नशा मुक्त भारत बनाने की बड़ी चुनौती

अंतर्राष्ट्रीय नशा एवं मादक पदार्थ निषेध दिवस (26 जून) पर विशेष
चिंता का सबब बनता युवा सोच पर नशे का ग्रहण
– योगेश कुमार गोयल

विश्व के अनेक देशों में लोगों में और खासकर युवाओं में नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए ही हर साल 26 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय नशा एवं मादक पदार्थ निषेध दिवस’ मनाया जाता है। जहां तक भारत की बात है, चिंता का विषय यह है कि अब यह प्रवृत्ति केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी नशे का जाल फैलता जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में अफीम, चरस, गांजा, हेरोइन आदि के अलावा इंजेक्शन के जरिये लिए जाने वाले मादक पदार्थों का भी इस्तेमाल होने लगा है। वास्तव में मादक पदार्थों का सेवन अब मानवता के प्रति सबसे बड़े अपराध का रूप धारण कर चुका है। रईसजादे युवक-युवतियों की रेव पार्टियां तो नशे का भयावह आधुनिक रूप है, जहां राजनीतिक संरक्षण के चलते प्रायः पुलिस भी हाथ डालने से बचती है। हालांकि कभी-कभार रेव पार्टियों पर छापा मारकर नशे में मदमस्त लड़के-लड़कियों को गिरफ्तार किया जाता रहा है, जिससे पता चलता रहा है कि देश का आज कोई भी महानगर ऐसा नहीं है, जहां ऐसी रेव पार्टियां रईसजादों की रोजमर्रा की जीवनशैली का हिस्सा न हों। वास्तव में रेव पार्टियां धनाढ़य बिगड़ैल युवाओं की नशे की पार्टियों का ही आधुनिक रूप हैं। कोकीन हो या ऐसे ही अन्य मादक पदार्थ, जिनमें गंध नहीं आती, रसूखदार परिवारों के बिगड़े हुए युवाओं का मनपसंद नशा बनते जा रहे हैं। इस बात से बेखबर कि ये तमाम मादक पदार्थ सीधे शरीर के तंत्रिका तंत्र पर हमला करते हैं और शरीर को भयानक बीमारियों की सौगात देते हैं, ऐसे युवा चंद पलों के मजे के लिए इनके गुलाम बन जाते हैं।
युवाओं को मादक पदार्थों के करीब लाने में इंटरनेट की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत में नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में करीब चालीस फीसदी कॉलेज छात्र हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या भी काफी ज्यादा है। देश के अनेक कॉलेजों में तो अब स्थिति यह है कि बहुत से कॉलेजों के अंदर ही आसानी से नशीले पदार्थ उपलब्ध हो जाते हैं। स्कूल-कॉलेजों के छात्र अक्सर अपने साथियों के कहने या दबाव डालने पर या फिर मॉडर्न दिखने की चाहत में इनका सेवन आरंभ करते हैं। कुछ युवक मादक पदार्थों से होने वाली अनुभूति को अनुभव करने के लिए, कुछ रोमांचक अनुभवों के लिए तो कुछ मानसिक तौर पर परेशानी अथवा हताशा की स्थिति में इनका सेवन शुरू करते हैं। मानव जीवन की रक्षा के लिए बनाई जाने वाली कुछ दवाओं का उपयोग भी लोग अब नशा करने के लिए करने लगे हैं।
देश में नशे के फैलते जाल का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि मादक पदार्थ न सिर्फ मानव शरीर की सुंदरता को नष्ट कर शरीर को खोखला बनाते हैं बल्कि इनका उपयोग युवा पीढ़ी की क्षमताओं को नष्ट कर उनकी सृजनशीलता को भी मिटा रहा है तथा देश के सामाजिक और आर्थिक ढ़ांचे को पंगु बना रहा है। एक बार मादक पदार्थों की लत लग जाए तो व्यक्ति इनके बिना रह नहीं पाता। यही नहीं, उसे पहले जैसा नशे का प्रभाव पैदा करने के लिए और अधिक मात्रा में मादक पदार्थ लेने पड़ते हैं। इस तरह व्यक्ति इनका गुलाम बनकर रह जाता है। अधिकांश लोगों में गलत धारणाएं विद्यमान हैं कि मादक पदार्थों के सेवन से व्यक्ति की सृजनशीलता