इतिहास का एक बहुत बड़ा वाकजाल : नहीं किया कभी भारत ने दूसरे देश पर हमला ?

भारत के विषय में अक्सर यह कहा जाता है कि यह वह देश है जिसने कभी दूसरे देश की संप्रभुता को हड़पने या समाप्त करने के उद्देश्य से हमला नहीं किया । यह बात तो सही है परंतु इसे कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है जैसे भारत को हर स्थिति परिस्थिति में मौन साधे रखना है । अगले वाला चाहे जो करे, परंतु भारत को अपना धैर्य नहीं खोना है । वास्तव में भारत का इस्लामीकरण कैसे हो और कैसे इसका वैदिक / हिंदू स्वरूप समाप्त हो जाए ? – जो लोग इस षड्यंत्र में लगे हुए हैं , उन्हीं के द्वारा रचा गया यह एक ‘वाकजाल’ है कि भारत ने कभी किसी देश पर हमला नहीं किया और इसलिए भारत के आर्य हिंदू लोगों को चुपचाप अपना कलेजा खिलाते रहना चाहिए। जिसमें भारत का हिंदू समाज यदि कराह भी पड़े तो भी कहा जाता है कि ऐसा करके तुमने अपनी मूल भावना और चेतना के विरुद्ध कार्य किया है , तुम्हें कराहना भी नहीं चाहिए था । बस , चुपचाप कलेजा निकाल कर दे दो या हमें निकाल लेने दो – यही भारतीय संस्कृति है।इसका अभिप्राय है कि अत्याचार को भी हिंदू मौन रहकर सहते रहें , तभी भारतीय संस्कृति की रक्षा हो पाएगी अन्यथा नहीं । सोच रखने वाले लोगों का मानना है कि भारत ने क्योंकि किसी दूसरे देश पर कभी हमला नहीं किया , इसलिए भारत के हिंदू समाज को भी दूसरों पर कभी भी किसी भी परिस्थिति में हमला नहीं करना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश के इतिहास का सत्यानाश करने वाले लोगों की ओर से फैलाए गए ऐसे वाकजालों में फंसकर लोग पता नहीं क्या-क्या लिख देते हैं और क्या से क्या बोल देते हैं ? सोशल मीडिया पर ही मैं देख रहा था कि एक महोदय ने तो यह भी लिख दिया कि पिछले एक लाख वर्ष में भारत ने कभी किसी देश पर हमला नहीं किया। उन महोदय की बात को बढ़ाते हुए मैं कहता हूँ कि जबसे सृष्टि बनी है तबसे आज तक भारत ने कभी किसी देश पर हमला नहीं किया , परंतु जितना यह सत्य है उतना ही यह भी सत्य है कि दुष्ट व राक्षसों का संहार करने का संकल्प भी भारत ने ही लिया है । अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारत ने राक्षसों के गढ़ों पर एक बार नहीं अनेकों बार आक्रमण किए हैं । मोदी सरकार द्वारा की गई ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ इसका ताजा उदाहरण है ।यदि यह दिखाया जाता है कि भारत ने कभी किसी देश पर हमला नहीं किया तो इसी के साथ इस सत्य को भी दिखाना चाहिए कि भारत ने सदा राक्षसों का संहार किया है। हमारा मानना है कि ऐसा लिखने से ही भारत का इतिहास सही स्वरूप में स्थापित हो पाएगा।जब कोई आपसे यह कहे कि भारत ने कभी किसी पर हमला नहीं किया तो उसे बताओ कि रामायण काल में इसने रावण को मारा , महाभारत के समय में इसने जरासंध , कंस , दुर्योधन जैसे अनेकों राक्षसों का संहार किया। जब सिकंदर ने इस देश पर आक्रमण किया तो चंद्रगुप्त और चाणक्य की जोड़ी ने उस समय शत्रु संहार की बड़ी योजना पर काम करते हुए देश की रक्षा की थी । जब अरबों का आक्रमण भारत पर हुआ तो 720 ईसवी में भारत के तत्कालीन शासकों ने अपना एक संघ निर्मित किया। आबू पर्वत पर सबने मिलकर एक यज्ञ का आयोजन किया ।शंकराचार्य जी ने सबको यह शपथ दिलवाई कि सब खड़े हो जाओ , शत्रु का संहार करना है और जो लोग मां भारती का चीरहरण करने के लिए बढ़े चले आ रहे हैं , उनको मार भगाना है। नागभट्ट प्रथम उस संघ या संयुक्त मोर्चा के नेता चुने गए और सबने मिलकर राक्षसों का संहार करने के लिए सिंध से लेकर ईरान तक सारे राक्षसों को भगाने का महत्वपूर्ण कार्य किया । वह भारत की राक्षससंहारिणी सेना ही थी जिसने 724 ई0 में इस बड़े कार्य को करके दिखाया । लगभग इसी समय बप्पा रावल ने भी नागभट्ट प्रथम के साथ मिलकर अपनी शत्रु विनाशकारिणी सेना सजाई और जो लोग भारत भूमि पर अवैध अतिक्रमणकर्त्ता के रूप में घुस आए थे उन्हें मारपीट कर या उनका संहार कर ईरान की सीमाओं तक जाकर खदेड़ा था । यदि इतिहास के इन सत्यों को भी उद्घाटित और प्रस्तुत किया जाने लगे तो पता चलेगा कि भारत ने 1 लाख वर्ष में नहीं बल्कि सृष्टि के प्रारंभ से लेकर अब तक कितनी ही बार राक्षसों का संहार करने के लिए अपनी सेनाएं सजाई हैं । हमारा अहिंसा और भाईचारे का संदेश सदा उन लोगों के लिए है जो अहिंसा और भाईचारे में विश्वास रखते हैं । जो छल- कपट या धोखे से बात करते हैं और अपने जाल में फंसा कर मानवता की हत्या करते हैं या मानवता के विरुद्ध अपराध करते हैं – उनसे समझ लो कि हमारा पहले दिन से वैर है।