ओढ़कर नव वसन न्यारा॥
प्रकृति का यौवन निराला,
गा रहा स्वर तान प्यारा॥
नमन हे ईश्वर तुम्हारा,
नमन हे ईश्वर तुम्हारा॥
कूप झरने नदी सागर।
मधुर रस में तृप्त गागर॥
झूमते सब पेड़ पौधे।
नृत्य करते मोर मोहते॥
कुहुक कोयल की निराली।
मगन पुष्पम् डाली डाली॥
पृथ्वी माता हरित आंचल।
हरित चुन्नी हरित हर तल॥
लेतीं जब अंगड़ाइयाँ तब।
मन भ्रमर डोले हमारा॥
नमन हे ईश्वर तुम्हारा,
नमन हे ईश्वर तुम्हारा
वाक्देवी सरस्वती माँ।
मान करती हैं प्रकृति का॥
गीत कविता लिख रहे कवि।
‘विमल’ बन सब दे रहे हवि॥
रंग रहे रंगरेज़ चोला।
बन बसंती मन ये डोला॥
गा रहा वीरों की गाथा।
धन्य हैं वे वीर माता॥
हे हकीकत नाज़ तुम पर।
कह रहा ॠतुराज प्यारा॥
नमन हे ईश्वर तुम्हारा,
नमन हे ईश्वर तुम्हारा॥