संपृक्त कविता-जैसे बीज में ऊगा हुआ वृक्ष।
दूर के ढोल लुभावने लगते हैं तो अपने पास के ढोल की थाप क्योंकर सुनाई देगी जो रोजाना सुनते हैं? तिस पर आधुनिकता पर लिखे अच्छे काव्य-भाव हैं|
अनजाने मे, भूला जाता, यह अनछुआ दृष्टिकोण जो ठोस संबंधों को बिसार कर दूरियाँ बढाता है। क्या जिस जंगल से मनुष्य निकला था, वहीं पर वापस जा रहा है?
किसी संत ने कहा है: आगे बढें, आगे बढें, हम इतने ऐसे आगे बढें?
कि स ब के पी छे र ह ग ए।
जी, हाँ!
सब के पीछे रह गए।
सुन्दर संपृक्त कविता-जैसे बीज में ऊगा हुआ वृक्ष।
क्या खूब – नयी व्यस्तता – नयी पहचान