अतः मानवता के हितों की रक्षा के लिए और मानव मूल्यों को बचाने के लिए, धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए भारत ने सदा हथियार उठाए हैं और सदा उन राक्षसों का संहार करना अपना नैतिक धर्म और कर्तव्य समझा है जो मानवता को और मानवीय मूल्यों को किसी भी प्रकार से आघात पहुंचाते हैं। अब इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि भारत ने कभी किसी देश पर हमला क्यों नहीं किया ? इसका उत्तर यह है कि संपूर्ण भूमंडल पर शासन आर्यों का ही होने के कारण आर्य लोगों को कभी किसी देश पर हमले की आवश्यकता नहीं हुई । क्योंकि वह यह मानते और जानते थे कि संपूर्ण भूमण्डल हमारा है। संपूर्ण भूमंडल वासी हमारे परिवार के सदस्य है। सर्वत्र हमारे ही लोग बसे हुए हैं ।इसलिए मारना , काटना किसको है और किसके लिए और क्यों हो ? आप तनिक ध्यान दें कि सात दीपों – महाद्वीपों की कल्पना किसके पास है – उत्तर है – ‘हमारे पास ।’ संपूर्ण वसुधा को अपना परिवार मानने की भावना किसके पास है – इसका भी उत्तर है – ‘हमारे पास।’जब मारना – काटना , लूटना , हत्या , डकैती , बलात्कार करना किसी व्यक्ति का उद्देश्य हो जाता है तो वह अपना पराया कुछ नहीं देखता , उसे अपने इन सब कामों को अंजाम देने के लिए दूसरों पर हमला करना ही होता है।सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया , की प्रार्थना किसके चिंतन में है – उत्तर है हमारे चिंतन में । अहिंसा , सत्य और अपरिग्रह को जिसने अपने मूल चिन्तन में स्वीकार किया है और जिसके बच्चों को बचपन में ही सिखा दिया जाता है कि इन तीनों चीजों को याद रखकर चलना , जीवन निश्चय ही सुखद होगा। उस देश से यह कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वह दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करने के उद्देश्य से किसी पर हमला करेगा ? हमें यह तो बताया जाता है कि तुम्हें हमला नहीं करना है या तुम्हें मौन रहकर अपना कलेजा खिलाते रहना है , परंतु यह नहीं बताया जाता कि हम अपनी प्रार्थना में कहते हैं कि “मन्युरसि मन्युर्मयि देहि ” अर्थात हे ईश्वर ! तुम दुष्टों का संहार करने वाले मन्यु को धारण करने वाले हो , मुझे भी वही मन्यु अर्थात अपना तेजस्वरूप प्रदान करो , जिससे मैं राक्षसों का संहार कर सकूं।इस बात से पता चलता है कि राक्षसों या मानवता के शत्रुओं का विनाश करना भारत का मौलिक संस्कार है। अपने इस मौलिक संस्कार की प्राप्ति के लिए इसने प्राचीन काल से अब तक अनेकों युद्ध किये हैं और ऐसे अनेकों राक्षसों का संहार किया है ,जिनके कारण मानवता ‘त्राहिमाम’ कर उठी थी। धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए इसने धर्म युद्ध किए हैं , अधर्म के नहीं। अब बात स्पष्ट होनी चाहिए और इतिहास इस प्रकार लिखा जाना चाहिए कि भारत ने सदा राक्षसों के संहार के लिए अपनी सेनाएं सजाई हैं । इस झूठ को बोलने से कोई लाभ नहीं कि भारत ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया , क्योंकि इस झूठ ने हमारे भीतर कायरता उत्पन्न की है , और हमें स्वयं ही राक्षस की शक्तियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया है । हिंसा और डकैती या दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करने की भावना वहां होती है जहां लोगों के भीतर यह भावना मर जाती है कि जिसके साथ मैं ऐसा करने जा रहा हूँ वह मेरा ही है । जिन लोगों ने भारत के साथ हिंसा , डकैती , लूट, हत्या , बलात्कार व नरसंहार की घटनाएं कीं उनके भीतर पहले से ही यह भाव था कि ‘यह मेरे नहीं है’ , ‘यह मेरे शत्रु हैं’ । ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ‘- उन्होंने अपनी जुबान से तो यह कहा , परंतु उनके अंतर में मजहब की छुरी छुपी रही और वह इतनी भयानक हो गई कि उसने संसार में करोड़ों – अरबों लोगों को काट डाला। कितनी मूर्खतापूर्ण धारणा है कि वह मजहब जो भाईचारे और प्रेम का मजहब कहा जाता है उसने लाखों-करोड़ों नहीं अरबों लोगों को संसार में काटा है और जिसने कभी चींटी नहीं मारी , जिसने कभी दूसरे देश पर हमला नहीं किया , जिसने कभी दूसरों के यहाँ जाकर लूट , हत्या , डकैती बलात्कार के अपराध नहीं किए , वह ‘घृणा फैलाने वाला’ धर्म है ?

