समीक्षक – डॉ. विकास दवे
सिद्धार्थ शंकर गौतम की पुस्तक सिंहस्थ हाथों में है। ‘प्रभात प्रकाशन” की अपनी गौरवशाली परंपरा का निर्वाह करती-सी यह पुस्तक भी एक ही दृष्टि में अपने भौतिक कलेवर से मन मोह लेती है। आकर्षक आवरण सर्वप्रथम आकर्षित करता है। तत्पश्चात् हमारे समक्ष परत दर परत खुलने लगती है विश्व के सबसे बड़े स्वस्फूर्त महापर्व की एक-एक जानकारी। लाखों वर्ष का हमारा गौरवशाली अतीत अपनी गरिमामय स्मृतियों के साथ चलचित्र-सा आंखों के आगे से गुजरने लगता है।
कुंभ के आध्यात्मिक पक्ष के साथ जुड़े पौराणिक आख्यानों को पाठक पढ़ते-पढ़ते ही एक अलग दुनिया में प्रवेश करने लगता है। गरूड़ द्वारा अमृत कुंभ को लाने और चार तीर्थ नगरियों में अमृत का छलकना पाठक के हृदय में आनंद छलकाता चलता है। उसके ज्योतिषिय महत्व को रेखांकित करते हुए श्री सिद्धार्थजी हमें वर्ष 2016 में आयोजित उज्जैन के सबसे यशस्वी कुंभ तक ले आते हैं।
सच कहें तो यह पुस्तक डॉ. सोमदत्त गौतम के मंगलाचरण से ही किसी सध्ो हुए गाइड की तरह पाठक को अंगुली थामे सिंहस्थ दर्शन कराने लगती है। पुस्तक को 2 खण्डों में बांटने का प्रयास अवश्य किया गया है पर दोनों ही खण्ड एक-दूसरे की सीमा के प्रवेश करते से प्रतीत होते हैं। फिर भी प्रथम खण्ड में उज्जयिनी के आत्मकथात्मक संवाद आकर्षक हैं। लगता है स्वयं तीर्थ नगरी हमें मां की तरह अपने अंक में समेटे थपकी दे रही है। इस तीर्थ की पौराणिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, पवित्र क्षिप्रा के क्षिप्र प्रवाह के आसपास के देव सदन, यहां घटे ऐतिहासिक घटनाक्रम, कुंभ पर्व की पूर्व पीठिका, उसके अनेक अनछुए घटनाक्रम, पुराणों में आए इसके संदर्भ देते हुए लेखक हमें इसके विकृत और दु:खद पक्षों से भी रूबरू कराते चलते हैं। इसके बाद पुस्तक के अंश हमें वह ज्ञान उपलब्ध कराते हैं, जो पाठक के लिए सर्वाधिक जिज्ञासा का कारण बनते हैं। आद्य शंकराचार्य द्वारा प्रणित अखाड़ा परंपरा को एक विस्तृत फलक उपलब्ध कराती है यह पुस्तक। सामान्य व्यक्ति के आध्यात्मिक ज्ञान को केवल अपडेट करने का उपक्रम न बनाकर सिद्धार्थ शंकर गौतम ने इसे श्रद्धा को बढ़ाने का उपक्रम बनाया है। यही इस पुस्तक की सार्थकता भी है। हां, अखाड़ों की अद्यतन जानकारी देने के साथ वैष्णव संप्रदाय की अनदेखी-सी जरूर हुई है। रामानंद और वल्लभ संप्रदाय को थोड़ा स्थान अपेक्षित था। पर मैं इसे मात्र ऐसा मानता हूं जैसे पूरा सिंहस्थ घूमने का संकल्प लिए व्यक्ति का मंगलनाथ क्षेत्र छूट गया। नागा परंपरा हो या सिंहस्थ की शासकीय व्यवस्थाएं, कुंभ पर्व की ऐतिहासिक पौराणिक पृष्ठभूमि हो या कुंभ का वर्तमान पीढ़ी को दाय इस पुस्तक में अनेक लेखों की कलम से नि:सृत आलेखों ने समग्र रूप से इसे संग्रहणीय बना दिया है। संत शक्ति के आशीष समाज के लिए प्रेरक व दिशा दर्शक होते हैं। दूसरे खण्ड में पूज्य शंकराचार्य जी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, श्रीश्री रविशंकर जी, श्रीयुत देवप्रभाकर शास्त्री ‘दद्दाजी”, पू. उत्तम स्वामी जी, पू. भय्यू जी महाराज, पू. लाहिड़ी गुरुजी, पं. विजयशंकर जी मेहता, पं. आनंद शंकर जी व्यास एवं प्रभात कुमार सोनी ‘गुरुजी” के शुभकामना संदेश और आशीर्वचन आलेख के रूप में लिए गए हैं। इस प्रकार यह ग्रंथ एक ही विषय का श्रेष्ठ सम्पादित ग्रंथ बनकर उभरा है।
श्री सिद्धार्थ शंकर गौतम की यह तृतीय कृति पाठकों के लिए सिंहस्थ 2016 की तरह सदैव अविस्मरणीय बनी रहेगी। इस अच्छी कृति के लिए उपरोल्लेखित संतों मनीषियों के अतिरिक्त लेखकद्वय डॉ. मोहन जी यादव एवं श्री सुशील जी शर्मा को भी साधुवाद और संपादक श्री सिद्धार्थ जी एवं प्रभात प्रकाशन के श्री प्रभात जी को अनेकश: शुभकामनाएं।
पुस्तक – सनातन संस्कृति का महापर्व-सिंहस्थ
लेखक/सम्पादक – सिद्धार्थ शंकर गौतम
प्रकाशक – प्रभात पेपर बैक्स
4/19, आसफ अली रोड़,
नई दिल्ली 110002
संस्करण – प्रथम 2016
पृष्ठ संख्या – 160
मूल्य -125 रु.