पूंछ दिखा वनराज को चिढ़ा रहा उत्पाती वानर

 सामयिक व्यंग्य

सुशील कुमार ‘नवीन’

चलिये आज एक नई कहानी सुनाते हैं। जंगल में एक पेड़ पर दो बन्दर रहते थे। शैतान तो दोनों ही थे पर एक ज्यादा था। मित्रवत थे सो एक-दूसरे के सुख-दुख के साझी भी थे। एक दिन पेड़ पर आदतन उछलकूद कर रहे थे। दूर एक पेड़ की छांव में एक शेर को सोए हुए देखा। दोनों के मन में शेर को परेशान करने की खुराफात जन्म ले गई। उछलते-कूदते उस पेड़ पर जा पहुंचे जिसके नीचे शेर सोया हुआ था। बदमाश बन्दर बोला- यार आज तो वनराज की पूंछ खींचने का मन कर रहा है। दूसरा बोला-भाई, यहीं पेड़ पर बैठे-बैठे इसके मजे ले लो। कोई आम तोड़कर इस पर फैंक दो। कोई डाली फैंक दो। पास मत जाओ। पीछा छुटाना मुश्किल हो जाएगा। बदमाश बन्दर बोला-पीछा तो तब छुटवाना होगा जब मैं इसके हाथ आऊंगा। जंगल के राजा को रोज-रोज थोड़े ही छेड़ने का मौका मिलता है। दूसरे ने पहले को बहुत समझाया पर वो नहीं माना। दूसरे ने उसे कहा कि एक बार रुक जा। मैं थोड़ी दूर निकल जाता हूं अन्यथा तेरे किए का फल मुझे भी भुगतना पड़ेगा। कोई बात नहीं जा तूं दौड़ जा। मैं तो आज मजे लेकर रहूंगा-बदमाश बन्दर ने कहा। दूसरे बन्दर के जाते ही उसने शेर की पूंछ खींच ली। शेर नींद से जाग उठा। देखा तो एक बन्दर को पूंछ पकड़े पाया। शेर ने जोर से दहाड़ लगाई। बन्दर पर उसका कोई असर नहीं दिखा। शेर ने झटके से पूंछ खींची और बन्दर की और झपटा। बन्दर भी पहले से तैयार था। शेर के झपटने से पहले दूसरी तरफ छलांग लगा दी। दूसरे पेड़ पर बैठे साथी बन्दर ने आवाज लगाई कि भागकर पेड़ पर चढ़ जाओ अन्यथा ये पीछा नहीं छोड़ेगा। पर वो पेड़ पर नहीं चढ़ा। उसके मन में अभी भी कुछ खुराफाती चल रही थी। शेर को कभी दाएं कभी बाएं दौड़ाता फिर रहा था। दौड़ते-दौड़ते दोनों अन्य वन प्रदेश में पहुंच गए। वह वन प्रदेश एक गधर्भराज के अधीन था। इसी दौरान बन्दर पेड़ों के झुरमुट में जा घुस गया। शेर उसे काफी देर तक  ढूंढता रहा पर उसका कुछ पता नहीं चला। इतने में गधर्भराज का आना हो गया। अपने इलाके में शेर को आया देखकर उसने कहा- तुम जंगल का नियम भूल गए हो। अपने वन प्रदेश में लौट जाओ। अन्यथा मुझे महा वनप्रदेश पंचायत बुलानी पड़ेगी। नियमों के हवाले पर शेर बोला-मेरा एक शिकार तुम्हारे इलाके में आ गया है, उसे मुझे सौंप दो। मैं लौट जाऊंगा। गदर्भराज ने साफ इंकार कर दिया और कहा-मेरे इलाके में जब कोई आया ही नहीं तो तुम्हे कहां से सौंप दूं। शेर बोला- ठीक है मैं अपनी सीमा पर उसके इंतजार में बैठा हूँ, कभी तो वो मुझे दिखेगा जब पकड़कर तुम्हारे सामने से ले जाऊंगा। गदर्भराज हंसे और बोले-दिखेगा तभी तो ले जाओगे। तब से नियमों में बंधे वनराज अपने प्रदेश की सीमा पर डेरा जमाए हुये है और वह बन्दर गदर्भराज के इलाके में शरण लिए हुए है। दुष्ट बन्दर कब शेर के हाथ लगेगा और कब वह उससे अपनी पूंछ खींचने का बदला लेगा यह अभी भविष्य के गर्भ में ही है। हां अब वो बन्दर पेड़ों के झुरमुट से अपनी पूंछ बाहर निकाल वनराज को अब चिढ़ाने जरूर लगा है। 

(नोट: कहानी मात्र मनोरंजन के लिए है इसे दाऊद इब्राहिम के पाकिस्तान प्रवास से न जोड़ें) 

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