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  1. राकेश कुमार आर्य जी, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आपके प्रश्न “नहीं किया कभी भारत ने दूसरे देश पर हमला ?” ही नहीं “नमक की कीमत चुकाने” जैसे साधारण वाक प्रकार में घिनौना षड्यंत्र आज इक्कीसवीं सदी में कोई मनोवैज्ञानिक ही समझ सकता है जिसे आपने बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया है|

  2. भारत का आज जो कांसेप्ट है, वह कब था? भारत एक राष्ट्र के रूप में कभी उभरा था क्या?अगर हाँ,तो कब ?भारत के कुछ राजाओं ने अफगानिस्तान के आगे तक तो कब्जा किया हीं था. ऐसे भी आज का भारत सदियों तक छोटे राज्यों में बंटा रहा है, जिसके शासकों को आपस में हीं लड़ने से फुर्सत नहीं होती थी, दूसरों पर क्या चढ़ाई करते? शक, हूण या मुस्लिम भी भारत में यहाँ के राजाओं के बुलावे पर Hindustan आये थे. भारत का इतिहास असल में हमारी गलतियों ,बल्कि हमारे शासकों के स्वार्थ की कहानी है. प्रवक्ता.कॉम के पन्नों पर मैंने आज से करीब सात साल पहले एक लेख भी लिखा था,” भारत का इतिहास : हमारी गलतियों की कहानी”. असल में उस लेख का शीर्षक भी होना चाहिए था,भारत का इतिहास हमारे स्वार्थों की कहानी.

    • रमश सिंह जी, आप कहते हैं “भारत का आज जो कांसेप्ट है, वह कब था? भारत एक राष्ट्र के रूप में कभी उभरा था क्या?”

      विभिन्नता में एकता का नारा लगाते कभी सत्ता में बैठे उन षड्यंत्रकारी लोगों से पूछो जिन्होंने तथाकथित स्वतंत्रता के उपरान्त राष्ट्र को एक सूत्र में नहीं बांधा और उस पर बांची “एकता” अर्थात उस अलौकिक भारतीय संस्कृति को फिर से पनपने ही नहीं दिया! आज इक्कीसवीं सदी में जब राष्ट्र की सीमाएं निश्चित हैं, भारत कई प्रकार से बंटा हुआ है| क्यों?

      आपके उत्तर की अपेक्षा नहीं है क्योंकि अश्वमेध यज्ञ के घोड़े जिनका उल्लेख केवल इतिहास की पुस्तकों में देखा जा सकता है, आज भौतिक सीमाओं में सिमट कर रह गए हैं!

  3. आपका एक और हृदयस्पर्शी, तथ्यात्मक लेख। दूर दृष्टि से कियागया इतिहास का अवलोकन। इतिहास को जो नहीं जानता वह समाज का दिशादर्शन करने का पात्र नहीं। इतिहास की समझ के बिना सही या गव का निर्ण लेने की योयता प्राप्त नहीं.होती। अतः सही इतिहास का अध्ययन आवश्यक है। उसे सामने लाने में आपका योगदान अभिनन्दनीय है।

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