आज चली उसकी मरजी

ड्राइंग रूम की दीवारों पर,
लिखी रमा ने ए. बी. सी.
न जाने वह चाक कहां से,
नीले रंग की ले आई।
अक्षर टेढ़े मेढे लिखकर,
बड़ी जोर से चिल्लाई।
देखो अक्षर अंग्रेजी के
लिख डाले मैंने दीदी।
चू ने से कुछ दिन पहले था,
पुत वाया पापा ने घर।
चाक रगड़ कर उल्टी सीधी,
उसने बना दिए मच्छर।
मम्मी ने रोका उसको तो,
मा री किलकारी हंस दी।
भैया ने पकड़ा जैसे ही,
शोर मचाया जोरों से।
चिड़िया घर बन चुकीं दीवारें,
रंगी चाक की कोरों से।
नहीं किसी की भी चल पाई,
आज चली उसकी मरजी।

Previous articleमुख्य धारा का आधार: “समान नागरिक संहिता”
Next articleयूपी सरकार के ढाई सालः अभी फीका नहीं पड़ा है योगी का करिश्मा
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,694 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress