उत्तराखंड में आये भीषण सैलाब में अब तक ५००० से अधिक लोगों के मरने की आशंका व्यक्त की जा रही है । हांलाकि जहां तक राज्य सरकार के आंकड़ों का प्रश्न हैं तो सरकार ने मात्र ६८० लोगों के मरने की पुष्टि की है । इस पूरी घटना की भयावहता को यदि गौर से देखें तो शायद मरने वालों की संख्या १०,००० से भी ज्यादा हो सकती है । ऐसे में राज्य सरकार के ये आंकड़े कहीं से भी सत्यपरक तो नहीं कहे जा सकते । बहरहाल किसी भी देश अथवा प्रदेश में आयी इस प्रकार की आपदा पूरी मानवता को झकझोर कर रख देती है । इन भीषण झंझावातों के काल में ही देश की एकता,मानवीय मूल्यों एवं सेवा कार्यों की असली परख होती है । जहां तक इस विनाश लीला का प्रश्न हैं तो भारतीय सेना ने एक बार फिर से अपने सेवा कार्यों से पूरे राष्ट्र के समक्ष मिसाल पेश की है । ऐसे ही कुछ सेवा कार्यों की आशा हमें राजनेताओं से भी होती है । जनता के मतों से संसद तक पहुंचे नेताओं का प्रथम दायित्व जनता के प्रति ही होता है । इस पूरे विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हमारे मान्य नेतागण कम से कम इन मुद्दों को सियासत से दूर रखें । किंतु जहां तक वर्तमान सियासी परिप्रेक्ष्यों का प्रश्न है तो हमारे गणनायक इस मुद्दे पर भी सियासत से बाज नहीं आ रहे हैं , जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण एवं निंदनीय कृत्य माना जायेगा ।
आज ही भोपाल से प्रकाशित समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका पढ़ रहा था कि पृष्ठ सत्रह पर प्रकाशित एक चित्र ने बरबस ही ध्यान आकर्षित कर लिया । नेता तो नेता है, लेकिन काम में फर्क करे क्या कहीये शीर्षक से प्रकाशित इन चित्रों ने भारतीय राजनीति के विकृत चेहरे को उजागर कर दिया हैं। इन चित्रों में सर्वप्रथम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी को विशेष चार्टड विमान से आपदा स्थल का जायजा लेते दिखाया गया है तो दूसरे चित्र में थाईलैंड की प्रधानमंत्री यिंगलुक शिनवात्रा को अक्टृबर २०११ में आई बाढ़ के वक्त घुटनों तक कीचड़ और पानी में उतरकर जनता के दु:ख दर्द बांटते दिखाया गया है । ऐसे ही कुछ अन्य चित्रों में क्रमश: बराक ओबामा (अमेरिका), एंजेला मार्केल (जर्मनी), तान मुईउद्दीन यासीन (मलेशिया) एवं जूलिया गिलार्ड (ऑस्ट्रेलिया) को प्राकृतिक आपदा स्थल पर पहुंच कर लोगों से मुलाकात करते दिखाया गया है । क्या हम अपने भारतीय नेताओं से ऐसी अपेक्षा कर सकते है ? अथवा हमारे राजनेताओं की योग्यता इन राष्ट्राध्यक्षों से ज्यादा है? विचार करिए प्रश्न विचारणीय है । वास्तव में भ्रष्टाचार,अनाचार और घोटालों में आकंड़ों डूबी हमारी राजनीति निकृष्टता के न्यूनतम पायदान पर जा पहुंची है । वो पायदान जहां शहादत की श्रेणियां निर्धारित की जाती हैं, वो पायदान जहां चिताओं पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती है,वो पायदान जहां सेकुलर का अर्थ होता है राष्ट्र का अपमान । बड़े हैरत की बात है कि जब इस दैवीय आपदा से पूरी मानव जाति त्राहिमाम कर रही है, हमारे यहां सियासत बदस्तूर जारी है । अभी हाल ही में समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दो दिनों में उत्तराखंड से १५,००० गुजरातियों को सुरक्षित बाहर निकाला ।अपनी रेस्क्यू टीम के साथ देहरादून पहुंचे मोदी का ये कृत्य सराहनीय एवं मिसाल सरीखा है । इन सबके बावजूद कई सेकुलर लोगों को उनका ये कृत्य वोटबैंक की राजनीति लग रहा है । मोदी के इस दौरे को कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने आपदा पर्यटन के नाम पर सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने का माध्यम कहकर खारिज कर दिया तो दिग्विजय सिंह ने इसे सेना के जवानों के बचाव कार्य में रूकावट करार दिया है । अब आप ही सोचिये,इस तरह की टिप्पणियां क्या प्रदर्शित करती हैं ? क्या ये मानसिक दिवालियेपन का चरम बिन्दु नहीं है ? जहां तक प्रश्न हैं मोदी के कृत्य का तो वो नि:संदेह प्रशंसनीय है । ये समय राजनीति का नहीं वरन आपदाग्रस्त लोगों के आंसू पोंछने का है । ये वक्त उत्तराखंड की पहाडिय़ों में फंसे हजारों लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का है । जहां तक वाणी-व्यायाम का प्रश्न है तो उसके लिए तो पूरा जीवन पड़ा है । आशा है कि ये बात कांग्रेसी दिग्गजों को समझ आ जाएगी । वस्तुत: ये समय दलगत एवं वोटपरक राजनीति से ऊपर उठकर सामर्थनुसार सहायता करने का है । जहां तक प्रश्न हैं मानवीय मूल्यों का तो आपदा पर सियासत नि:संदेह एक निंदनीय कृत्य है ।
आपदा पर सियासत करना नेताओ की आदत मे शुमार है. उन्हे सिर्फ अपना मतलब साधना आता है. रही बात समाज सेवा की तो उन्हे इससे कोई खास मतलब नही होता. उत्तराखन्ड मे आये भयावह सैलाब ने नेताओ की कथनी और करनी के बीच के अन्तर की कलई खोल कर रख दी है लेकिन फिर भी वे अपनी आदत से बाज नही आते. इस दर्दनाक और भयावह घटनाक्रम के बाद सेना और आईटीवीपी के जवानो ने इन्सानियत के साथ जिस अद्भभुत साहस का परिचय देते हुये हजारो- हजार लोगो को मौत के मुह से निकाला है वह काबिले तारीफ तो है ही, पूज्य के योग्य भी है. हम यह क्यो भूलते है कि आज हम उनकी बदौलत ही इस देश की पावन ध्ररा पर हसते और खेलते हुये विचरण कर रहे है.