बढ़ती है और इससे व्यक्ति में सोच-विचार की क्षमता, एकाग्रता तथा यौन सुख बढ़ता है लेकिन वास्तविकता यही है कि नशे के शिकार लोगों की सोच-विचार की क्षमता और इसकी स्पष्टता खत्म हो जाती है तथा उनके कार्यों में भी कोई तालमेल नहीं रहता। इनके सेवन से कुछ समय के लिए संकोच की भावना जरूर मिट जाती है लेकिन अंततः इससे शरीर की सामान्य कार्यक्षमता में गिरावट आती है। दरअसल नशीली दवाएं या नशीले पदार्थ ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं, जो हमारे शरीर की कार्यप्रणाली को बदल देते हैं।
वर्ष 1993 में प्रकाशित अपनी पुरस्कृत पुस्तक ‘मौत को खुला निमंत्रण’ में मैंने विस्तार से बताया है बताया है कि कोई भी रसायन, जो किसी व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक कार्यप्रणाली में बदलाव लाए, मादक पदार्थ कहलाता है और जब इन मादक पदार्थों का उपयोग किसी बीमारी के इलाज या बेहतर स्वास्थ्य के लिए दवा के तौर पर किया जाए तो यह मादक पदार्थों का सही उपयोग कहलाता है लेकिन जब इनका उपयोग दवा के रूप में न होकर इस प्रकार किया जाए कि इनसे व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचे तो इसे नशीली दवाओं का दुरूपयोग कहा जाता है। मादक पदार्थों के सेवन का आदी हो जाने पर व्यक्ति में प्रायः कुछ लक्षण प्रकट होते हैं, जिनमें खेलकूद और रोजमर्रा के कार्यों में दिलचस्पी न रहना, भूख कम लगना, वजन कम हो जाना, शरीर में कंपकंपी छूटना, आंखें लाल, सूजी हुई रहना, दिखाई कम देना, चक्कर आना, उल्टी आना, अत्यधिक पसीना आना, शरीर में दर्द, नींद न आना, चिड़चिड़ापन, सुस्ती, आलस्य, निराशा, गहरी चिन्ता इत्यादि प्रमुख हैं। सुई के जरिये मादक पदार्थ लेने वालों को एड्स का खतरा भी रहता है।
देशभर में नशे का अवैध व्यापार तेजी से फल-फूलने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि नशे के सौदागरों के लिए मादक पदार्थों की तस्करी सोने का अंडे देने वाली मुर्गी साबित हो रही है। विश्व की कुल अर्थव्यवस्था का 15 फीसदी हिस्सा यही व्यापार रखता है। भारत से मादक पदार्थों की तस्करी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, बर्मा, ईरान आदि देशों के जरिये होती रही है और अवसर मिलते ही ये मादक पदार्थ तस्करी के जरिये पश्चिमी देशों में पहुंचा दिए जाते हैं। हालांकि भारत इस अवैध व्यापार में तस्करों के लिए केवल एक पड़ाव का काम करता है लेकिन इसके दुष्प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि इस अवैध व्यापार का तस्करी, आतंकवाद, शहरी क्षेत्र के संगठित अपराध तथा आर्थिक एवं व्यावसायिक अपराधों से काफी करीबी रिश्ता है। इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भौगोलिक स्थिति के कारण भारत नशीली दवाओं की तस्करी के लिए सबसे अच्छा रास्ता बन गया है।
हालांकि नशे के अवैध व्यापार पर लगाम कसने के लिए हमारे यहां अन्य देशों के मुकाबले बहुत कड़े कानून हैं, फिर भी अपराधी अक्सर कानून की कुछ खामियों की वजह से बच निकलते हैं और यही कारण है कि मादक पदार्थों का अवैध व्यापार भारत में निरंतर फल-फूल रहा है। आज युवा पीढ़ी जिस कदर मादक पदार्थों की शिकंजे में फंस रही है, उसके मद्देनजर समाज का कर्त्तव्य है कि वह युवा वर्ग का मार्गदर्शन करते हुए उसे उचित मार्ग दिखलाए और गलत मार्ग पर चलने से रोके। ऐसे कार्यों को केवल सरकार के ही भरोसे छोड़ देना उचित नहीं बल्कि समाज को भी इस दिशा में ठोस पहल करनी होगी।

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