आज मैं महाराष्ट्र के शहर लातूर के पास स्थित एक गांव में हूं, जिसका नाम ‘रामेश्वर’ है। कल दोपहर जहाज से हम दिल्ली से हैदराबाद आए और हैदराबाद से दिन भर कार-यात्रा करते हुए रामेश्वर पहुंचे। रामेश्वर हम इसलिए आए कि पुणे के हमारे मित्र डॉ. विश्वनाथ कराड़ का यह जन्म-स्थल है और यहां आज वे रामनवमी का त्यौहार मना रहे हैं। रामेश्वर में हैदराबाद के निजाम का शासन रहा है। लगभग ढाई सौ साल पहले निजाम और पेश्वाओं की लड़ाई इसी गांव में हुई थी। गांव का मंदिर तोड़ दिया गया। उसके सिर्फ दो पत्थर बचे हुए थे। लोग उन्हीं पर सिंदूर लगाकर उनकी पूजा करते रहे थे। मंदिर के बड़े-बड़े पत्थरों से पास में ही एक मस्जिद खड़ी कर दी गई थी। मस्जिद भी समय के थपेड़ों से टूट-फूट गई थी।
डा. कराड़ ने अपने इस गांव में अपने पैसों से ही एक अच्छा-सा राम मंदिर बनवा दिया और उसके पास ही उस टूटी-फूटी मस्जिद को भी फिर से खड़ा कर दिया। इन दोनों के बीच से एक उथली-सी नदी बहती है। इस नदी पर उन्होंने एक सेतु-सा बनवा दिया। इस सेतु का नाम उन्होंने राम-रहीम मानवता सेतु रखा और आज के दिन हमसे इसका उदघाटन करवाया।
उदघाटन करने वालों में प्रसिद्ध वैज्ञानिक और नालंदा विवि के कुलपति डा. विजय भटकर तथा पूर्व मंत्री और प्रखर बुद्धिजीवी श्री मुं. आरिफ खान थे। इस भव्य सेतु में दुनिया के लगभग सभी धर्मों के संबंध में आकर्षक चित्र लगे हैं। डा. कराड़ ने आरिफ भाई और मेरा बड़ा मार्मिक, औपचारिक और भव्य सम्मान भी किया। बिना बताए हुए ही। सम्मान-समारोह दिव्य था। हम दोनों के लिए अपूर्व अनुभव भी!
लगभग दो घंटे तक सैकड़ों स्त्री-पुरुष और बच्चे नाचते-गाते रहे। रामेश्वर के इस राम-मंदिर में लग रहा था कि आज भगवान राम ही उतर आए हैं। मराठी भाषा के भजनों और कथा ने भाव-विभोर कर दिया। डा. कराड़ और उनके सुयोग्य पुत्र राहुल, जो भी काम करते हैं, वह उच्च कोटि का होता है। यहां राम, लक्ष्मण और सीता की जो मूर्तियां हैं, उनकी सुंदरता देखते ही बनती है। डा. कराड़ के इस आयोजन में दिल्ली से मौलाना आजाद के पोते और सिद्धहस्त लेखक फिरोज बख्त तथा प्रसिद्ध वकील श्री शीराज़ कुरैशी और मेरठ से इतिहास के विद्वान प्रो. लारी आजाद भी आए हुए थे।
मैं देख रहा था कि गांव की उस भीड़ में कई मुसलमान चेहरे भी थे। सभी राम-कीर्तन का आनंद ले रहे थे। मुसलमान यदि मूर्तियों पर फूल चढ़ा रहे थे तो हिंदू और सिख जैनुद्दीन चिश्ती की मजार पर अजमेर शरीफ की चादर चढ़ा रहे थे। लग रहा था कि सारा ‘रामेश्वर’ ही भक्ति रस में डूब गया है। ‘एकं सद्विप्रा, बहुधा वदंति’ याने ईश्वर एक ही है, सज्जन लोग उसे कई तरह से भजते हैं, यह उक्ति आज चरितार्थ हो रही थी।